स्मृतियाँ।

स्मृतियाँ।  

धीरे धीरे उतर रही है
साँझ समय के आँचल पर।।

मन का साथी ढूंढ रहा है
पहले वाला दीवानापन
और घटायें चाह रही हैं
फिर वैसा ही अपनापन।
लेकिन वही धुँधलका पसरा
जैसा पसरा बादल पर
धीरे धीरे उतर रही है
साँझ समय के आँचल पर।।

बीते पल की कितनी बातें
रह रह मन पर छाती हैं
विरह, करुण, दारुण भावों से
अंतरमन को तड़पाती हैं।
अंतरमन की पीड़ाएँ अब
उकर चली हैं बादल पर
धीरे धीरे उतर रही है
साँझ समय के आँचल पर।।

यादों ने भी पंख समेटे
पलकों की अँगनाई में
राह थकी अब चलते चलते
साँझ ढले परछाईं में।
गूँज रहे हैं मौन शब्द पर
स्मृतियों के मूक पटल पर
धीरे धीरे उतर रही है
साँझ समय के आँचल पर।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30अप्रैल, 2021



कैसे तुम्हें मनाऊँ मैं।

कैसे तुम्हें मनाऊँ में।  

जाने कैसी है हलचल
व्यग्र हो रहा मैं पलपल
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे तुम्हें मनाऊँ मैं ।।

भाव हृदय में रह रहकर
हलचल नई मचाते हैं
रचता हूँ कुछ और यहाँ
और गीत रच जाते हैं
इन रूठे शब्दों को बोलो
कैसे आज बुलाऊँ मैँ।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे तुम्हें मनाऊँ मैँ।।

अनजाना भय व्याप्त हुआ
किसने जाने किसे छुआ
संवादों पर ताले हैं
उर के फूटे छाले हैं
बाँध सबर का टूट रहा
जीवन जैसे रूठ रहा
टूट रहे सपनों को फिर
कैसे कहो सजाऊँ मैं।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे तुम्हें मनाऊँ मैं।।

कदम कदम पर क्रंदन है
मौन हृदय का नंदन है
कितने सपने खोएंगे
पलकें कबतक रोयेंगे
चीखूँ या अरदास करूँ
कैसे और प्रयास करूँ
कैसे दरद दिखाऊँ मैं
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे तुम्हें मनाऊँ में।।

जो विलंब है आने में
तो इतना उपकार करो
जहाँ जहाँ तम गहरा है
वहाँ वहाँ उजियार करो
ऐसा दो वरदान मुझे
गीत नया कुछ रच जाऊँ
अँधियारे में दीप जला
मधुर रागिनी गाऊँ मैं।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे तुम्हें मनाऊँ मैं।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29अप्रैल, 2021

गीत खुशी के गाता हूँ।

गीत खुशी के गाता हूँ।  

सहमी सहमी आज पवन है
सहमी सभी दीशाएँ हैं
लेकिन इन सहमी राहों पर
मैं तो आता जाता हूँ
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।।

आज रुका कल चल जाएगा
झुका कहीं फिर उठ जाएगा
थक कर बैठ नहीं सकता हूँ
मैं प्रतिपल चलता जाता हूँ
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।।

बहती आँखों के आँसू का
अब मोल बहुत ही गहरा है
लेकिन हर पल इन आँसू पर
पलकों का मेरे पहरा है
पलकों के साये में प्रतिपल
मैं सारे भाव छुपाता हूँ
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।।

कह दो तम से अँधियारों से
इन राहों के अंगारों से
आँधी से औ तूफानों से
कह दो सारे अवसादों से
अब नहीं कहीं घबराता हूँ
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।।

जीवन की राहों में अब तो
अवसादों की बात पुरानी
मैंने इन गीतों में लिख दी
जीवन की इक नई कहानी
उम्मीदों की इस गाथा को
मैं पल पल अब दुहराता हूँ
मैं गीत खुशी के गाता हूँ।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       28अप्रैल, 2021




उजियारा तो होना है।

उजियारा तो होना है।  

माना रात अँधेरी है पर उजियारा तो होना है
उम्मीदें जब हमराही फिर काहे का रोना है।।

सपने तेरी आँखों में फिर से देखो खिल जाएंगे
पलकों से जो गिरे कभी तो कहो किधर फिर जाएंगे
बिछड़े आज पलक से तेरी लेकिन कल फिर आएंगे
जीवन का दस्तूर यही है कभी पाना कभी खोना है
माना रात अँधेरी है पर उजियारा तो होना है।।

जीवन मोती की माला है प्रतिपल एक तपस्या है
मानो तो ये अवसर है औ मानो तो एक समस्या है
जीवन की राहों में हमको हर सुख दुख अपनाना है
पल पल अश्रु बहाने से कब मिला यहाँ जो खोना है
माना रात अँधेरी है पर उजियारा तो होना है।।

