पीर लिखी मैंने बिरहन की।
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।
मधुमासों के बीच रहे पर
मधुमासों की आस रही
बीच समुंदर खड़े रहे पर
जाने कैसी प्यास रही।।
पल पल प्यासे उस जीवन की, पीर लिखी मैंने नयनन की
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।
बीच लहर तुम छोड़ चले जब
पतवारों की आस नहीं
जब डगमग डगमग नैया डोली
उस क्षण कोई पास नहीं।।
सागर से क्या करूँ याचना, गीत लिखे मैने धड़कन की
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।
शीतल चंदा की किरणों ने
कितनी बार जलाया है
छली गयी हैं यादें पल पल
जब जब याद दिलाया है।।
यादें जब जब तड़पाईं हैं, गीत लिखे मैंने तड़पन की
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।
जीवन के इस मरूभूमि को
आँखें कब तक सींचेंगी
सागर से मिलने की खातिर
नदिया कब तक तरसेंगी।।
इन पलकों में आस लिए फिर, प्रीत लिखी मैंने नयनन की
जब जब भी सावन आया है, पीर लिखी मैंने बिरहन की।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
20अगस्त, 2021
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