थक कर जाने सो जाता है।

थक कर जाने सो जाता है।  

सन्नाटों के बीच कहीं पर
जीवन सिमटा खो जाता है
अस्तांचल तक जाते जाते
थक कर जाने सो जाता है।।

बैठ किनारे नदिया देखो
माँझी कितना स्वप्न सँजोता
आती जाती लहरों में वो
कभी सँभलता कभी भिंगोता।
कभी खोल नौका के बंधन
धारा में गुम हो जाता है
अस्तांचल तक जाते जाते
थक कर जाने सो जाता है।।

ऊँचे ऊँचे परबत सारे
आकाशों को चूम रहे हैं
मन के सारे भाव सुनहरे
पंछी बन कर घूम रहे हैं।
पंखों की होड़ा होड़ी में
डूब कहीं गुम हो जाता है
अस्तांचल तक जाते जाते
थक कर जाने सो जाता है।।

उगी चाँदनी कहीं दे रही
नव जीवन की नई चेतना
सन्नाटों की आवाजों में
सुनो आ रही नई सूचना।
नई चेतना पाने खातिर
अहसासों में खो जाता है
अस्तांचल तक जाते जाते
थक कर जाने सो जाता है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       15अगस्त, 2021

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