वो गीत पुराना बचपन का।

वो गीत पुराना बचपन का।  

ये मेरे मन आज सुना दो
वो गीत पुराना बचपन का।।

मन के सूने गलियारे में
आज पुरानी दस्तक आयी
कहीं छिपी थी जो कोने में
याद दबी जो कलतक आयी
यादों के उस पाँखी को फिर
फिर से वो आकाश खुला दो
मन का पंछी खोज रहा है
वो मीत पुराना बचपन का
ये मेरे मन आज सुना दो
वो गीत पुराना बचपन का।।

पाकर जिसको मन खिल जाए
खिल जाये राहों में कलियाँ
अँधियारों से दूर निकलकर
रोशन हों फिर मन की गलियाँ
निज मन मेरा सूनेपन में
आज मचलकर झूम उठे फिर
लेकर मुझको आज बुलाये
वो नाम पुराना बचपन का
ये मेरे मन आज सुना दो
वो गीत पुराना बचपन का।।

दूर गगन में गीत पुराना
फिर कोई आज सुनाता है
जाने क्यूँ लगता है ऐसा
फिर कोई मुझे बुलाता है
मन करता है मैं उड़ जाऊँ
फिरूँ गगन में दूर निकलकर
और सुनाऊँ सारे जग को
वो प्रीत पुराना बचपन का
ये मेरे मन आज सुना दो
वो गीत पुराना बचपन का।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद
        31दिसंबर, 2021




जिसमें याद तुम्हारी आये गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।


जिसमें याद तुम्हारी आये
गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।

मन में चाहे भाव उमड़ कर
पल पल मुझको तड़पायें
चाहे पलकों की ड्योढ़ी पर
यादें आँसू बन बह जायें
अनायास भी नाम तुम्हारा
अधरों पर मैं ना लाऊँगा
जिसमें याद तुम्हारी आये
गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।

साँझ ढले उस ताल किनारे
कितने सपने देखे हमने
आती जाती उन लहरों से
कितनी बातें सीखी हमने
जिस तल मन को घाव मिला हो
कभी नहीं मैं फिर जाऊँगा
जिसमें याद तुम्हारी आये
गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।

नयी दिशायें नयी रीतियाँ
नूतन पथ जीवन का होगा
जब रिश्तों ने मन को तोड़ा
और नहीं अब मंथन होगा
आज पुरानी उन यादों में
मन को मैं ना ले जाऊँगा
जिसमें याद तुम्हारी आये
गीत नहीं अब मैं गाऊँगा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
        हैदराबाद
        29दिसंबर, 2021


मन के भाव उचारूं।

मन के भाव उचारूं।  

मनो भाव की कौन दशा को
गीतों में मैं आज उतारूँ
शब्द कहाँ से लाऊँ बोलो
जिनसे मन के भाव उचारूं।।

पल पल छिन छिन जीवन के सब
मृदु मधु रह रह रीत रहे हैं
कैसे कह दूँ आज कहो तुम
जीवन कैसे बीत रहे हैं।।

तुम जो साथ नहीं तो बोलो
पृष्ठों में क्या भाव उतारूँ
शब्द कहाँ से लाऊँ बोलो
जिनसे मन के भाव उचारूं।।

कहने को तो लाखों अपने
अपना कौन नहीं मैं जानूँ
दूर क्षितिज तक चले साथ जो
बोलो कैसे मैं पहचानूँ।।

तुम से ही सब आस जुड़ी है
तुम्हीं कहो अब किसे पुकारूँ
शब्द कहाँ से लाऊँ बोलो
जिनसे मन के भाव उचारूं।।

इस जीवन मे जो कुछ पाया
सब में तेरा वरदान प्रभू
बस तेरा आशीष मुझे हो
और नहीं कोई चाह प्रभू।।

तुम पर छोड़ दिया हूँ सब कुछ
जीतूँ मैं या सब कुछ हारूँ
कौन यहाँ अब मिरा सहारा
तुम ही बोलो किसे पुकारूँ।।

मनो भाव की कौन दशा को
गीतों में मैं आज उतारूँ
शब्द कहाँ से लाऊँ बोलो
जिनसे मन के भाव उचारूं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
        हैदराबाद
        28दिसंबर, 2021

गीतों का मधुपान करा दो।

गीतों का मधुपान करा दो।  

मिरे सुलगते मनो भाव को
शीतलता का भान करा दो
बिखर न जाये भाव हृदय के
हो, इतना संज्ञान करा दो
प्यासे अब तक कर्ण मेरे हैं
गीतों का मधुपान करा दो।।

चलते पथ पर रहा निरंतर
पग पग उलझा उलझा जीवन
ऋतुओं के मृदु अनुमानों में
बहका बहका था ये उपवन
बरसो बनकर आज घटा तुम
मृदुल नेह का भान करा दो
प्यासे अब तक कर्ण मेरे हैं
गीतों का मधुपान करा दो।।

निर्जल अधरों पर मेरे ये
जाने कैसी प्यास जगी है
मेघ बरसते भींगे सावन
फिर भी कैसी आग लगी है
अंतस के इस सूनेपन में
अपनेपन का भान करा दो
प्यासे अब तक कर्ण मेरे हैं
गीतों का मधुपान करा दो।।

