मैं क्या करूँगा।

मैं क्या करूँगा।   

है मिला जग से बहुत कुछ
प्यार भी सत्कार भी
और शब्दों से खिला है
गीत का संसार भी
पर गीत जो तुम गा न पाए
गीत गाकर क्या करूँगा
जो तुम हमारे हो न पाए
संसार में मैं क्या करूँगा।।

लोग कहते हैं शब्द में
है छुपा संसार ये
भाव जिस हिय में बसे है
बसते वहीं प्यार भी
पर जिस हृदय में प्यार ना हो
बस कर वहाँ मैं क्या करूँगा
जो तुम हमारे हो न पाए
संसार में मैं क्या करूँगा।।

वक्त की पाबंदियों से
तुम घिरे हम भी घिरे
वक्त के आगोश से क्या,
पता लम्हा कब गिरे
हाथों से छूटा जो लम्हा
फिर शोक कर के क्या करूँगा
जो तुम हमारे हो न पाए
संसार में मैं क्या करूँगा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        31अगस्त, 2021




उपवन बोलो कब रोता है।

उपवन बोलो कब रोता है।  

झेल थपेड़े तूफानों के 
आँधी से हैं चोटें खाई 
पग पग कितना कष्ट सहा है
मुख से लेकिन उफ ना आयी
कितना सुनता, पर हँसता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

सींच लहू से पैदा करता
कदम कदम रखवाली करता
क्यारी क्यारी स्वप्न सँजोता
पंक्ति पंक्ति के खर है हरता
पग पग बस स्वप्न पिरोता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

जब जब जिसने जैसा चाहा
जग को पुष्प दिया है उसने
जाने कितने शूल चुभे हैं
लेकिन कष्ट सहे सब उसने
सहता, विश्वास नहीं खोता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

जाने कितने ताप सहे हैं
स्वेद बूँद से लथपथ लथपथ
चला अकेला राह बनाने
लिखने रचने पग पग नव पथ
पग पग उम्मीदें बोता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

सींच जड़ों को संस्कारों से
पुण्य पवित्र पावन करता है
आशाओं अरु व्यवहारों से
अंतस के सब खर हरता है
पावनता पग पग ढोता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

सच है सबकी इच्छाओं को
पूरा करना आसान नहीं
अंतस के भावों को जाने
कहीं ऐसा प्रावधान नहीं
सुनता है, कोशिश करता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30अगस्त, 2021



सब गीत लिखे जीवन के।


सब गीत लिखे जीवन के।

सब गीत लिख दिए जीवन के
जो शेष बच गए प्राक्क्थन।।

प्रातःकाल ड्योढ़ी पर सूरज
दे आहट करता है नर्तन
रूप सजाता है जीवन का
पल पल भरता है आकर्षन।।

भावों को अभिव्यक्त करे जो
नूतन आशा का अभिनंदन
सब गीत लिख दिए जीवन के
जो शेष बच गए प्राक्क्थन।।

पुरवाई का झोंका लहका 
कहीं किसी का बहका मन
झूम झूम कर कलियाँ नाची
 कहीं किसी का नाचा तन।।

बह के पुरवा के झोंके में
कलियों ने भरा राग नूतन
सब गीत लिख दिए जीवन के
जो शेष बच गए प्राक्क्थन।।

गूँजी है खनक हवाओं की
छूकर मन का पावन चंदन
अब क्यों व्यथित व्यथाएँ होंगी
बस खुशियों के होंगे नर्तन।।

छंद छंद नवगीत सजे हैं
पंक्ति पंक्ति भावों का वंदन
सब गीत लिख दिए जीवन के
जो शेष बच गए प्राक्क्थन।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30अगस्त, 2021


मुक्तक।

मुक्तक। 

गोधूली बेला में बनकर दीपक तुम यूँ आये
मेरे मन मंदिर में तुमने लाखों दीप जलाए
प्रीत जगे अंग अंग में यूँ सजे बाहों का हार
ज्यूँ संझा के आँचल में शशि सुंदर रूप दिखाए।।


पाषाणों से कहना चाहा।

पाषाणों से कहना चाहा।

जिससे भी मन की बात कही वो मौन हुए या दूर हुए
शायद मैंने भूल करी जो पाषाणों से कहना चाहा।।

पल पल जिनपर प्यार लुटाया
जिनपर है विश्वास जताया
जिनको हरपल अपना माना
उनसे ही ठोकर है खाया।।

विश्वास जताये जितने ही हम उतने ही मजबूर हुए 
शायद मैंने भूल करी जो विश्वासों पर चलना चाहा।।
शायद मैंने.........।।

जाने अनजाने वारों ने
दिल को कितना घात दिया है
कितने मीठे व्यवहारों ने
पग पग पर आघात दिया है।
आघात मिला जितना दिल को सबसे उतना ही दूर हुए
दूर हुए चाहे सबसे हम लेकिन दिल से मिलना चाहा।।
शायद मैंने.........।।

करी प्रेम की आशा जब भी
तब तब छल का वार हुआ है
टूटा हूँ जब शीश झुकाया
कुछ ऐसा व्यवहार हुआ है।
व्यवहार हुआ है कुछ ऐसा के हटने को मजबूर हुए
मजबूर हुए लेकिन फिर भी दिल से सबसे जुड़ना चाहा
दूर हुए चाहे सबसे हम लेकिन दिल से मिलना चाहा।।
शायद मैंने...........।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
        26अगस्त, 2021





कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।

कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।  

जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये
कुछ माला में गूंध गए अरु
कुछ पग पग पर ठोकर खाये।।

पलकों ने कब चाहा उसके
प्रिय अश्रू गिरे अरु मिट जायें
आहों ने कब चाहा दिल के
अरमान गिरे अरु मिट जायें
हंसे कभी कभी रोये अश्रू
और कभी बदली बन छाये
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

