ख्वाहिशें उम्र भर छलती रहीं।

ख्वाहिशें उम्रभर छलती रहीं।   

रास्ते भर ये जिंदगी स्वप्न में पलती रही
साथ कितनी ख्वाहिशें उम्रभर छलती रहीं।।

हम भी चले उस राह पर
जिस राह सारा जग चला
हम भी पले उस ख्वाब में
जिस ख्वाब सारा जग पला।

फिर हुई क्या चूक जो मंजिलें छलती रहीं।
साथ कितनी ख्वाहिशें उम्रभर छलती रहीं।।

हमने तो हर फर्ज अपना
सहज शिद्दत से निभाया
और कितने घाव झेले
पर नही किसको दिखाया।

अपनों की पर उँगलियाँ उम्रभर खलती रहीं
साथ कितनी ख्वाहिशें उम्रभर छलती रहीं।।

यूँ जले जिसके लिए हम
निज ख्वाहिशें सब खो पड़ीं
सुन के उसके प्रश्न सभी
मिरी आत्मा भी रो पड़ी।

थी अपनी भूल कोई आत्मा जलती रही
साथ कितनी ख्वाहिशें उम्रभर छलती रहीं।।

अब वक्त को क्या दोष दूँ
ये कोइ अपनी भूल थी
और सीने में चुभी जो
अपनी जनी वो शूल थी।

शाम के इस धुंध में गलतियाँ खलती रही
साथ कितनी ख्वाहिशें उम्र भर छलती रहीं।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       08दिसंबर, 2020



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...