लगता जैसे दूर हो रहे
सपने पलकों से बोझल हो
दूर हो रही परछाईं भी
साँझ ढले पथ में ओझल हो
मन में जो भी आशंकायें
उनको नया विहान दिखा दो
प्यासे अब तक कर्ण मेरे हैं
गीतों का मधुपान करा दो।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
        हैदराबाद
        27दिसंबर, 2021



मुलाकात लिखना।

मुलाकात लिखना।  

निगाहों निगाहों की सब बात लिखना
निगाहों की पहली मुलाकात लिखना।।

कहीं बात दिल की दबी रह गयी जो
फिर आज सारे वो जज्बात लिखना।।

रह रह के तेरा मचलना सँभलना
पलकों की अपनी करामात लिखना।।

बिन कहे कितनी बातें जो थी कही
साँसों से साँस की सौगात लिखना।।

कहीं बीत जाये घड़ी "देव" फिर ना
बाहों में भरकर नयी रात लिखना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
        हैदराबाद
        27दिसंबर, 2021

पल पल सवाल करती है।

पल पल सवाल करती है।

कैसे कैसे सवाल करती है
जिंदगी हर पल कमाल करती है।।

लम्हा लम्हा बदल रहा ये मौसम
कतरा कतरा धमाल करती है।।

सपने पलकों में क्यूँ रुके नहीं
सपनों से ही सवाल करती है।।

जाने कैसा चलन जमाने का
झूठ पे जान निहाल करती है।।

सच कितना मुखर देव लेकिन
सच से पल पल सवाल करती है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
        हैदराबाद
        24दिसंबर, 2021

बस बढ़ते रहना।

बस बढ़ते रहना।  

पग पग जीवन की राहों में
अवरोधों के शिखर मिलेंगे
कुछ रोकेंगे राहें तेरी
कुछ यत्नों से तुझे छलेंगे
दृढ़ता को हथियार बनाकर
शांतचित्त बस चलते रहना
जीवन पथ कब रहा सुगम ये
शनैः शनैः बस बढ़ते रहना।।

तेरे शब्दों में कितने ही
शब्द जोड़ कर तुझे छलेंगे
तेरे अंतस को छलनी कर
बन तेरे मनमीत मिलेंगे
मन को ही तू ढाल बना ले
मन के गीतों में ही बहना
जीवन पथ कब रहा सुगम ये
शनैः शनैः बस बढ़ते रहना।।

यहाँ मृत्यु से पूर्व तुझे वो
तेरे सपनों को मारेंगे
मार सके न चरित्र जो तेरे
तुझे पंथ से भटकाएँगे
रहा कौन चिरकाल यहाँ पर
अवसादों में क्यूँ कर रहना
जीवन पथ कब रहा सुगम ये
शनैः शनैः बस बढ़ते रहना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24दिसंबर, 2021


मुझको मेरा गाम न मिलता।

मुझको मेरा गाम न मिलता। 

कैसे कह दूँ इस जीवन के
मूल पंथ से भटक गया हूँ
कैसे मैं स्वीकारूँ बोलो
मूल मंत्र से भटक गया हूँ
यदि बोझिल शामें होती तो
सुबह को भी मान ना मिलता
छोटे से जीवन में बोलो
मौन भला मैं कब तक रहता।।

जब भी पथ पर चला मचलकर
पथ के सब शूल हटाया है
थे पाँवों में वो चुभे मगर
नहीं मैंने अश्रु बहाया है
मगर चोट जो खायी दिल पर
तुमसे ना तो किससे कहता
छोटे से जीवन में बोलो
मौन भला मैं कब तक रहता।।

रात अँधेरी कदम कदम पर
दिनकर पर प्रश्न उठाया है
नहीं मिली पर राह उसे जब
उससे ही आस लगाया है
आशायें ना टूटी होतीं
तानों में अपमान न होता
दूर नहीं जो होता तो फिर
लाचार भला कब तक रहता।।

मैंने घर घर दरबारों में
शकुनी का मन पलते देखा
निज सपनों अरु स्वार्थ मोह में
हस्तिनापुर को जलते देखा
झूठ नहीं फलता बोलो यदि
सत्य को अपमान ना मिलता
कब तक घुटता मन ही मन में
मौन भला मैं कब तक रहता।।

नहीं चाह सत्ता को कोई
नहीं कामना, चाहत कोई
प्रेम पाश में बँधा रहूँ मैं
इसी आस में आँख न सोई
बोझिल आँखों के सपने ले
रात रात जो यूँ ही जलता
जीवन के इस कुरुक्षेत्र में
मुझको मेरा गाम न मिलता।।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद 
       23दिसंबर, 2021

गीतों को न भूल जाना।

गीतों को न भूल जाना।  

चुन चुन कर के शब्द शब्द
नवगीत मैंने है बनाया
और पिरोया भावों को 
फिर छंद को मैंने रिझाया
तब लिखे कुछ गीत हमने
मृदु आस का भरकर खजाना
है यही अनुरोध तुमसे
उन गीतों को न भूल जाना।।

