अहसासों के आँगन में।
जब पीछे देखा जीवन में
मन में तब अहसास हुआ
क्या खोया सबने उपवन में।
लोभ मोह जिद के आगे
कैसे जीवन उलझ गया
थे चले कभी संग संग जो
कैसे बिखरा औ विलग हुआ।
गिरी वहाँ जब शुचिता सारी
टूटी नैतिकता जीवन में।
मन में तब अहसास हुआ
क्या खोया सबने उपवन में।।
सिंहासन के इर्द गिर्द जब
गिद्ध बहुत मँडराते हैं
नीति ज्ञान सब सूने होते
घाव बहुत दे जाते हैं।
छोटे छोटे झगड़े कैसे
आग लगाते जीवन में।
मन में तब अहसास हुआ
क्या खोया सबने उपवन में।।
अनैतिकता जब करे नियंत्रण
नैतिकता के पैमानों को
बिखर सभी ढह जाती खुशियाँ
ध्वस्त करे सब अरमानों को।
बिखरी इच्छाओं में रहकर
उलझा जीवन अनबन में।
मन मे तब अहसास हुआ
क्या खोया सबने उपवन में।।
विदुर नीति की बातें सारी
जब रिश्तों पर लगती भारी
जब झूठ प्रभावी होने लगता
और सत्य पर चलती आरी।
ज्ञान ध्यान सब व्यर्थ हुआ तब
अंधकार बढ़ा अंतर्मन में।
मन में तब अहसास हुआ
क्या खोया सबने उपवन में।।
सिद्धांतों की जब बलि चढ़ेगी
अनीतियों के आंगन में
तब छायेगा काला बादल
प्रलय मचेगी जीवन में।
अंत समय पछताना होता
लेती मौत जब आलिंगन में।
मन में तब अहसास हुआ
क्या खोया सबने उपवन में।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15दिसंबर, 2020
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