मन-उपवन।
मुखरित है प्रिय स्वप्न सुनहरे
अंतस के उपवन में गुंजित
मोहित मधुमय गान मनहरे।।
लुक छिप करती पलकें तेरी
नयनों की गुपचुप मुस्कान
नवल भाव उद्दवेलित करतीं
भरतीं हिय में नूतन प्राण।।
मेरे मुस्कानों के पथ में
तुम ही संगी तुम आधार
तुमसे मधुवन सुरभित है ये
तुम ही जीवन का आकार।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06अप्रैल, 2021
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