सूर्य का पथ थक चले जब
अरु रश्मि ओझल हो रही हो
उम्र के उस मोड़ पर जब
ये साँस बोझल हो रही हो
भावनाओं को समझ कर
प्रीत से भरना खजाना
है यही अनुरोध तुमसे
उन गीतों को न भूल जाना।।

हम चले थे गीत लेकर
इस जगत के मन को रिझाने
मौन को आवाज देकर
प्रिय कामनाओं को सजाने
जो लगी ठोकर जगत से
उसको यहाँ फिर क्या दिखाना
है यही अनुरोध तुमसे
उन गीतों को न भूल जाना।।

साथ में कितने चले थे
पीछे कितने छूट गये हैं
मील के पत्थर सभी वो
कैसे कह दूँ रूठ गये हैं
चाह यश की कब मुझे थी
और कब थी कोई कामना
है यही अनुरोध तुमसे
उन गीतों को न भूल जाना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23दिसंबर, 2021

प्रेम का प्रसार।

प्रेम का प्रसार।   

परबतों को चूमती मौसमों की तितलियाँ
सुरीली तान छेड़ती हवाओं की नर्मियाँ
सौम्यता के भावों का प्रेम का प्रसार है
अभिसार को व्यग्र हैं झूमती ये बदलियाँ।।

अंक में प्रकृति के ये पुण्य चमत्कार है
छू रहा जो भावों को प्रेम का प्रसार है।।

पंछियों के कलरवों से गूँजती वादियाँ
नदियों के प्रवाह में झूमती ये वादियाँ
पर्वतों के वृक्षों पर ये सूर्य की मधुर छुअन
शून्यता को भर रही हैं प्रेम की क्यारियाँ।।

पंथ पंथ पुण्य है भावों का श्रृंगार है
छू रहा जो भावों को प्रेम का प्रसार है। 

खोल चक्षु के पटों को देख आ रहा जो कल
शांत चित्त भाव हों ये पुण्यता ना हो विकल
अंक अंक प्रीत है अरु शब्द शब्द गीत है
सुन, गा रही हैं रश्मियाँ बादलों से निकल।।

अंतर्मन में गूँजता गीता का सार है
छू रहा जो भावों को प्रेम का प्रसार है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22दिसंबर, 2021

तुम भी बाहर आकर देखो।

तुम भी बाहर आकर देखो।  

रह रह सूरज छिपा गगन में
संझा का मन डोला है
तुम भी बाहर आकर देखो
चाँद गगन में निकला है।।

कब तक उलझे उलझे रहकर
मन अपना भटकाओगे
कब समझोगे मन भावों को
कब फिर खुद को पाओगे।।

आज मिलो फिर खुद ही देखो
मौसम बदला बदला है
तुम भी बाहर आकर देखो
चाँद गगन में निकला है।।

बँधकर कितने चक्रव्यूह में
गुमसुम गुमसुम रहते हो
आकाशों के घुप्प अँधेरे
पलकों में ले सहते हो।।

खोल पलक को मौन पलों से
जीवन बदला बदला है
तुम भी बाहर आकर देखो
चाँद गगन में निकला है।।

अधरों पर हैं बातें कितनी
आकुल बाहर आने को
अरु दर्पण में जो छवि दिख रही 
व्याकुल बाहर आने को।।

छोड़ो सारे किंतु परंतु को
मौसम पिघला पिघला है
तुम भी बाहर आकर देखो
चाँद गगन में निकला है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21दिसंबर, 2021

मेरे मन की अकथ व्यथा।

मेरे मन की अकथ व्यथा।  

मेरे मन की अकथ व्यथा पर 
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।

सागर की गहराई को क्या 
किरणें नाप सकी हैं बोलो
उसके अंतस की हलचल को
लहरें क्या जान सकीं बोलो
तटबंधों को मिले घाव को
फिर कैसे तुम झुठलाओगे
मेरे मन की अकथ व्यथा पर 
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।

रातों के उस अँधियारे का
घाव भला किसने देखा है
चंदा की उस शीतलता में
भाव जला किसने देखा है
गिरी दामिनी आशाओं पर
अब कैसे तुम दिखलाओगे
मेरे मन की अकथ व्यथा पर 
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।

मन ठहरा उन्मुक्त यहाँ पर
बंधन में कब बँध पाया है
कितने गीत लिखे जीवन ने
क्या अधरों ने सब गाया है
अधरों पर क्यूँ गीत रुके वो
कहो यहाँ क्या कह पाओगे
मेरे मन की अकथ व्यथा पर 
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।

भूल गये जो प्रीत पुरानी
साथ भला क्या दे पायेंगे
जिसने मन का दर्द ना समझा
साथ भला क्या चल पायेंगे
छोड़ गये जब बीच राह में
फिर कैसे तुम अपनाओगे
मेरे मन की अकथ व्यथा पर 
तुम कहो क्या अश्रु बहाओगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       19दिसंबर, 2021

नव विहान।

नव विहान।   

भले तेज धार हो घोर अंधकार हो
चल रही बयार हो द्वार पर प्रहार हो
शब्द में घाव हो या चल रहे दाँव हो
तुम निडर हो डटो तेरी यही आन है
तेरा विश्वास ला रहा नव विहान है।।

