प्रेम के तुम देवता हो।

प्रेम के तुम देवता हो।

सृष्टि का आधार तुम हो
सहज, स्फूर्ति, अविकार तुम हो
सत्य की हो प्रेरणा तुम
सुंदर, सरल, स्वीकार तुम हो।

                          सहजता का स्राव तुम हो
                          प्राण का सद्भाव तुम हो
                          सृष्टि का सौंदर्य भी औ
                          प्रेम का हर भाव तुम हो।

चेतना का दाह तुम हो
इस हृदय की आह तुम हो
ढूँढ लेता हूँ स्वयं को
ज्योति की वो राह तुम हो।

                          ईश का वरदान तुम हो
                          गीता, वेद, पुराण तुम हो
                          प्रेम का हर प्रवाह तुमसे
                          सूर, औ रसखान तुम हो।

तुम समग्र  संपूर्णता हो
स्वभाव की निर्भीकता हो
प्रीत की हर रीत तुमसे
प्रेम के तुम देवता हो।।

 ✍️©️अजय कुमार पाण्डेय 
            हैदराबाद
            27जून,2020

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