झील के तट पर बिखरती
दिख रही तनहाइयाँ
साथ उसके चल रही हैं
आज बस परछाइयाँ।
वक्त का है खेल ये सब
वश नहीं है किसी का
काल जिसका साथ देता
वक्त चलता उसी का।
भूल जा हर बात वो जो
रात दुख का सार थी
और तेरी चाहतों पर
जो कर रहीं वार थी।
रात का अंतिम पहर अब
बीतने की ओर है
भोर की पहली किरण में
दिख रहा नव छोर है।
झील के उस पार देखो
इक किरण है दिख रही
चल चलें उस पार देखो
रोशनी है दिख रही।।
अब तू ही कर निर्णय स्वयं
तू संगी है किसका
सत्य के जो साथ चलता
न्याय लेता पक्ष उसका।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19दिसंबर, 2020
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