मुक्तक।

मुक्तक। 

गोधूली बेला में बनकर दीपक तुम यूँ आये
मेरे मन मंदिर में तुमने लाखों दीप जलाए
प्रीत जगे अंग अंग में यूँ सजे बाहों का हार
ज्यूँ संझा के आँचल में शशि सुंदर रूप दिखाए।।


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