इतने ऊंचे आज उड़ो तुम।
चलो चलें हम नभ को छू लें
अपने सब सपनों को जी लें
अपने पंखों को फैलाकर
सीमाहीन क्षितिज को छू लें।
भावों पर रोक नहीं हो
गति ऐसी अवरोध नहीं हो
बाहों में आकाश भरें हम
मन में कोई क्षोभ नहीं हो।
इतने हों मजबूत इरादे
जैसे कि हिमगिरि चट्टानें
भावों में पर कोमलता हो
मन निर्मल, निर्झर के गाने।
प्रस्तुति ऐसी जग को भाए
मार्ग के कंटक खुद थर्राए
सजल बनो जैसे हो बादल
जो शीतल बूंदें बरसाए।
जितना चाहो उतना गाओ
जग के सब संताप मिटाओ
ऐसी मीठी वाणी बोलो
हंसे फूल, कली खिल जाए।
धरती सा धैर्य अपनाओ
परिश्रम को हथियार बनाओ
इतने ऊंचे आज उड़ो तुम
नभ में अमिट नाम लिख आओ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28जून, 2020
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