हो सफल प्रार्थना है बस यही कामना
पूर्ण हो साधना लिए मन में भावना
तुम चलो पंथ पर न कोई व्यवधान हो
है अटल भावना तो शून्य में प्राण है
तेरा विश्वास ला रहा नव विहान है।।

पुण्य ये पंथ हो अरु पुण्य ये ग्रंथ हो
तेरे अधरों पे बस जीत का मंत्र हो
दूर कर पंथ के सारे अवरोधों को
कि मुट्ठी में तेरे खुला आसमान है
तेरा विश्वास ला रहा नव विहान है।।

तेरे हर लक्ष्य में बस धर्म का मान हो
तेरे मन भावों में कर्म ही महान हो
राष्ट्र का भाव हो ना कोई प्रभाव हो
अब लिख रहा जीत का तू नया गान है
तेरा विश्वास ला रहा नव विहान है।।

©®अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       18दिसंबर, 2021



जज्बात में।

जज्बात में।  

प्रेम का पथ मिला तुमसे सौगात में
यूँ लगा चाँदनी घुल गयी रात में।।
जब भी तुमसे मिले द्वार मन के खुले
तारे संग संग चले चाँदनी रात में।।
मन ने मन से कहा तन ने तन से कहा
रूप सजने लगे बात ही बात में।।
शब्द का अर्थ हो भाव का मर्म हो
गीत रचने लगे प्रीत के गात में।।
तन भी भींगा यहाँ मन भी भींगा यहाँ
प्रेम की मखमली आज बरसात में।।
तुम कहो ना कहो हमने सब सुन लिया
पलकों से जो बहे अश्रु जज्बात में।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17दिसंबर, 2021


लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।

लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।   

शब्द कितने ही जगत में गीत का मधुवन सजाते
लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।।

हर तरफ फैली हुई है गीत की मृदु कल्पनायें
शब्दों में उतरी हुई मन की सारी भावनायें
अब हो विरह के गीत या फिर हो मिलन के पलों का
सौम्य भावों में सिमटते शब्द की हों कामनायें।।

संतुलित हैं शब्द जो वो पंक्तियों को हैं सजाते
लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।।

शब्द की ना भूमिका जो भावनाओं को नकारे
क्या लिखेगा गीत फिर जो शब्द ही ना हों सहारे
जो शून्यता हो भाव में प्रेम भी जीवंत ना हो
फिर रुकेगी नाव कैसे प्रेम की नदिया किनारे।।

कोशिशें ही गीत की पुण्य आत्मा को हैं खिलाते
लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।।

पूज्य हैं सब शब्द सारे पृष्ठ पर जो भी छपे हैं
हैं समर्पित भाव सारे गीत में जो भी सजे हैं
हो सहज संयोग या फिर संप्रेष्य की पृष्ठभूमी
जो लिखे हों गीत में वो मुक्त भावों में दिखे हैं।।

सत्य अरु संयोग सारे हृदय में है खिलखिलाते
लेखनी बस याद रखना व्याकरण ना भूल जाये।।

©®✍️अजय कुमार पाण्डेय
           हैदराबाद
           16दिसंबर, 2021

भाव पनपे नये प्रीत के गात में।

भाव पनपे नये प्रीत के गात में।  

चाँदनी रात में चाँद के साथ में
भाव की ओढ़नी ओढ़ कर माथ पे
अंक में शब्द आकर ठहर यूँ गये
भाव पनपे नये प्रीत के गात में।।

चाँदनी ओढ़ कर प्रीत ऐसे मिली
पुष्प की पाँखुरि जैसे हो अधखुली
तुम मिले भाव चन्दन महकने लगा
यूँ लगा स्वयं से रात खुशियाँ मिली।।

आलिंगन में परछाईयाँ घुल गयीं
भाव पनपे नये प्रीत के गात में।।

पाँव की झाँझरें गीत गाने लगीं
हाथ की चूड़ियाँ गुनगुनाने लगीं
बिंदिया ने इशारे से सब कह दिया
प्रीत की कोंपलें लहलहाने लगीं।।

रूप के ताप से रात यूँ ढल गयी
भाव पनपे नये प्रीत के गात में।।

रात की रश्मियाँ भी पिघलने लगीं
भाव की बदलियाँ जब मचलने लगीं
थम गया वक्त भी प्रीत के अंक में
जिन्दगी बंदगी में बदलने लगी।।

यूँ मिले खिड़कियाँ खुल गयी रात की
भाव पनपे नये प्रीत के गात में।।

©®✒️अजय कुमार पाण्डेय
            हैदराबाद
            15दिसंबर, 2021

पुनर्मिलन के उस पल में।

पुनर्मिलन के उस पल में।  

पुष्प अहसासों के खिले हो गये जीवंत सपने
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।

थे चित्र कितने नाच उठे उस रोज मानस पटल पर
मौन क्या कुछ कह गये थे बंद अधरों ने मचल कर
उस घड़ी सूने डगर पर इक कारवाँ था चल पड़ा
रिश्तों की खामोशियों की बर्फ बिखरी थी पिघलकर।।

