वो तारण हारे।

वो तारण हारे। 

भटक रहे मन की पीड़ा ले
आया हूँ मैं द्वार तिहारे।
राह सूझती कुछ ना मुझको
तुम बिन किसको आज पुकारें।

विह्वल है मन का हंसा
इच्छाओं का भार लिए
इत उत मन भटक रहा है
सपनों का अंबार लिए।

भटक रहे मन के भावों को
बिना तुम्हारे कौन सम्हारे।
राह सूझती कुछ ना मुझको
तुम बिन किसको आज पुकारें।।

बुद्धिहीन ये ज्ञानहीन ये
तुम बिन कौन इसे समझाए
गुण क्या है अवगुण है क्या
तुम बिन कौन इसे बतलाए।

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह
के जंजालों में भटका रे।
राह सूझती कुछ ना मुझको
तुम बिन किसको आज पुकारें।।

सुप्त हो रही आज चेतना 
प्रभु फिर से इसे जगा जाओ
हिय में सबके प्रेम बसे प्रभु
कुछ ऐसी रीत चला जाओ।

मन का सारा मैल मिटा दो
जगपालक हो तारण हारे।
राह सूझती कुछ ना मुझको
तुम बिन किसको आज पुकारें।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       17दिसंबर, 2020

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