अंतर्मन ने कब चाहा है
भाव दबे और कुम्हलायें
मधुमासों ने कब चाहा है
हाय बिरह की वो पीड़ाएँ
आशाओं के महाकुंभ में
हैं अंतर्मन की ज्वालायें
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

पग पग दीप जलाए जितने
आस प्राण में आये उतने
अहसासों की पृष्ठ भूमि पर
स्वप्न सुनहरे आये उतने
पलकों की ड्योढ़ी पर सपने
कभी हँसाये कभी रुलाये
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17अगस्त, 2021


कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बदल से।

कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बदल से।

ना पूछो ऐसे क्यूँ दिखते हैं जग को हम यूँ पागल से
कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बादल से।।

मस्त बहारों का आशिक हूँ
मदमस्त यहाँ मैं फिरता हूँ
मेरे मन को जो भाता है
वो खुलकर के मैं करता हूँ।।
चंचलता है नदिया से सीखी अरु लहराना सागर से
कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बादल से।।

जग के संतापों को सारे
हमने हँसकर के टाला है
फूल मिले या काँटे जग से
सबको हँसकर के पाला है।।
धैर्य लिया धरती से हमने मिलना जुलना गंगाजल से
कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बादल से।।

जीवन के सारे रंगों ने
मिलकर के रूप सजाया है
कलियों अरु पुष्पों ने मिलकर
सारा उपवन महकाया है।।
पंछी से कलरव सीखा है अरु खिलना माँ के आँचल से
कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बादल से।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25अगस्त, 2021

प्यासा सावन।

प्यासा सावन।  

प्यासा सावन, प्यासी रातें प्यासी न रह जाये चातकी
अब तो खुलकर मन की कह दो घुटकर न रह जाये चातकी।।

हमने तेरे स्वागत में
दिल के तोरण द्वार सजाए
नेह बिछाए पलकों के
अरु बाहों के हार सजाए।
हर आहट पर जा जा ठहरीं आँखें तकतीं राह द्वार की
प्यासा सावन, प्यासी रातें, प्यासी न रह जाये चातकी।।

दिन की मौन उदासी को
रातों ने आँचल में पाला
अधरों से ना कही गयी 
पलकों ने वो सब कह डाला।
भोर हुई तो पलकों ने ही कह डाली सब बात रात की
प्यासा सावन, प्यासी रातें, प्यासी न रह जाये चातकी।।

विरह वेदना के क्षण में
मन को कितना समझाया है
तेरे संग बितायी जो
यादों से दिल बहलाया है।
डरता है दिल भूल न जाओ वादों वाली बात रात की
प्यासा सावन, प्यासी रातें प्यासी न रह जाये चातकी।।

सावन जाने से पहले
आ जाओ झलक दिखा जाओ
जैसे गले लगाया था
फिर मुझको गले लगा जाओ।
ऐसा ना हो इस जीवन में दिल की न कह पाए चातकी
प्यासा सावन, प्यासी रातें, प्यासी न रह जाए चातकी।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       24अगस्त, 2021   

जाने कैसी अनबन है।

जाने कैसी अनबन है।   

इन किस्मत की रेखाओं से
ना जाने कैसी अनबन है
जब भी खुलकर जीना चाहा
अवरोधों से घिरा गगन है।।

दुख में सुख की करी कल्पना
तब तब खुद को तन्हा पाया
जब चले समय की राहों में
बिखरा बिखरा लम्हा पाया।।

इन बिखरे लम्हों से अपनी
फिर जाने कैसी ठनगन है
इन किस्मत की रेखाओं से
ना जाने कैसी अनबन है।।

देखो अलसाई आँखों में
रातों की सभी कहानी है
माथे की ये सिलवट सारी
सब कहती उसे जुबानी है।।

मेरी नींदों की आँखों से
क्या जाने कैसी ठनगन है
इन किस्मत की रेखाओं से
ना जाने कैसी अनबन है।।

अपने पैरों के छालों के
पीड़ा की परवाह नहीं की
चला पंथ मैं भले अकेला
मुख से लेकिन आह नहीं की।।

जाने इन राहों से मेरी
फिर ठनी रही क्यूँ ठनगन है
इन किस्मत की रेखाओं से
ना जाने कैसी अनबन है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अगस्त, 2021







श्रृंगार से सजने लगे।

श्रृंगार से सजने लगे।  

तुम जो आये जिंदगी में ये साज सब बजने लगे
मेरे मन के भावों के श्रृंगार सब सजने लगे।।

निर्वात का घेरा यहाँ था
बस शून्यता चहुँ ओर थी
बेरंग थी दुनिया मिरी ये
ना ओर थी ना छोर थी।।

तुम जो आये जिंदगी में ये शून्य सब भरने लगे
मेरे मन के भावों के श्रृंगार सब सजने लगे।।

शून्यता के उन पलों में हम
मौन खुद खोजा किये हैं
और रास्तों पे जब चले हम
मौन कुछ सोचा किये हैं।

तुम जो आये जिंदगी में ये मौन सब बजने लगे
मेरे मन के भावों के श्रृंगार सब सजने लगे।।

हाथ तेरा क्या हाथ आया
सभी रास्ते खुलने लगे
कितने गीत कोरे पृष्ठ पर
अहसास के लिखने लगे।।

धड़कनों ने गीत गाये अरु साज सब बजने लगे
मेरे मन के भावों के श्रृंगार सब सजने लगे।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       23अगस्त, 2021



क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।

क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।   

उम्मीदों के आसमान पर 
जाने कैसी बदली छाई
हमने जब जब हँसना चाहा
क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।।

रहे ताप में जीवन भर हम
पंथ तुम्हारा शीतल रखा
जाने कितने दंश सहे हैं
हृदय को अपने कोमल रखा।।

निर्मल रखा मन भावों को
फिर भी जाने ठोकर खाई
हमने जब जब हँसना चाहा
क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।।

