क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।
जाने कैसी बदली छाई
हमने जब जब हँसना चाहा
क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।।
रहे ताप में जीवन भर हम
पंथ तुम्हारा शीतल रखा
जाने कितने दंश सहे हैं
हृदय को अपने कोमल रखा।।
निर्मल रखा मन भावों को
फिर भी जाने ठोकर खाई
हमने जब जब हँसना चाहा
क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।।
दिन डूबा अरु साँझ हुई जब
हमने मन का दीप जलाया
अँधियारे को दूर किया जब
मन में बस तुमको ही पाया।।
फिर जाने क्या बात हुई जो
है मिली मुझे बस रुसवाई
हमने जब जब हँसना चाहा
क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।।
अपनी इच्छाओं को हर पल
तेरी इच्छाओं पर वारे
तुम्हें जीत दिलाने खातिर
कदम कदम पर हम तो हारे।।
जीवन की चौसर पर हमने
जाने कितनी ठोकर खाई
हमने जब जब हँसना चाहा
क्यूँ मुझे मिली बस तन्हाई।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22अगस्त, 2021
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