मौन पल में भाव सारे फिर लगे नवगीत रचने
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।

गोधूलि बेला में क्षितिज पर सूर्य देखो झुक रहा
मृदु रात की आगोश में हो शांत देखो छुप रहा
बन रहे हैं भाव कितने पल पल मृदुल स्पंदनों के
और ऋतुओं की छमक में पिय भाव हिय के झुक रहा।।

भावनाओं की शिला पर वो शब्द सब छपने लगे
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।

चाँदनी किरणें मचलकर श्रृंगार फिर करने लगीं
अरु पुष्प अधरों से झरे तो शून्यता भरने लगी
भर लिया भुजपाश में पल गीत कुछ मचले वहाँ पर
मन की वीणा में मधुर सी तरंगिनी बजने लगी।।

पंखुरी फिर तब झरे थे पुष्प की मंदाकिनी से
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।

था वो कोई स्वप्न या फिर पूर्ण तपस्या हुई थी
या मिला वरदान मुझको जो पूर्व में खोई हुई थी
स्वाति की बूँदें पड़ीं जब भावनाओं की धरा पर
जग उठी संवेदनाएँ जो कभी सोई हुई थी।।

भाव सब खिलने लगे थे जो रचे थे कल्पना ने
साँझ के धुँधलके में बाद बरसों के जब हम मिले।।

©®✍️अजय कुमार पाण्डेय
           हैदराबाद
           14दिसंबर, 2021



मुक्तक- संघर्ष, हौसला, लक्ष्य।

मुक्तक- संघर्ष, हौसला, लक्ष्य।  

जिंदगी का पथ आसान बना लेते हैं
दर्द कैसा हो मुस्कान बना लेते हैं
जो पुण्य पथिक हैं इस संघर्ष मार्ग के
काँटों में भी पहचान बना लेते हैं।।

ये माना जिंदगी आसान नहीं होती
मेहनत कोई हो अनाम नहीं होती
जो यदि हौसला हो कुछ कर गुजरने का
तो कोई मंजिल गुमनाम नहीं होती।।

माना जिंदगी हर कदम एक इम्तिहान है
पर तेरे कदमों में ही तो आसमान है
अब जला ले अपने हौसलों के चिराग तू
फिर तिरे लक्ष्य में कहाँ कोई व्यवधान है।।

©®✍️अजय कुमार पाण्डेय
           हैदराबाद
          10दिसंबर, 2021




ना रुकना तू लक्ष्य का संधान कर।।




यादों के पन्ने।

यादों के पन्ने।  

एक बंजारा तेरे शहर में देख यहाँ फिर आया है
भूली बिसरी यादों के कुछ पन्ने संग संग लाया है।।

गीतों की कुछ मौन पँक्तियाँ
कविताओं के सूने अक्षर
यादों के मानसरोवर के
वो लहराते कितने मंजर
बीते पल के गलियारों से कुछ पल के टुकड़े लाया है
भूली बिसरी यादों के कुछ पन्ने संग संग लाया है।।

स्मृतियों के व्योम पटल पर
अलिखित एक अधूरी सूची
बीते कल के जिन चित्रों में
रंग नहीं भर पायी कूची
अधूरे चित्रों की शेष स्मृतियाँ संग में लेकर आया है
भूली बिसरी यादों के कुछ पन्ने संग संग लाया है।।

जीवन के वो मृदु पल जिसमें
दो अनजाने मिले कभी थे
गीतों की सरगम के जैसे
अंतर्मन को बहलाये थे
जीवन के उन मृदुल पलों के कुछ भाव सुनहरे लाया है
भूली बिसरी यादों के कुछ पन्ने संग संग लाया है।।

संस्मरणों के नील कमल के
भाव हृदय में अब तक जीवित
मौन मचलती इच्छाओं के
उन भावों को कर के सीमित
संस्मरणों के उस नील कमल की कुछ पंखुड़ियाँ लाया है
भूली बिसरी यादों के कुछ पन्ने संग संग लाया है।।

©®✍️अजय कुमार पाण्डेय
           हैदराबाद
           10दिसंबर, 2021

भारत गीत।

भारत गीत।  

गीत लिखूँ क्या तुझपे बोलो
शब्दों में इतनी जान नहीं
तुझ पर कोई छंद लिखूँ
छंदों की भी पहचान नहीं
तू है तो है ये दुनिया मेरी
तुझसे ही मेरी आन है
देश मेरे ऐ देश मेरे
तू ही तो मेरी जान है।।

तेरे आँचल में जन्म लिया
तेरा ही तो मैं जाया हूँ
कितने जन्मों का पुण्य फला
तब जाकर तुझको पाया हूँ
ये जीवन तुझपर अर्पण है
 तू है तो मेरी शान है
देश मेरे ऐ देश मेरे
तू ही तो मेरी जान है।।

गंगा जमुना की लहरों से
जीवन मेरा ये सिंचित है
शीश हिमालय ताज मेरा
मैं कैसे कहूँ कि किंचित है
दिनकर की किरणों के जैसा
श्वेत प्रखर ईमान है
देश मेरे ऐ देश मेरे
तू ही तो मेरी जान है।।

