व्हाट्सएप्प सत्संग।

व्हाट्सएप्प सत्संग।  

देख मची सत्संग वहां भी
लोभ जहां पर देखा है
और शिकन उन माथों पर भी
जिनकी किस्मत की रेखा है।

इक दूजे को ज्ञान बाँटते
कितनों को हमने देखा है
खुद के भीतर उनको लेकिन
नहीं झांकते देखा है।

आज भर रहे फोन सभी
कितनी ही प्यारी बातों से
फिर न जाने क्यों उड़ रही
रातों को नींदें आंखों से।

फ़ेसबुक व व्हाट्सएप्प मंच
ज्ञान बहुत ही देते हैं
लेकिन जाने अनजाने में
वक्त बहुत ले लेते हैं।

जिन लम्हों में परिवारों सह
वक्त बिता सकते हैं सारे
उन लम्हों में देखो अब तो
बैठे केवल फोन सहारे।

जिन बातों से यहाँ प्रभावित
हो ज्ञान मुखर सब भेज रहे
जो उनको अपना लें सारे
तो आपस में बस नेह रहे।

वक्त फोन से थोड़ा कम कर
परिवारों में जो मिलते हैं
उनका जीवन सुखमय रहता
संस्कारों से वो खिलते हैं।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       01दिसंबर, 2020






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