दिन डूबा अरु साँझ हुई जब
हमने मन का दीप जलाया
अँधियारे को दूर किया जब
मन में बस तुमको ही पाया।।

फिर जाने क्या बात हुई जो
है मिली मुझे बस रुसवाई
हमने जब जब हँसना चाहा
क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।।

अपनी इच्छाओं को हर पल
तेरी इच्छाओं पर वारे
तुम्हें जीत दिलाने खातिर
कदम कदम पर हम तो हारे।।

जीवन की चौसर पर हमने
जाने कितनी ठोकर खाई
हमने जब जब हँसना चाहा
क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अगस्त, 2021

तुम कहो अगर तो गा लूँ मैं।

तुम कहो अगर तो गा लूँ मैं।  

कुछ गीत लिखे हैं जीवन के
तुम कहो अगर तो गा लूँ मैं 
अगले पल की किसे खबर है
कहो अगर दिल बहला लूँ मैं।।

आने वाले पल जीवन के
जाने क्या कुछ ले आयेंगे
जाने वाले पल जीवन के
जाने क्या क्या ले जायेंगे।
इस पल में जो पास यहाँ है
कहो अगर तो अपना लूँ मैं
कुछ गीत लिखे हैं जीवन के
तुम कहो अगर तो गा लूँ मैं।।

पुष्प खिले जो भी उपवन में
साँझ ढले मुरझा जायेंगे
गर इनको ना मिला सहारा
काँटों में उलझा जायेंगे।
इनके उलझाने से पहले
काँटों को सुलझा लूँ मैं
कुछ गीत लिखे हैं जीवन के
तुम कहो अगर तो गा लूँ मैं।।

पल पल आशाएँ जीवन की
सुनो जरा क्या कुछ कहती हैं
जाने इस जीवन के कितने
सपने ये बुनती रहती हैं।
सपनों की इन घड़ियों में
अपना संसार बसा लूँ में
कुछ गीत लिखे हैं जीवन के
तुम कहो अगर तो गा लूँ मैं।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
         22अगस्त, 2021

प्रेम समर्पण।

प्रेम समर्पण।  

मेरे मृदु हिय को स्पंदित कर 
तुम इसका जीवन बन जाओ
मैं बन जाऊँ कृष्ण तुम्हारा
तुम मेरि राधिका बन जाओ।।

जो मैं बन जाऊँ त्याग यहाँ
तुम प्रेम समर्पण बन जाओ
जो बन जाऊँ शाख यहाँ मैं
तुम सुंदर कलियाँ बन जाओ।।
मैं बन जाऊँ भ्रमर यहाँ जो
तुम पुष्प वाटिका बन जाओ
मैं बन जाऊँ कृष्ण तुम्हारा
तुम मेरि राधिका बन जाओ।।

हो प्रेम स्फुटित मन उपवन में
पुष्पों से मन आच्छादित हो
रोम रोम मधु भाव जगे अरु
हृदय प्रेम से आह्लादित हो।।
मैं बन जाऊँ स्नेह मनोहर
तुम स्वर्णिम बेला बन जाओ
मैं बन जाऊँ कृष्ण तुम्हारा
तुम मेरि राधिका बन जाओ।।

धीमे धीमे बहता है मन
कुछ सुनो जरा क्या कहता है 
संग संग जीवन के कितने
ये स्वप्न सँजोते रहता है।।
मैं बन जाऊँ शब्द सुनहरा
अरु गीतों में तुम छा जाओ
मैं बन जाऊँ कृष्ण तुम्हारा
तुम मेरि राधिका बन जाओ।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21अगस्त, 2021






पल पल बढ़ रही है जिंदगी।

पल पल बढ़ रही है जिंदगी।  

आस के आकाश पर यूँ फल रही है जिंदगी
जाने किन किन रास्तों पर चल रही है जिंदगी
कौन जाने दूर और कौन जाने पास है
उम्र के साये में पल पल बढ़ रही है जिंदगी।।

बढ़ रही उम्र देखो रात के जाने के साथ
अरु मिलती है खुशी रात के जाने के बाद
बढ़ रहा है जितना पथिक बढ़ रही है जिंदगी
उम्र के साये में पल पल बढ़ रही है जिंदगी।।

शब्द अधरों पर कभी तुषार हैं अंगार हैं
नीड़ के निर्माण में ये भी सृजन श्रृंगार हैं
शब्द के आकाश पर कुछ गढ़ रही है जिंदगी
उम्र के साये में पल पल बढ़ रही है जिंदगी।।

अहसासों के पुण्य पल छोड़ कर कैसे चलूँ
जग से जो भी मिला वो तोड़ कर कैसे चलूँ
बंधनों की प्रीत सह सह बढ़ रही है जिंदगी
उम्र के साये में पल पल बढ़ रही है जिंदगी।।

स्वप्न पलकों में पले तो रात क्या अरु दिन क्या
उम्र के संग संग चले तो रास्तों की फिक्र क्या
गौर से सुन लो जरा कुछ कह रही है जिंदगी
उम्र के साये में पल पल बढ़ रही है जिंदगी।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21अगस्त, 2021

पीर लिखी मैंने बिरहन की।

पीर लिखी मैंने बिरहन की।  

जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।

मधुमासों के बीच रहे पर
मधुमासों की आस रही
बीच समुंदर खड़े रहे पर
जाने कैसी प्यास रही।।

पल पल प्यासे उस जीवन की, पीर लिखी मैंने नयनन की
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।

बीच लहर तुम छोड़ चले जब
पतवारों की आस नहीं
जब डगमग डगमग नैया डोली
उस क्षण कोई पास नहीं।।

सागर से क्या करूँ याचना, गीत लिखे मैने धड़कन की
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।

शीतल चंदा की किरणों ने
कितनी बार जलाया है
छली गयी हैं यादें पल पल
जब जब याद दिलाया है।।

