मन मधुप है डोलता।
कैसे कहूँ दिल सोचता
संग तेरे प्राप्ति को
ये मन मधुप है डोलता।।
संग तेरा हर घड़ी
पाथेय मेरी बन खड़ी
और मेरी राह में
जुड़ने लगी नूतन कड़ी।
उस कड़ी के पाश को
प्रति पल यहां मैं खोजता
संग तेरे प्राप्ति को
ये मन मधुप है डोलता।।
तिरी ये अनुरागियाँ
हर पल खिली मधुमास सी
और वो आसक्तियाँ
प्राणों में उच्छ्वास सी।
गीत का वो राग तुम
हर पल जिसे मैं सोचता
संग तेरे प्राप्ति को
ये मन मधुप है डोलता।।
सूक्ष्म जीवन की घड़ी
औ दीर्घ सपने हैं यहाँ
जो मिला साथ तेरा
तो जीत लूंगा मैं जहॉं।
तुमसे स्मृतियाँ मेरी
पाथेय बन दिल जोहता
संग तेरे प्राप्ति को
ये मन मधुप है डोलता।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
05दिसंबर, 2020
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