खेत खेत में सोना उपजे
त्याग समर्पण क्यारी क्यारी
गाँव शहर गलियों में गूँजे
राष्ट्रप्रेम वाली अग्यारी
पुण्य भाव से संचित मन है
ऊँची तेरी शान है
देश मेरे ऐ देश मेरे
तू ही तो मेरी जान है।।

शिक्षा संस्कृति और सभ्यता
तुझसे ही सब फलित हुईं
ज्ञान कला विज्ञान धरोहर
तुझसे सब पल्लवित हुईं
पुण्य भावना धर्म परायण
तू ही तो वेद पुराण है
देश मेरे ऐ देश मेरे
तू ही तो मेरी जान है।।

है यही प्रार्थना ईश्वर से
रहती दुनिया तक मान रहे
सूर्य चंद्र दुनिया में जब तक
कण कण तेरा गुणगान रहे
प्राण वायु है दुनिया की तू
तुझसे दुनिया की शान है
देश मेरे ऐ देश मेरे
तू ही तो मेरी जान है।।

हो चरणों में जीवन अर्पित
बस इतना चाहने वाला हूँ
तेरा प्यार मिला है मुझको
मैं कितना नसीबों वाला हूँ
मेरे लहू के कण कण को
तुझसे ही मिलती जान है
देश मेरे ऐ देश मेरे
तू ही तो मेरी जान है।।

©®✍️अजय कुमार पाण्डेय
           हैदराबाद
           09दिसंबर, 2021







तुम मिले जिंदगी मुस्कुराने लगी।

तुम मील जिंदगी मुस्कुराने लगी।  

जिंदगी का सफर था अधूरा यहाँ
तुम मिले जिंदगी मुस्कुराने लगी।।

गीत अधरों पे आकर मचलने लगे
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी
जिंदगी का सफर था अधूरा यहाँ
तुम मिले जिंदगी मुस्कुराने लगी।।

राह में पुष्प ने मखमली पथ लिखे
चूम कर तेरे पाँवों को जीवन लिखे
शाख पेड़ों की झुक अगवानी करी
नव पात ने प्रीत के गीत नूतन लिखे
छू के कदमों के तेरे मचलते निशाँ
राह की दूब भी खिलखिलाने लगी
जिंदगी का सफर था अधूरा यहाँ
तुम मिले जिंदगी मुस्कुराने लगी।।

तुम जो आये तो उपवन महकने लगा
मेरे जीवन का मधुवन बहकने लगा
रंग जीवन में ऐसे भरे प्यार के
कि मेरा जीवन समूचा बदलने लगा
गीत कलियों ने लिखे यूँ उल्लास के
रश्मियाँ झूम कर गुनगुनाने लगीं
जिंदगी का सफर था अधूरा यहाँ
तुम मिले जिंदगी मुस्कुराने लगी।।

प्रीत का पंथ तुमसे यूँ रोशन हुआ
अपने अधरों से तुमने जो इनको छुआ
कह गयी बात दिल की ये पुरवाई जब
चेहरा खिल कर तुम्हारा गुलाबी हुआ
अंक में गीत ऋतुओं के मधुमास के
ये चाँदनी भी मचल गीत गाने लगी
जिंदगी का सफर था अधूरा यहाँ
तुम मिले जिंदगी मुस्कुराने लगी।।

©®✍️अजय कुमार पाण्डेय
           हैदराबाद
           08दिसंबर, 2021







बात हृदय की।

बात हृदय की।  

जाने प्रेम की कथाएँ यूँ सिमट कर रह गयीं
कुछ को मिली मंजिल यहाँ कुछ बिखर कर रह गयीं
है यहाँ पर इक कहानी जो कहो कह दूँ प्रिये
बात जो निकले हृदय से गूँजती कल तक रहे।।

प्रेम के कुछ पुष्प चुन पंथ हमने है सजाये
भाव के व्योम पर हमने लिखी कितनी कथायें
और फिर कितनी लिखी है काव्य में नव भूमिका
गीत में ढल शब्द वो पंक्तियों में मुस्कुराये।।

मुस्कुराये शब्द जो भी तुम कहो कह दूँ प्रिये
बात जो निकले हृदय से गूँजती कल तक रहे।।

वाटिका में हृदय के पिय भाव सुंदर सज रहे
प्रिय अधरों पर तुम्हारे गीत मेरे जँच रहे
कामना अब है यही के मैं प्रेम को नव गान दूँ
और फिर वो कहूँ जो कृष्ण से राधा ने कहे।।

कभी दूर तुमसे न रहें स्वप्न पलकों के प्रिये
बात जो निकले हृदय से गूँजती कल तक रहे।।

फिर चलो इस पंथ पर हम रीत कुछ नूतन रचें
प्रेम के विश्वास के अनुप्रास से पन्ने सजें
जोड़ कर अध्याय नव पीढ़ियों का पथ सँवारे
और रचें नव रीत जो भी इतिहास के पन्ने सजें।।

शब्द के व्योम पर गूँजे गीत सदियों तक प्रिये
बात जो निकले हृदय से गूँजती कल तक रहे।।