यादें जब जब तड़पाईं हैं, गीत लिखे मैंने तड़पन की
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।

जीवन के इस मरूभूमि को
आँखें कब तक सींचेंगी
सागर से मिलने की खातिर
नदिया कब तक तरसेंगी।।

इन पलकों में आस लिए फिर, प्रीत लिखी मैंने नयनन की
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20अगस्त, 2021

हौले से मुस्काना।

हौले से मुस्कना।  

अधरों का हौले से कंपन
धीरे से सब कह जाना
याद मुझे अब भी है तेरा
वो हौले से मुस्काना।।

कितनी प्यारी बातें तेरी
अरु दूर क्षितिज तक जाना
अब भी याद मुझे है तेरा
हँसना दिल को बहलाना।।

नैनों से बातें करना अरु
कहे बिना सब कह जाना
याद मुझे अब भी है तेरा
वो हौले से मुस्काना।।

हमने अपनी हर साँसों में
बस तुमको ही पाया है
जब भी तेरा जिक्र हुआ है
तकिया गले लगाया है।।

प्यारी प्यारी बातें तेरी
और तेरा वो शर्माना
याद मुझे अब भी है तेरा
वो हौले से मुस्काना।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20अगस्त, 2021

अब कैसे मैं तुम्हें पुकारूँ।

अब कैसे मैं तुम्हें पुकारूँ।  

कितने दूर बसे हो जाकर, अब कैसे मैं तुम्हें पुकारुँ 
कदम कदम पर लाखों पहरे, अब कैसे मैं नजर उतारूँ।।

कैसे भूल गए वो वादे
कैसे भूली बतियाँ सारी
कैसे भूले गीत मिलन के
और सुहानी रतियाँ सारी।।

मन की मन में दबी रह गयी, किसके सम्मुख उन्हें निकारूँ
कितने दूर बसे हो जाकर, अब कैसे मैं तुम्हें पुकारुँ।।

टूटे सपनों की ड्योढ़ी पर
अरमानों का भार लिए हूँ
कैसे तुमको आज बताऊँ
मन में क्या उपहार लिए हूँ।।

पलकों में कुछ अश्रू बचे हैं, बोलो कैसे उन्हें निकारूँ
कितने दूर बसे हो जाकर, अब कैसे मैं तुम्हें पुकारुँ।।

जाने कैसी भूल हुई है
जो आज सजा ये पायी है
अब किससे अरदास करूँ मैं
क्यूँ होती ना सुनवाई है।

अधरों पर पीड़ा ठहरी है,  किस विधि बोलो उन्हें निकारूँ
कितने दूर बसे हो जाकर, अब कैसे मैं तुम्हें पुकारूँ।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19अगस्त, 2021



गीत सुना दो।

गीत सुना दो।  

शब्दों को परिमार्जित कर के
अधरों पर फिर पुष्प खिला दो
जो अंतर्मन स्पंदित कर दे
कोई ऐसा गीत सुना दो।।

स्वर की गलियों से जब गुजरूँ
कानों में प्रिय रस घुल जाये
पुलकित हों हिय भाव मनहरे
अधरों के बंधन खुल जायें
खुल जाए यादों की गलियाँ
ऐसी कोई रीत चला दो
हर अंतस स्पंदित हो जाये
कोई ऐसा गीत सुना दो।।

सुर की गलियों के तुम प्यारे
शब्दों के हो राजदुलारे
गीत रचो मन को छू जाये
मन उपवन को यूँ महका रे
बंध बंध आह्लादित जिसका
ऐसा सुर संगीत सजा दो
हर अंतस स्पंदित हो जाये
कोई ऐसा गीत सुना दो।।

हिय पुलकित आशाएँ गुंजित
भावों में जो हो प्रतिबिंबित
हृद हृद में मधुमास खिला दे
अहसासों को कर के चुंबित
मिटे तपन शीतल हो जाये
पिय भावों को आज जगा दो
हर अंतस स्पंदित हो जाये
कोई ऐसा गीत सुना दो।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18अगस्त, 2021

ये रास्ते थकते नहीं।

ये रास्ते थकते नहीं।  

ये कौन कहता है हवायें बात अब करती नहीं
मैं तो कहता हूँ दिशाएँ उसकी अब सुनती नहीं।।

एक रेखा सी खिंची है हर आशियाने में यहाँ
और तुम कहते हो यहाँ वो रेख अब दिखती नहीं।।

है कितनी आवाजें लगाई उम्र ने हर मोड़ पर
मैं कैसे अब कह दूँ यहाँ के उम्र कुछ कहती नहीं।।

कितना कुछ झेला है उसने इस जिंदगी के वास्ते
अब कैसे कह दूँ मैं यहाँ ये उम्र कुछ सहती नहीं।।

भीड़ हो तनहाइयाँ हों मंजिलें हों या के सफर
ये रास्ते हैं विश्वास के ये उम्र भर थकते नहीं।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
        18अगस्त, 2021

कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।

कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।  

जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये
कुछ माला में गूंध गए अरु
कुछ पग पग पर ठोकर खाये।।

पलकों ने कब चाहा उसके
प्रिय अश्रू गिरे अरु मिट जायें
आहों ने कब चाहा दिल के
अरमान गिरे अरु मिट जायें
हंसे कभी कभी रोये अश्रू
और कभी बदली बन छाये
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

अंतर्मन ने कब चाहा है
भाव दबे और कुम्हलायें
मधुमासों ने कब चाहा है
हाय बिरह की वो पीड़ाएँ
आशाओं के महाकुंभ में
हैं अंतर्मन की ज्वालायें
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

पग पग दीप जलाए जितने
आस प्राण में आये उतने
अहसासों की पृष्ठ भूमि पर
स्वप्न सुनहरे आये उतने
पलकों की ड्योढ़ी पर सपने
कभी हँसाये कभी रुलाये
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17अगस्त, 2021


