सब गीत लिखे जीवन के।
सब गीत लिख दिए जीवन के
जो शेष बच गए प्राक्क्थन।।
प्रातःकाल ड्योढ़ी पर सूरज
दे आहट करता है नर्तन
रूप सजाता है जीवन का
पल पल भरता है आकर्षन।।
भावों को अभिव्यक्त करे जो
नूतन आशा का अभिनंदन
सब गीत लिख दिए जीवन के
जो शेष बच गए प्राक्क्थन।।
पुरवाई का झोंका लहका
कहीं किसी का बहका मन
झूम झूम कर कलियाँ नाची
कहीं किसी का नाचा तन।।
बह के पुरवा के झोंके में
कलियों ने भरा राग नूतन
सब गीत लिख दिए जीवन के
जो शेष बच गए प्राक्क्थन।।
गूँजी है खनक हवाओं की
छूकर मन का पावन चंदन
अब क्यों व्यथित व्यथाएँ होंगी
बस खुशियों के होंगे नर्तन।।
छंद छंद नवगीत सजे हैं
पंक्ति पंक्ति भावों का वंदन
सब गीत लिख दिए जीवन के
जो शेष बच गए प्राक्क्थन।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30अगस्त, 2021
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