©®✒️अजय कुमार पाण्डेय
           हैदराबाद
           07दिसंबर, 2021

जीवन अपना बहला लेना।

जीवन अपना बहला लेना।  

दो पल जीवन की आशा के
ना जाने कब मिट जायेंगे
आज मिले हैं जीवन पथ में
दूर कहाँ तक चल पायेंगे
क्षणभंगुर है जीवन अपना
कल जाने सब मिट जाना है
मिटने से पहले जीवन के
कुछ गीत मनोहर गा लेना
मन में प्रियवर भाव सजा कर
जीवन अपना बहला लेना।।

जीवन में पग पग पर तुमको
फूल मिलेंगे शूल मिलेंगे
रिश्तों के ये महासमर भी
कभी प्रेम तो कभी छलेंगे
पग पग राहें नहीं मखमली
काँटों की शैय्या भी होगी
जीवन के इस कटू सत्य को
अपने मन को समझा लेना
मन में प्रियवर भाव सजा कर
जीवन अपना बहला लेना।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06दिसंबर, 2021

काव्य में नव भाव रच तूलिका ने सम्मान पाया।

काव्य में नव भाव रच तूलिका ने सम्मान पाया।  

क्रोंच पक्षी के रुदन को काव्य का इक रूप देकर
मौन आँसू जो गिरे थे भाव को इक रूप देकर
कुछ पंक्तियों में सिमटकर दर्द ने नव गान पाया
काव्य में नव भाव रच तूलिका ने सम्मान पाया।।

दर्द भावों में उभरकर नव गीत बनकर छा गये
गीत अधरों से उतरकर नव काव्य बनकर छा गये
पंक्ति का आकार पाकर सब भावनायें खिल गयीं 
जो रचे उसे रोज हिय ने दर्द बनकर छा गये।।

शब्द का श्रृंगार पाकर दर्द को सबका बनाया
काव्य में नव भाव रच तूलिका ने सम्मान पाया।।

जो थे घुटन मन में कहीं वो भाव पन्नों पर लिखे
अरु शब्द के हर उस चुभन के घाव पन्नों पर लिखे
लिख दिये प्रतिरोज जाने पीर जीवन के पलों की
बाकी जो भी रह गया वो दर्द पलकों पर दिखे।।

भाव को विस्तार देकर गीत को सबका बनाया
काव्य में नव भाव रच तूलिका ने सम्मान पाया।।

गीत में जीवन सुरों के वो राग सारे लिख दिये
नेह के सुंदर पलों के पिय राग सारे लिख दिये
लिख दिये नव गीत कितने मन लुभाती कामना के
राग को सम्मान देकर नव प्रीत का पथ रच दिये।।

साज का नव सुर सजाकर गीत ने सोपान पाया
काव्य में नव भाव रच तूलिका ने सम्मान पाया।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05दिसंबर, 2021


रोज खुद को ढूँढता हूँ।

रोज खुद को ढूँढता हूँ।  

कौन हूँ मैं प्रश्न ये प्रतिरोज खुद से पूछता हूँ
आस की उँगली पकड़कर मुश्किलों से जूझता हूँ
ताप से तपती धरा पर हौसलों की पौन लेकर
सच कहूँ तब इस शहर में रोज खुद को ढूँढता हूँ।।

चाहता हूँ मैं लिखूँ नव गीत जीवन के सुरों पर
चाहता हूँ मैं गढूं आज चित्र नूतन पत्थरों पर
तराशता वजूद अपना पत्थरों की आड़ लेकर
सच कहूँ तब इस शहर में रोज खुद को ढूँढता हूँ।।

इस कदर खामोशी कैसी शोर की महफ़िल में बोलो
लगता साये खड़े हों दौड़ती राहों में बोलो
साँझ की आड़ में जब गुमनाम हो साये छुप गये
सच कहूँ तब इस शहर में रोज खुद को ढूँढता हूँ।।

देखते हर रोज खुदको सुबह से लेकर साँझ तक
कह न पाये बात दिल की खुद से नहीं क्यूँ आज तक
सालता है मौन जब भी भीड़ की तनहाइयों में
सच कहूँ तब इस शहर में रोज खुद को ढूँढता हूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05दिसंबर, 2021

हैं अधूरे प्रश्न तो फिर उत्तरों की आस क्यूँ।

हैं अधूरे प्रश्न तो फिर उत्तरों की आस क्यूँ।।

क्या लिखूँ फिर आज बोलो शब्द अपनी तूलिका से
क्या गढूं फिर आज बोलो भाव मैं निज भूमिका के
जिंदगी में प्रश्न कितने बढ़ रहे हर रोज लेकिन
जो हैं अधूरे प्रश्न तो फिर उत्तरों की आस क्यूँ।।

है दृष्टि का ये दोष या फिर स्वयं ही सब गिर गये
जो फूल मुरझाये नहीं थे शाख से क्यूँ गिर गये
था हवा का जोर या कमजोर डाली थी वहाँ की
इक झोंक भी जो सह सके ना टूट कर जो गिर गये।।

जो गिर गये हों स्वयं से ही फिर हवा से रार क्यूँ
जो हैं अधूरे प्रश्न तो फिर उत्तरों की आस क्यूँ।।

