रात की मदहोशियाँ।
रात की आगोश में मदहोश मैं भी हो रहा।।
काली घटाएं केश की
कर रही मदहोश मुझको
तेरी चितवन और अदायें
खींचती तेरी ओर मुझको।
अधरों के कंपित निमंत्रण में होश मैं खो रहा
रात की आगोश में मदहोश मैं भी हो रहा।।
फैली हुई है रोशनी
चहुँओर तेरे प्यार की
साँस की सरगम सजी है
है रात ये बाहर की।
मुक्त आलिंगन में तेरे होश देखो खो रहा
रात की आगोश में मदहोश मैं भी हो रहा।।
आज मेरी आवारगी को
जब तेरा आलिंगन मिला
दूर वो सारे भ्रम हुए
औ प्रीत को स्पंदन मिला।
इस मधुर मधुमास में मैं होश अपने खो रहा
रात की आगोश में मदहोश मैं भी हो रहा।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
31दिसंबर, 2020