शतरंज की बिसात।
कितनी ही सौगात यहां पर देखी है।
जिसको देखो वही सूर्य को तकता है
बस उसकी ताकत के आगे झुकता है।
फिर ताकत का प्रभाव वो दिखलाता है
और तेज से अपने सबको बहलाता है।
फिर एक अलग मंजर पैदा होता है
जो बस इच्छाओं का प्रभाव होता है।
बहुत नहीं बस थोड़े ऐसे होते हैं
औरों के खेतों में सपने बोते हैं।
फिर अपनी इच्छा का वो भार थोपते
शर्तें सभी मनवाने को राह रोकते।
फिर तय करते सारे क्या खाए गायें
किसे कहें पराया औ किसको अपनाएं।
फिर चलता खेल स्वार्थ की बेदी पर
बिकते प्यादे शतरंजों की बेदी पर।
औ छुपा रुस्तम फिर सरताज हो गया
प्यादे से बढ़ कर उसका राज हो गया।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26दिसंबर, 2020
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