जो थे हृदय के भाव जब अंक में डूबे सिमटकर
व्यक्त भी जब कर सके ना शब्द अधरों पर निखरकर
मोल क्या रहता कहो फिर अनुबंध का विश्वास का
भाव ही जब गिर गये हों पंक्तियों से ही बिखरकर।।

जब पंक्तियों से भाव बिखरे साज से फिर रार क्यूँ
जो हैं अधूरे प्रश्न तो फिर उत्तरों की आस क्यूँ।।

है यामिनी की गोद में जो सूर्य जा कर ढल गया
है नियत ये पूर्व से कैसे कहो कोई छल गया
धुँधलके में बात कोई रह गयी माना सिमटकर
है फिर समय का दोष कैसा जो हृदय को खल गया।।

अब जो नियति में है लिखित उस बात से फिर रार क्यूँ
जो हैं अधूरे प्रश्न तो फिर उत्तरों की आस क्यूँ।।

पंक्ति के विन्यास में कई शब्द अधूरे रह गये
कल तलक जो साथ थे माना छोड़ तुझको बढ़ गये
प्रतिबिम्ब अपना कब रहा है सूर्य के ढलने बाद
क्या हुआ कुछ स्वप्न तिरे पलकों से माना झर गये।।

चल नया फिर स्वप्न बुन तू अब पूर्व से ये रार क्यूँ
जो हैं अधूरे प्रश्न तो फिर उत्तरों की आस क्यूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        04दिसंबर, 2021


सप्तपद- मौन अधरों के गीत।

सप्तपद- मौन अधरों के गीत।  

जिंदगी के मोड़ पर जब नव प्रीत की आस लिए
कुछ बंधनों को छोड़ एक नया विश्वास लिए
भोर की पहली किरण से भाव मुस्काने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।

अंजुली भर कर नीर ले पुण्य का आशीष ले
मंत्रों के उचार में मृदु कामना की प्रीत ले
अक्षतों का रंग ले और कर पुष्प की पाँखुरी 
आस का आकाश ले ओढ़ माथ लाल चूनरी
यज्ञ के ज्वाल में मुख खिला जैसे स्वर्ण का कमल
भाव का विस्तार में समाहित हो गया हो पल
उस एक पल में ही सारे सत्य सिमटने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।

रात के आकाश में झूमे चाँद की चाँदनी
लाज के अंक में सिमटी जा रही है मोहनी
तारे गगन के सभी बाराती बन झूम रहे
झूम रश्मियाँ चाँद की कपोलों को चूम रहे
मस्त मस्त सी पवन शुभ गीत यहाँ गा रही
रात रानी खिल गयी मन भाव को महका रही
ओस की मृदुल छुअन में भाव गुनगुनाने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।

देख मृदुल रूप कितने स्वप्न नव मचलने लगे
नैन के कोरों पे कितने भाव थिरकने लगे
थरथराते होठों से सप्तपदों को बाँचना
रश्मि किरणों में लिपट कर झिलमिलाती कामना
रूप के श्रृंगार की साकार होती कामना
यूँ लगे जैसे देव भी कर रहे हों याचना
इक नया उत्साह मन के भाव महकाने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।

सप्तपदी का वचन विश्वासों का आधार है
नेह का आकाश है अरु प्रेम का आधार है
कृष्ण का ये प्रेम है श्री राम का ये आस है
रुक्मिणी का पत्र है अरु सीता का विश्वास है
अंजुली में समाये वो प्रीत का आकाश है
प्रेम के मृदु ग्रंथ के प्रिय शब्द का अनुप्रास है
दसों दिशाएं झूम झूम गीत प्रिय गाने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।

भोर की पहली किरण ने शब्द हौले से कहा
है ये नव श्रृंगार के पल कानों में आकर कहा
मिल लिखेंगे गीत नव जिंदगी के मृदु पलों के
प्रेम के विश्वास के अर्पण का नव संकल्प लें
चाँद तारे धरती गगन सब आज साक्षी बने
वेद मंत्रों ऋचाओं में भाव आकांक्षी बने
सप्तपदी के वचन सभी झूम कर गाने लगे
मौन अधरों पर सज शब्द गीत बन छाने लगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03दिसंबर, 2021

गीतों में सारा समंदर लिखूँ।

गीतों में सारा समंदर लिखूँ।  

चाँदनी रात हो तारों का साथ हो
प्रीत की रागिनी से मुलाकात हो
कुछ दिल में मेरे कुछ दिल में तेरे
जो कही ना गयी आज वो बात हो।।

शब्द तेरे मधुर छाँव में पल रहे
बनकर दीपक अँधेरों में जल रहे
राह रोकेगी क्या मुश्किलें मेरी
साथ मेरे कदम जब तिरे चल रहे।।

नींद की गोद में स्वप्न के पंख हों
रात की गोद में जश्न का रंग हो
गीत जो भी रचे चाँदनी प्यार से
पंक्तियों में सभी प्रीत का संग हो।।

प्राण का है प्रण गीतों में कुछ लिखूँ
शब्द में पंक्ति में भाव सुंदर लिखूँ
लिखूँ जो भी वो गूँजे आकाश में
अरु गीतों में सारा समंदर लिखूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01दिसंबर, 2021

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...