चंद मुक्तक।

चंद मुक्तक।  

अपने गीतों में नहीं कुछ और लिखना चाहता हूँ
चाहता हूँ चंद लम्हे खुद को जीना चाहता हूँ।।
क्या करोगे जानकर के दर्द कितना था बड़ा 
दर्द वो मेरा है उसको मैं ही जीना चाहता हूँ।।

ये जो वीणा बज रही मैं भी उसका तार हूँ
जैसे तुम उपहार हो मैं भी इक उपहार हूँ
भेद बस इतना यहाँ कि तुम हो महलों में पले
और माटी में पला मैं मौन इक आकार हूँ।।

गाँव की वो पगडंडियाँ इतरा उठी तब झूम कर
जब शहर के रास्ते कल उससे मिले थे चूम कर
मौन शब्दों में कहा था चाहे कहीं भी तुम रहो
जब भि गुजरो तुम इधर से देख लेना घूम कर।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17अगस्त, 2021

सुनने का रिवाज।

सुनने का रिवाज।  

जाने क्यूँ हलकों से अब भी
निकल रही आवाज  नहीं
लगता है यूँ कंठ दबे हैं
आती कुछ आवाज नहीं।
दरद विकल हो मचल रहा
सुनता क्यूँ सरताज नहीं
लगता है महलों में अब भी
कुछ सुनने का रिवाज नहीं।।

भटक रही फिर आज जिंदगी
अपना अस्तित्व बचाने को
चीख रहे हैं आज अश्रू फिर
पलकों से बाहर आने को
आँसू के इस विकल वेदना
को मिलती क्यूँ आवाज नहीं
लगता है महलों में अब भी
कुछ सुनने का रिवाज नहीं।।

कहीं द्रौपदी चीख रही है
अट्टाहासों के बीच विकल
कहीं जल रही है सैरंध्री
है सोया क्यूँ ब्रम्हांड सकल
क्या कान्हा तक गूंजती चीख
की जाती अब आवाज नहीं
लगता है महलों में अब भी
कुछ सुनने का रिवाज नहीं।।

धनलोलुपता में ही कितने
संस्कारों को कुचल रहे हैं
राष्ट्र धरम और मर्यादा को
देखो कैसे कुचल रहे हैं
चलचित्र में फिर अश्लीलों पर
क्यूँ गिरती कोई गाज नहीं
लगता है महलों में अब भी
कुछ सुनने का रिवाज नहीं।।

ऐसे संस्कृति सिसक सिसक कर
मचल मचल कर गिर जाएगी
अवसादों के बीच फँसी तो
तड़प तड़प कर मर जाएगी
चलो बचा लें जीवन अपना
फिर न हो ये मोहताज कहीं
फिर से अब ना कोई कहे कि
कुछ सुनने का रिवाज नहीं।।

 ©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         16अगस्त, 2021

आज लेखनी फिर अकुलाई।

आज लेखनी फिर अकुलाई।  

आज लेखनी फिर अकुलाई
पीड़ा बन भावों में आई।।

मन का पंछी आकाशों में
जब जब रास्ता कोई ढूँढे
व्याकुल सपनों की ड्योढ़ी पर
खुद से खुद का रास्ता पूछे
मन के इस दीवानेपन में
भावों ने ली है अँगड़ाई
आज लेखनी फिर अकुलाई
पीड़ा बन भावों में आई।।

पग पग शब्दों का मेला है
जीवन सुख दुख का खेला है
कहीं घिरे हैं काले बादल
कहीं बारिशों का रेला है
बनते और बिगड़ते पथ में
घावों में उम्मीदें लाई
आज लेखनी फिर अकुलाई
पीड़ा बन भावों में आई।।

जिसने घावों को सहलाया
अवसादों में भी बहलाया
पल पल गीत बुने हैं जिसने
पीड़ा में भी गीत सुनाया
रहा अल्प में जीवन भर जो
उसकी कौन करे सुनवाई
आज लेखनी फिर अकुलाई
पीड़ा बन घावों में आई।।

हर धड़कन महसूस किया है
खुशियों खातिर दरद जिया है
जग को है मधु दिया हमेशा
नीलकंठ बन जहर जिया है
अचल रहा जो पुण्य पंथ पर
उसकी आँखें क्यूँ भर आईं
आज लेखनी फिर अकुलाई
पीड़ा बन घावों में आई।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16अगस्त, 2021


थक कर जाने सो जाता है।

थक कर जाने सो जाता है।  

सन्नाटों के बीच कहीं पर
जीवन सिमटा खो जाता है
अस्तांचल तक जाते जाते
थक कर जाने सो जाता है।।

बैठ किनारे नदिया देखो
माँझी कितना स्वप्न सँजोता
आती जाती लहरों में वो
कभी सँभलता कभी भिंगोता।
कभी खोल नौका के बंधन
धारा में गुम हो जाता है
अस्तांचल तक जाते जाते
थक कर जाने सो जाता है।।

ऊँचे ऊँचे परबत सारे
आकाशों को चूम रहे हैं
मन के सारे भाव सुनहरे
पंछी बन कर घूम रहे हैं।
पंखों की होड़ा होड़ी में
डूब कहीं गुम हो जाता है
अस्तांचल तक जाते जाते
थक कर जाने सो जाता है।।

उगी चाँदनी कहीं दे रही
नव जीवन की नई चेतना
सन्नाटों की आवाजों में
सुनो आ रही नई सूचना।
नई चेतना पाने खातिर
अहसासों में खो जाता है
अस्तांचल तक जाते जाते
थक कर जाने सो जाता है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       15अगस्त, 2021

तुमसे इतना प्यार मिला है।

तुमसे इतना प्यार मिला है।   

पीड़ा का पथ हुआ सुनहरा
तुमसे इतना प्यार मिला है
ऐसा लगता है जीवन में
जीवन पहली बार मिला है।।

