उपवन बोलो कब रोता है।

उपवन बोलो कब रोता है।  

झेल थपेड़े तूफानों के 
आँधी से हैं चोटें खाई 
पग पग कितना कष्ट सहा है
मुख से लेकिन उफ ना आयी
कितना सुनता, पर हँसता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

सींच लहू से पैदा करता
कदम कदम रखवाली करता
क्यारी क्यारी स्वप्न सँजोता
पंक्ति पंक्ति के खर है हरता
पग पग बस स्वप्न पिरोता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

जब जब जिसने जैसा चाहा
जग को पुष्प दिया है उसने
जाने कितने शूल चुभे हैं
लेकिन कष्ट सहे सब उसने
सहता, विश्वास नहीं खोता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

जाने कितने ताप सहे हैं
स्वेद बूँद से लथपथ लथपथ
चला अकेला राह बनाने
लिखने रचने पग पग नव पथ
पग पग उम्मीदें बोता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

सींच जड़ों को संस्कारों से
पुण्य पवित्र पावन करता है
आशाओं अरु व्यवहारों से
अंतस के सब खर हरता है
पावनता पग पग ढोता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

सच है सबकी इच्छाओं को
पूरा करना आसान नहीं
अंतस के भावों को जाने
कहीं ऐसा प्रावधान नहीं
सुनता है, कोशिश करता है
उपवन बोलो कब रोता है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30अगस्त, 2021



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