आजादी को पूज रहे हम।
आजादी को पूज रहे हैं
जन गण मन के भीतर देखो
इक दूजे को ढूँढ़ रहे हैं।।
आजादी कब सरल रही है
बरसों से सुनते आए हैं
पग पग अगणित कष्ट सहे हैं
तब जाकर ये दिन आये हैं।
इस दिन की गुरुता को देखो
इक दूजे में ढूँढ़ रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।
जात पात अरु ऊंच नीच के
भेद हृदय को बींध रहे हैं
राजनीति अब चाल बदल कर
वोटों की मुट्ठी भींच रहे हैं।
अब गिरती शुचिता में क्यूँ सब
निज लाभों को खोज रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।
अवसरवादी नारे सारे
भारत का पथ भरमाते हैं
भृष्ट आचरण धन लोलुपता
क्यूँ कुछ लोगों के मनभाते हैं।
राजनीति में शुचिता जैसे
कंकर-चावल खोज रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।
खण्डित नारों से जा कह दो
उनका जीवन पूर्ण हो चुका
पग पग पर हैं अटल इरादे
भारत अब संपूर्ण हो चुका।
लेकिन घर के भेदी को फिर
आँगन में क्यूँ पाल रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।
चाल चरित्र जाने कब बदला
कैसे बदले पुण्य हमारे
सत्ता तक जाने की खातिर
कब बदले सिद्धांत हमारे।
सिद्धांतो की बलि देकर हैं
सिद्धांतों को ढूँढ़ रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।
भारत नव निर्माण चाहता
सपनों का आकार चाहता
निकल व्याधि औ जंजीरों से
नूतन अब आकाश चाहता।
आओ सब मिल पंथ बुहारें
अब भी हम क्या ढूँढ़ रहे हैं
व्याकुलता के शीर्ष पर खड़े
आजादी को पूज रहे हैं।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15अगस्त, 2021
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