भटका भटका जीवन कितना
तुमसे मिलकर मैंने जाना
खुद से दूर हुआ था कितना
तुमको देखा तब पहचाना
दर्पण के चेहरे में मुझको
खुशियों का अंबार मिला है
पीड़ा का पथ हुआ सुनहरा
तुमसे इतना प्यार मिला है।।

गुम था मैं तो वीराने में
सन्नाटे में पड़ा हुआ था
सागर के नजदीक रहा पर
प्यासा ही मैं पड़ा हुआ था।
तेरे चाहत की बारिश से
जीवन में मधुमास खिला है
पीड़ा का पथ हुआ सुनहरा
तुमसे इतना प्यार मिला है।।

तेरी चाहत की छाया में
बिखरा जीवन खिल जाएगा
अँधियारे में जलते जलते
दीपक सूरज बन जायेगा।
नीरसता से भरे गगन को
अब बाहों का हार मिला है
पीड़ा का पथ हुआ सुनहरा
तुमसे इतना प्यार मिला है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
         15अगस्त, 2021




दुनिया में तेरा मान रहे।

दुनिया में तेरा मान रहे।  

राष्ट्र मेरे ऐ राष्ट्र मेरे
ऊंचा तेरा सम्मान रहे
जब तक ये सूरज चन्द्र रहे
दुनिया में तेरा मान रहे।।

मेरे जैसे कितने जीवन
तेरी गोदी में पलते हैं
क्या मुरझायेगा पुष्प यहाँ जो
तेरी माटी में खिलते हैं।
तूने सींचा तूने पाला
ऊंचा ये तेरा भाल रहे
जब तक ये सूरज चन्द्र रहे
दुनिया में तेरा मान रहे।।

इस गोदी में गाँधी गौतम
श्री राम कृष्ण बलराम पले
वीर शिवाजी, राणा, लक्ष्मी
अरु कण कण में भगवान पले।
गीता वेद पुराण उपनिषद
रहती दुनिया तक ज्ञान रहे
जब तो ये सूरज चन्द्र रहे
दुनिया में तेरा मान रहे।।

नदियों में तेरी खुशियाँ हैं
खेतों में खिलती कलियाँ हैं
कर रही सुशोभित दुनिया को
ऐसी रोशन ये गलियाँ हैं।
तुझसे दुनिया को ज्ञान मिला है
हर दिल में ये अभिमान रहे
जब तक ये सूरज चन्द्र रहे
दुनिया में तेरा मान रहे।।

बस इतनी सी चाहत मेरी
जनम जनम तुझको ही पाऊँ
जब जब भी कोई गीत रचूं
और नहीं बस तुझको गाऊँ।
तुझसे ही है जीवन मेरा
अरु तुझपर अर्पित जान रहे
जब तक ये सूरज चन्द्र रहे
दुनिया में तेरा मान रहे।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15अगस्त, 2021

आजादी को पूज रहे हम।

आजादी को पूज रहे हम।  

व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं
जन गण मन के भीतर देखो
इक दूजे को ढूँढ़ रहे हैं।।

आजादी कब सरल रही है
बरसों से सुनते आए हैं
पग पग अगणित कष्ट सहे हैं
तब जाकर ये दिन आये हैं।
इस दिन की गुरुता को देखो
इक दूजे में ढूँढ़ रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।

जात पात अरु ऊंच नीच के
भेद हृदय को बींध रहे हैं
राजनीति अब चाल बदल कर
वोटों की मुट्ठी भींच रहे हैं।
अब गिरती शुचिता में क्यूँ सब
निज लाभों को खोज रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।

अवसरवादी नारे सारे
भारत का पथ भरमाते हैं
भृष्ट आचरण धन लोलुपता
क्यूँ कुछ लोगों के मनभाते हैं।
राजनीति में शुचिता जैसे
कंकर-चावल खोज रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।

खण्डित नारों से जा कह दो
उनका जीवन पूर्ण हो चुका
पग पग पर हैं अटल इरादे
भारत अब संपूर्ण हो चुका।
लेकिन घर के भेदी को फिर
आँगन में क्यूँ पाल रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।

चाल चरित्र जाने कब बदला
कैसे बदले पुण्य हमारे
सत्ता तक जाने की खातिर
कब बदले सिद्धांत हमारे।
सिद्धांतो की बलि देकर हैं
सिद्धांतों को ढूँढ़ रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।

भारत नव निर्माण चाहता
सपनों का आकार चाहता
निकल व्याधि औ जंजीरों से
नूतन अब आकाश चाहता।
आओ सब मिल पंथ बुहारें
अब भी हम क्या ढूँढ़ रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15अगस्त, 2021











मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ।

मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ।   

मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ
है ये इतिहास सुनहरा मेरा
मैं चतुरदिषाएँ जोड़ रहा हूँ।।

मैं आजादी का नायक हूँ
मैं राष्ट्र गीत का गायक हूँ
मैं जन जन की विकल भावना
मैं राष्ट्र प्रेम का वाहक हूँ।।
राष्ट्र भावना जनमानस में
सदियों से मैं घोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

अंग्रेजों ने खींच लकीरें
भारत लहूलुहान किया था
अपने स्वार्थ सिद्धि की खातिर
जन गण का अपमान किया था
अंग्रेजों के दमन चक्र की
उन पन्नों को खोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

लक्ष्मी, तांत्या, मंगल पांडे
नाना कितने वीर चले हैं
लिए मशाल क्रांति की देखो
बन कर के रणवीर चले हैं।।
तन मन धन सब किया समर्पित
उनकी गाथा बोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

मैं मुक्ति युद्ध बन पलता हूँ
मैं अंगारों पर चलता हूँ
भारत की मृदु स्मृति बनकर के
मैं जन गण मन में मिलता हूँ।।
वीरों की उस मधुर कल्पना
जज्बातों को बोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

