अब कैसे मैं तुम्हें पुकारूँ।

अब कैसे मैं तुम्हें पुकारूँ।  

कितने दूर बसे हो जाकर, अब कैसे मैं तुम्हें पुकारुँ 
कदम कदम पर लाखों पहरे, अब कैसे मैं नजर उतारूँ।।

कैसे भूल गए वो वादे
कैसे भूली बतियाँ सारी
कैसे भूले गीत मिलन के
और सुहानी रतियाँ सारी।।

मन की मन में दबी रह गयी, किसके सम्मुख उन्हें निकारूँ
कितने दूर बसे हो जाकर, अब कैसे मैं तुम्हें पुकारुँ।।

टूटे सपनों की ड्योढ़ी पर
अरमानों का भार लिए हूँ
कैसे तुमको आज बताऊँ
मन में क्या उपहार लिए हूँ।।

पलकों में कुछ अश्रू बचे हैं, बोलो कैसे उन्हें निकारूँ
कितने दूर बसे हो जाकर, अब कैसे मैं तुम्हें पुकारुँ।।

जाने कैसी भूल हुई है
जो आज सजा ये पायी है
अब किससे अरदास करूँ मैं
क्यूँ होती ना सुनवाई है।

अधरों पर पीड़ा ठहरी है,  किस विधि बोलो उन्हें निकारूँ
कितने दूर बसे हो जाकर, अब कैसे मैं तुम्हें पुकारूँ।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19अगस्त, 2021



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

राम-नाम सत्य जगत में

राम-नाम सत्य जगत में राम-नाम बस सत्य जगत में और झूठे सब बेपार, ज्ञान ध्यान तप त्याग तपस्या बस ये है भक्ति का सार। तन मन धन सब अर्पित प्रभु क...