राह अकेली।

राह अकेली।     

आज चली है राह अकेले
मिलने इक दीवाने को।
आज चला हूँ फिर से लिखने
दिल के इक अफसाने को।।

मुझको रोक नहीं सकते हैं
राहों में कोई बाधाएं
मुझको टोक नहीं सकते हैं
संवादों की अब सीमाएं।

किंतु-परन्तु से ऊपर उठकर
बस खुद को बहलाने को।
आज चला हूँ फिर से लिखने
दिल के इक अफसाने को।।

दुनिया ने कितने दांव चले हैं
धूप जली है पांव जले हैं
बनकर कितने हमराही
पग पग पर हर बार छले हैं।

छल कपट औ षडयंत्र को
पथ से आज मिटाने को।
आज चला हूँ फिर से लिखने
दिल के इक अफसाने को।।

दिल से दिल का मेल नहीं जब
इच्छाएं फिर क्या करना
आपस में हो प्रेम नहीं जब
उम्मीदें फिर क्या करना।

ऐसे सारे संबंधों को
चला आज भुलाने को।
आज चला हूँ फिर से लिखने
दिल के इक अफसाने को।।

लोभ, मोह, माया की दुनिया
से दूर बहुत मुझको जाना है
नहीं किसी से रही कामना
अब खुद को ही अपनाना है।

बहुत तपा औरों की खातिर
अब खुद को अपनाने को।
आज चला हूँ फिर से लिखने
दिल के इक अफसाने को।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       03दिसंबर, 2020

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