मैं चाल चरित्र का द्योतक हूँ
मैं राष्ट्र प्रेम का पोषक हूँ
मैं बलिदानों का मूल मंत्र
मैं उम्मीदों का पोषक हूँ।।
राष्ट्र प्रेम की अलख जगा दे
मैं ऐसा रास्ता खोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

अत्याचारों से पीड़ित हो
जनता आवाज उठाई थी
धर्म राष्ट्र का भाव लिए ही
आशा की ज्योति जगाई थी।।
ज्योति जली बरसों पहले जो
मैं उसकी गाथा बोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

धर्म जाती मजहब ना कोई
इक सूत्र सब बंधे हुए थे
आजादी का प्रण लिए सभी
संकल्पों में गुंधे हुए थे।।
संकल्पों के भाव सभी वो
जन गण मन में घोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

आजादी के दीवानों पर
पग पग पर दमन चलाया था
अरु अंग्रेजी आतंकों ने 
भारत का लहू बहाया था।।
लहू बहे आजादी खातिर
मैं गीतों में बोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

एक सूत्र में भारत बांधा
मिलकर कई निशाना साधा
सदियों से खंडित भारत की
आस्थाओं को फिर से बांधा।।
त्याग, समर्पण शौर्य पराक्रम
की गाथा मैं बोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

आजादी का पंथ सुनहरा
अवसादों में ना अब घोलो
अभिव्यक्ति की आजादी है
इसमें कोई विष ना घोलो।।
अभिव्यक्ति की राष्ट्र भावना
राष्ट्रवाद बन घोल रहा हूँ
मैं सन सत्तावन बोल रहा हूँ
आजादी का पथ खोल रहा हूँ।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        11अगस्त, 2021

मैंने रीत लिखे

मैंने रीत लिखे।  

मैंने मर्यादित भावों से शब्द चुने फिर गीत लिखे
शिष्ट सृजन को शब्द चुने तब जाकर के गीत लिखे।।

सूरज से ली तपिश यहाँ पर
चंदा से शीतलता ली है
लिया पवन से मुक्त भाव अरु
तारों से चंचलता ली है।
शब्दों का आलिंगन कर के अपने मन के मीत लिखे
शिष्ट सृजन को शब्द चुने तब जाकर के गीत लिखे।।

लिया पुष्प से खुशबू मैंने
पातों से हरियाली ली है
अवनी से संबल पाया है
अंबर की रखवाली ली है।
पात पात पिय पुष्प चुने तब प्रीत गढ़े नवगीत लिखे
शिष्ट सृजन को शब्द चुने तब जाकर के गीत लिखे।।

लिया प्रखर भावों को जग से
अंतस में प्रिय भाव जगाया
पल पल बीत रहे लम्हों में
जो पाया गीतों में गाया।
जग से लेकर जग को देकर जग की प्रचलित रीत लिखे
शिष्ट सृजन को शब्द चुने तब जाकर के गीत लिखे।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदरबाद
        08अगस्त, 2021


संकल्प।

संकल्प।  

भावनाएँ दृढ़ हैं जो फिर, मुश्किलों की क्या फिकर
चल पड़े दो पग जिधर भी, हैं रास्ते खुलते उधर।।
वट वृक्ष की है आस तो संकल्प भावों में जगा
छाँव भी मिल जाएगी तू दो कदम आगे बढ़ा।।

है वही जीता यहाँ जग जिसने खुद को पा लिया
आँधी में तूफानों में खुद को जो अपना लिया
रास्ते खुद चल पड़े देख कर के उसका हौसला
त्याग, तप, संकल्प जिसने हँस के है अपना लिया।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07अगस्त, 2021

खामोशी से कहना है।

खामोशी से कहना है।  

सीने में तूफान हजारों
आँखों में क्यूँ सूनापन है
खामोशी के कोने में भी
कहीं छुपा वो अपनापन है।
माना इक खामोशी पसरी
पर मुश्किल अब चुप रहना है
जो भी भाव हृदय में जागे
हाँ, खामोशी से कहना है।।

मासूम निगाहों ने देखो
पलक झुका कर सब कह डाला
अधरों ने भी कंपन कर के
बिना कहे सब कुछ कह डाला।
नैनों ने जब बातें कह ली
फिर अधरों से क्या कहना है
जो भी भाव हृदय में जागे
हाँ, खामोशी से कहना है।।

साँसों की सरगम गा गाकर
करती कितने मधुर इशारे
स्वप्नों को भी पंख लगे हैं
आशाएँ भी राह निहारे।
आशाओं ने पंथ बुहारा
मौन नहीं अब रहना है
जो भी भाव हृदय में जागे
हाँ,  खामोशी से कहना है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07अगस्त, 2021

पतझड़ फिर ना आने देना।

पतझड़ फिर ना आने देना।  

ले आये हो मधुवन में तुम
पतझड़ फिर ना आने देना
फिर से आस बँधाई तुमने
उसे नहीं अब मिटने देना।।

मेरी साँसों की वीणा के
ताल तुम्हीं हो राग तुम्हीं
मेरे भावों की थिरकन के
गीत तुम्हीं हो राग तुम्हीं
अपने गीतों के सरगम में
मेरे गीत मिलाने देना
ले आये हो मधुवन में तुम
पतझड़ फिर ना आने देना।।

मेरे जीवन के पृष्ठों पर
अंकित इक इक छंद तुम्हीं
मेरे अंतस के ग्रंथों को
जो भाये हैं वो मंत्र तुम्हीं
पंक्ति पंक्ति हैं शब्द सुनहरे
ये भाव नहीं खोने देना
ले आये हो मधुवन में तुम
पतझड़ फिर ना आने देना।।

