प्रेम समर्पण।
तुम इसका जीवन बन जाओ
मैं बन जाऊँ कृष्ण तुम्हारा
तुम मेरि राधिका बन जाओ।।
जो मैं बन जाऊँ त्याग यहाँ
तुम प्रेम समर्पण बन जाओ
जो बन जाऊँ शाख यहाँ मैं
तुम सुंदर कलियाँ बन जाओ।।
मैं बन जाऊँ भ्रमर यहाँ जो
तुम पुष्प वाटिका बन जाओ
मैं बन जाऊँ कृष्ण तुम्हारा
तुम मेरि राधिका बन जाओ।।
हो प्रेम स्फुटित मन उपवन में
पुष्पों से मन आच्छादित हो
रोम रोम मधु भाव जगे अरु
हृदय प्रेम से आह्लादित हो।।
मैं बन जाऊँ स्नेह मनोहर
तुम स्वर्णिम बेला बन जाओ
मैं बन जाऊँ कृष्ण तुम्हारा
तुम मेरि राधिका बन जाओ।।
धीमे धीमे बहता है मन
कुछ सुनो जरा क्या कहता है
संग संग जीवन के कितने
ये स्वप्न सँजोते रहता है।।
मैं बन जाऊँ शब्द सुनहरा
अरु गीतों में तुम छा जाओ
मैं बन जाऊँ कृष्ण तुम्हारा
तुम मेरि राधिका बन जाओ।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21अगस्त, 2021
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