तुम्हीं कहो कि क्या करता।

तुम्हीं कहो कि क्या करता।।

जीवन को जीने की खातिर
मैं जाने कितनी बार मरा
कभी सँभाला है खुद को
औ चक्रव्यूह में कभी घिरा।

चक्रव्यूह में उलझ गया जब 
लड़ूँ नहीं तो क्या करता।
निज जीवन रक्षण हेतु मैं
तुम्हीं कहो कि क्या करता।।

मोड़ मोड़ पर नई कहानी
सुनी सुनाई कुछ अनजानी
कुछ ने कितने घाव दिए हैं
और सही कितनी मनमानी।

मलहम की आस नहीं जब
घाव दिखा मैं क्या करता।
निज जीवन रक्षण हेतु मैं
तुम्हीं कहो कि क्या करता।।

गीत लिखे जितने भी मैंने
सब पन्नों में दबे रह गए
औरों ने तो सब कह डाले
मन की मन में घुटे रह गए।

बिखरी जब गीतों की दुनिया
साज सजा कर क्या करता।
निज जीवन रक्षण हेतु मैं
तुम्हीं कहो कि क्या करता।।

संबंधों के अनुबंधों की
सब शर्तों को स्वीकार किया
लेकिन जीवन की चौसर पर
संबंधों को ही हार गया।

हार गया जब अपनों से ही
आस किसी से क्या करता।
निज जीवन रक्षण हेतु मैं
तुम्हीं कहो कि क्या करता।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       09दिसंबर, 2020






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