कितनी मन्नत बाद मिले हैं
नैनों से बरबस मधु ढलके
आशाओं के पुष्प खिले हैं
हिय मृदु मधुरिम मधुरस छलके।
पलकों में चाहत बन बसना
स्वप्न सुनहरे रचने देना
ले आये हो मधुवन में तुम
पतझड़ फिर ना आने देना।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07अगस्त, 2021



हृदय की प्यास।

हृदय की प्यास।  

मधु का प्याला पास रहा पर
प्यास हृदय की बुझ ना पायी
कहने को पल पल साथ रहा पर
आस मिलन की मिट ना पायी।।

हम दोनों के बीच न जाने
कैसी ये मजबूरी है
पास पास रहकर भी देखो
जाने कैसी दूरी है।
अहसासों के साथ जिये पर
अहसास कभी कह ना पाए
मधु का प्याला पास रहा पर
प्यास हृदय की बुझ ना पायी।।

चले दूर तक जीवन पथ में
इक दूजे का साथ रहा 
छाँव मिली या धूप मिली हो
पल पल अपना साथ रहा।
साथ रहे हम इक दूजे के
मन की लेकिन कह ना पाये
मधु का प्याला पास रहा पर
प्यास हृदय की बुझ ना पायी।।

लम्हों ने जो रची कहानी
सदियाँ उसको दुहराएँगी
हमने जैसी रीत निभायी
रीत वही गायी जायेंगी।
पल पल हमने पंथ बुहारे
लेकिन खुद ही चल ना पाये
मधु का प्याला पास रहा पर
प्यास हृदय की बुझ ना पायी।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अगस्त, 2021

हल्ला बोल दिया।

हल्ला बोल दिया।   

थे खुले हृदय के द्वार सभी
कानों में मिसरी घोल दिया
सिंहनाद कर इतिहासों ने
केसर का बंधन खोल दिया।।

सदियों से छाती पर अपने
इक नश्तर सा था चुभा हुआ
इक धारा बन टीस उभरती
दर्द सा दिल में था दबा हुआ
दूर हुआ नश्तर वो दिल का
अंतस में चंदन घोल दिया
सिंहनाद कर इतिहासों ने
केसर का बंधन खोल दिया।।

दशकों से आतंकी कितने
विष भारत में घोल रहे थे
गली मुहल्ले चौराहों पर
खुले आम विष घोल रहे थे
जंग लगे काले ताले को 
अब आगे बढ़कर खोल दिया
सिंहनाद कर इतिहासों ने
केसर का बंधन खोल दिया।।

कदम कदम पर हमने अपने
कितने ही सैनिक खोये हैं
जब जब देखा ध्वज में लिपटे
सब खून के आँसू रोये हैं
बँधे हाथ थे कल तक जो भी
सब इक झटके में खोल दिया
सिंहनाद कर इतिहासों ने
केसर का बंधन खोल दिया।।

अब भारत की धरती पर बस
भारत के नारे गूंजेंगे
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सब
बस भारत माँ को पूजेंगे
आतंकी मंसूबों पर अब
जन गण ने हल्ला बोल दिया
सिंहनाद कर इतिहासों ने
केसर का बंधन खोल दिया।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05अगस्त, 2021




भूले बिसरे दीवाने- आजादी के।

भूले बिसरे दीवाने- आजादी के।  

काल खंड के शिला लेख पर
कितनी ही अमिट कहानी है
कुछ को है आकार मिला अरु
कुछ बाकी अभी सुनानी है।।

आजादी के दीवानों ने 
खुद मिट कर इतिहास बनाया
निज प्राणों की आहुति देकर
जीना क्या हमको सिखलाया।
और सिखाया जीवन पथ पर
चल, कैसे डगर बनानी है
कुछ को है आकार मिला अरु
कुछ बाकी अभी सुनानी है।।

पुण्य पंथ पर शीश नवा कर
अगणित जीवन निखर गये हैं
कुछ ने है इतिहास बनाया
कुछ पन्नों में सिमट गये हैं।
जो सिमटे पन्नों में दबकर
जन जन को आज बतानी है
कुछ को है आकार मिला अरु
कुछ बाकी अभी सुनानी है।।

कितनों ने बलिदान दिए जब
तब ये धरती मुस्काई है
कितनों ने शोणित से सींचा
तब ये फसलें लहराई हैं।
कुछ के त्याग लिखे गीतों में
अरु कुछ की अभी सुनानी है
कुछ को है आकार मिला अरु
कुछ बाकी अभी सुनानी है।।

आजादी की बलि बेदी पर
कितने हँस कर झूल गए
जग को राह दिखाने खातिर
वो अपना रस्ता भूल गए।
बिसर गए जो इतिहासों में
उनकी पहचान बतानी है
कुछ को है आकार मिला अरु
कुछ बाकी अभी सुनानी है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        04अगस्त, 2021


फिर वही मुलाकातें।

फिर वही मुलाकातें।  

बड़ी मुश्किल से बीते दिन बड़ी मुश्किल हैं ये रातें
चले आओ तुम्हारे बिन कहूँ मैं किससे ये बातें।।

के सारा दिन गुजरता है तुम्हारी याद में खोकर
औ रातों को जगाती हैं तुम्हारे प्यार की बातें।।

था दुआओं में यही माँगा तुम्हारा साथ न छूटे
सुनाऊँ किसको मैं तुम बिन तुम्हारे साथ की बातें।।

तुम्हारे प्यार में डूबे तो जाना जिंदगी क्या है
कहो कैसे मैं भूलूँगा अब पुरानी वो मुलाकातें।।

अधूरे ख्वाब हैं मेरे अधूरी मेरी तमन्नाएं
नहीं भाती तुम्हारे बिन मुझे अब कोई सौगातें।।

कहीं ऐसा न हो के जिंदगी नया कुछ घाव दे जाए
चलो फिर अजनबी बन जायें करें फिर से मुलाकातें।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02अगस्त, 2021

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...