मैं क्या करूँगा।
प्यार भी सत्कार भी
और शब्दों से खिला है
गीत का संसार भी
पर गीत जो तुम गा न पाए
गीत गाकर क्या करूँगा
जो तुम हमारे हो न पाए
संसार में मैं क्या करूँगा।।
लोग कहते हैं शब्द में
है छुपा संसार ये
भाव जिस हिय में बसे है
बसते वहीं प्यार भी
पर जिस हृदय में प्यार ना हो
बस कर वहाँ मैं क्या करूँगा
जो तुम हमारे हो न पाए
संसार में मैं क्या करूँगा।।
वक्त की पाबंदियों से
तुम घिरे हम भी घिरे
वक्त के आगोश से क्या,
पता लम्हा कब गिरे
हाथों से छूटा जो लम्हा
फिर शोक कर के क्या करूँगा
जो तुम हमारे हो न पाए
संसार में मैं क्या करूँगा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
31अगस्त, 2021
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