प्रेम-ग्रंथ।
तुमसे ही मेरी शाम है
तुमसे सारा दिवस खिला है
खिली तुम्हीं से रात है।
तुम्हीं मेरे साँसों की सरगम
मन के वीणा की तान हो
प्राणवायु तुम मेरे प्रियवर
तुम ही जीवन का गान हो।
संग तेरा काशी सा पावन
कण कण मथुरा औ वृंदावन
तेरे आलिंगन में मुझको
पतझड़ भी लगता है सावन।
तुम बिन कुछ भी सोचूं मैं
ये मुझको मंजूर नहीं है
आओ कह दें सारे जग से
प्रेम हमारा मजबूर नहीं है।
इस दुनिया में जब जब भी
कोई प्रेम ग्रंथ लिखा जाएगा
सच कहता हूँ हर पन्नों में
नाम हमारा ही आएगा।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
02दिसंबर, 2020
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