कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।

कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।  

जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये
कुछ माला में गूंध गए अरु
कुछ पग पग पर ठोकर खाये।।

पलकों ने कब चाहा उसके
प्रिय अश्रू गिरे अरु मिट जायें
आहों ने कब चाहा दिल के
अरमान गिरे अरु मिट जायें
हंसे कभी कभी रोये अश्रू
और कभी बदली बन छाये
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

अंतर्मन ने कब चाहा है
भाव दबे और कुम्हलायें
मधुमासों ने कब चाहा है
हाय बिरह की वो पीड़ाएँ
आशाओं के महाकुंभ में
हैं अंतर्मन की ज्वालायें
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

पग पग दीप जलाए जितने
आस प्राण में आये उतने
अहसासों की पृष्ठ भूमि पर
स्वप्न सुनहरे आये उतने
पलकों की ड्योढ़ी पर सपने
कभी हँसाये कभी रुलाये
जीवन के इस महासमर में
कुछ पुष्प खिले कुछ मुरझाये।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17अगस्त, 2021


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