जब सूरज निकलता है।।
अलसाई सुबह का तब
रूप ये बदलता है।।
दूर इक कोने पर
देखो लालिमा दिखती है
और दूजे कोने पर
कालिमा भी छिपती है
आंखमिचौली का
ये खेल देख कर
दिल ये मचलता है।
बादलों के झुरमुट से
जब सूरज निकलता है।।
तुम भी कभी देखो तो
निकल कर बगीचों को
और कभी खोल कर के
देखो मन के दरीचों को।
जाने कितनी चाहतों का
मन में सागर उमड़ता है।
बादलों के झुरमुट से
जब सूरज निकलता है।।
आओ चलो मिल जाएं
छोड़ सारे अँधियारे
और फिर खिलखिलायें
सुने पड़े गलियारे।
ज़िंदगी चहकती है तब
जब प्रेम ये पनपता है।
बादलों के झुरमुट से
जब सूरज निकलता है।।
अलसाई सुबह का तब
रूप ये बदलता है।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
10दिसंबर,2020
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