श्रृंगार से सजने लगे।

श्रृंगार से सजने लगे।  

तुम जो आये जिंदगी में ये साज सब बजने लगे
मेरे मन के भावों के श्रृंगार सब सजने लगे।।

निर्वात का घेरा यहाँ था
बस शून्यता चहुँ ओर थी
बेरंग थी दुनिया मिरी ये
ना ओर थी ना छोर थी।।

तुम जो आये जिंदगी में ये शून्य सब भरने लगे
मेरे मन के भावों के श्रृंगार सब सजने लगे।।

शून्यता के उन पलों में हम
मौन खुद खोजा किये हैं
और रास्तों पे जब चले हम
मौन कुछ सोचा किये हैं।

तुम जो आये जिंदगी में ये मौन सब बजने लगे
मेरे मन के भावों के श्रृंगार सब सजने लगे।।

हाथ तेरा क्या हाथ आया
सभी रास्ते खुलने लगे
कितने गीत कोरे पृष्ठ पर
अहसास के लिखने लगे।।

धड़कनों ने गीत गाये अरु साज सब बजने लगे
मेरे मन के भावों के श्रृंगार सब सजने लगे।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       23अगस्त, 2021



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