बचपन फिर से मिल जाता।
बचपन फिर से मिल जाते।
फिर से वो तुतलाती बोली
फिर से वो मस्ती की टोली
इक दूजे संग साथ मे चलना
आंख मिचौली, हँसी ठिठोली।
फिर से भोलापन मिल जाता
फिर वो अल्हड़पन मिल जाते।
काश पुराने दिन आ जाते
बचपन फिर से मिल जाते।।
तृष्णाओं का भार नहीं था
दूषित कुछ व्यवहार नहीं था
दुग्ध समान श्वेत भाव भरे
रहस्यमय संसार नहीं था।
काश वही चेहरे मिल जाते
स्कूलों के दिन आ जाते।
काश पुराने दिन आ जाते
बचपन फिर से मिल जाते।।
शुद्ध सरस जीवन था अपना
मृदुल शरद सा उपवन अपना
अधरों पर मुस्कान सजी थी
नैनों में बस सुन्दर सपना।
काश वही सपने मिल जाते
और वही अपने मिल जाते।
काश पुराने दिन आ जाते
बचपन फिर से मिल जाते।।
अब तो ऐसी होड़ मची है
बचपन की वो डोर छुटी है
हर चेहरा कुम्हलाया है
संबंधों की डोर टुटी है।
डोर छुटी जो फिर मिल जाते
मुरझाईं कलियाँ खिल जाते।
काश पुराने दिन आ जाते
बचपन फिर से मिल जाते।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
07दिसंबर, 2020
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