यदि पीड़ा को वरदान न मिलता गीत अधूरे रह जाते
कितना पाया यहाँ जगत में कुछ भोगा कुछ छूट गया,
कुछ ने मन को मन से जोड़ा कुछ से मन ये टूट गया।
टूटे मन को जुड़वाने को कितना संदेश भिजाया,
साँसों से मिन्नत कर के आहों को हर बार मनाया।
यदि साँसों का वरदान न मिलता गीत अधूरे रह जाते।
सबको एक बराबर समझा सबका पग-पग मान बढ़ाया,
जग के सारे अनुमानों पे मन ने खुद को भेंट चढ़ाया।
अधरों पे जो गीत सजे हैं साँसों ने सत्कार किया है,
नहीं शिकायत करी भाग्य से जो पाया स्वीकार किया है।
यदि रेखों का अनुमान न मिलता गीत अधूरे रह जाते।
मन की सरहद पर साँसों ने हर पल इक नवगीत सजाया,
अधरों का आभार किया है हर इक आँसू को अपनाया।
सभी दर्द को शब्द दिया है आहों का आभार जताया,
साँसों के घुटने से पहले आहों को सम्मान दिलाया।
यदि आँसू को सम्मान न मिलता गीत अधूरे रह जाते।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04 जुलाई, 2025
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