कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बदल से।
कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बादल से।।
मस्त बहारों का आशिक हूँ
मदमस्त यहाँ मैं फिरता हूँ
मेरे मन को जो भाता है
वो खुलकर के मैं करता हूँ।।
चंचलता है नदिया से सीखी अरु लहराना सागर से
कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बादल से।।
जग के संतापों को सारे
हमने हँसकर के टाला है
फूल मिले या काँटे जग से
सबको हँसकर के पाला है।।
धैर्य लिया धरती से हमने मिलना जुलना गंगाजल से
कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बादल से।।
जीवन के सारे रंगों ने
मिलकर के रूप सजाया है
कलियों अरु पुष्पों ने मिलकर
सारा उपवन महकाया है।।
पंछी से कलरव सीखा है अरु खिलना माँ के आँचल से
कुछ रंग चुराए हैं हमने इस आवारा बादल से।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25अगस्त, 2021
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