पाषाणों से कहना चाहा।

पाषाणों से कहना चाहा।

जिससे भी मन की बात कही वो मौन हुए या दूर हुए
शायद मैंने भूल करी जो पाषाणों से कहना चाहा।।

पल पल जिनपर प्यार लुटाया
जिनपर है विश्वास जताया
जिनको हरपल अपना माना
उनसे ही ठोकर है खाया।।

विश्वास जताये जितने ही हम उतने ही मजबूर हुए 
शायद मैंने भूल करी जो विश्वासों पर चलना चाहा।।
शायद मैंने.........।।

जाने अनजाने वारों ने
दिल को कितना घात दिया है
कितने मीठे व्यवहारों ने
पग पग पर आघात दिया है।
आघात मिला जितना दिल को सबसे उतना ही दूर हुए
दूर हुए चाहे सबसे हम लेकिन दिल से मिलना चाहा।।
शायद मैंने.........।।

करी प्रेम की आशा जब भी
तब तब छल का वार हुआ है
टूटा हूँ जब शीश झुकाया
कुछ ऐसा व्यवहार हुआ है।
व्यवहार हुआ है कुछ ऐसा के हटने को मजबूर हुए
मजबूर हुए लेकिन फिर भी दिल से सबसे जुड़ना चाहा
दूर हुए चाहे सबसे हम लेकिन दिल से मिलना चाहा।।
शायद मैंने...........।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
        26अगस्त, 2021





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