कर तू जतन।

कर तू जतन।  

उद्विग्न भाव ले खड़ा 
निहार रहा भोर को
दिव्य आस्था लिए वो
नापता है छोर को।

भविष्य पर रखे नजर
सँभल रहा डगर डगर
कर रहा जतन वो सब
त्याग यहाँ अगर मगर।

कह रही है राह सब
प्रयास तो करो जरा
मंजिलों की दौड़ में
दो पग तो चलो जरा।

तेरा हर जतन यहाँ
सुदृढ कर रहा गमन
त्याग तू शंका सभी
लक्ष्य का तू कर मनन।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      23दिसंबर, 2020

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