पनघट की चिकनी राहों पर फिसले कितनी बार गिरे
कभी भरी सपनों की गागर और कभी अरमान गिरे
लेकिन अरमानों की खातिर गिरना और सँभलना है
जो मिला नहीं उसकी खातिर आज नहीं फिर रोना है
माना रात अँधेरी है पर उजियारा तो होना है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अप्रैल, 2021




नई भोर बड़ी मतवाली है।

नई भोर बड़ी मतवाली है।  

रुक जाना नही घबरा कर तू शुरुआत अजब निराली है
बादल के पीछे जो छुपी नई भोर बड़ी मतवाली है।

कदम कदम अँधियारे कितने
तुझको राहों में टोकेंगे
औ जाने कितनी ही मुश्किल
तुझको बढ़ने से रोकेंगे।
लेकिन तुम झुक जाना ना चाहे रात भले ही काली हो
बादल के पीछे जो छुपी नई भोर बड़ी मतवाली है।।

साथ कोई आये न आये
राहों के तू साथ चला चल
नहीं किसी से कभी शिकायत
हँस कर तू सब ओर मिलाकर।
दूर क्षितिज के पार हँस रही उम्मीदों की लाली है
बादल के पीछे जो छुपी नई भोर बड़ी मतवाली है।।

माना तूफानों ने इस पल
तेरा रस्ता रोक दिया है
अनजानी पीड़ा ने तुझको
बढ़ने से अब रोक दिया है।
रात अमावस के आगे ही नव सपनों की दिवाली है
बादल के पीछे जो छुपी है नई भोर बड़ी मतवाली है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        26अप्रैल, 2021

आस का दीपक।

आस का दीपक।  

रात भर आस का दीप जलता रहा
रात गहरी मगर चाँद चलता रहा।।

द्वार पर नैन मेरे तुम्हें खोजते
रात पलकों में बीती तुम्हें सोचते
चाँदनी भी बदन ये जलाती रही
रात करवट में बीती तुम्हें सोचते
तुम न आये मगर वक्त चलता रहा
रात भर आस का दीप जलता रहा।।

रात भर मौन तुम गुनगुनाते रहे
हम भी यादों में तुमको बुलाते रहे
साँझ सा धुँधलका याद तेरी बनी
हम शाम से एक दीपक जलाते रहे।
साथ में लौ के मन ये मचलता रहा
रात भर आस का दीप जलता रहा।।

तुम कहीं रुक गए हम कहीं थम गए
रिश्तों की गर्मियाँ बर्फ से जम गए
साँस अपनी मगर मौन चलती रही
ना तुम कह सके कुछ न हम कह सके
काँपते होठों पर गीत चलता रहा
रात भर आस का दीप जलता रहा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25अप्रैल, 2021

भरत मिलाप।

भरत मिलाप।  

सुन के अवध वासी अपने प्रभु के आगमन की
नगर के द्वार सभी दीप बाती से सजा रहे
आँखों में चमक लेकर गीतों में खनक लेकर
मिल जुल पुर वासी सभी बधाई गीत गा रहे।

जिसे देखो व्यस्त है औ सारा नगर मस्त है
जन जन के होठों पे अब बस एक ही नाम है
बरसों से सूनी पड़ी थी अवध की नगरी ये
प्रभु के अवन से देखो बनी आज ये धाम है।

खग, मृग, जीव जंतु सभी आज मंत्र-मुग्ध देखो
गली-गली, नगर नगर मंगल गीत गा रहे हैं
सभी के होठों पर बस एक ही है गीत सजा 
जन जन के प्रिय श्री रघुवर आज घर आ रहे हैं।

नगर के द्वार पर भरत आज व्याकुल घूम रहे
रह रह मन के सब अपने भावों को दबा रहे 
मिलन में विलंब हुआ तो क्या मैं बताऊँगा
माता कौशल्या को कैसे मुँह दिखलाऊँगा।

यही दशा प्रभु जी के मन में भी है बनी हुई
विलंब हुई तनिक तो भरत को नहीं पाऊँगा
कितने कष्ट झेले हैं भरत ने वहाँ अकेले
कुछ हुआ उसे तो फिर माफ नहीं कर पाऊँगा।

अवध की सीमा पे पहुँचा जैसे वायुयान वो
सारा नगर खुशी हो के झूम झूम नाच उठा
बरसों से सोये हुए नगर के थे भाग जगे 
जैसे अँधियारे को चीर कर सूरज खिल उठा।

देख कर वेश भूषा भरत जड़ जैसे बन गए
सूर्य गगन चाँद तारे धरती पवन रुक गए
वक्त ने ये खेल निठुर कैसा खेला है यहाँ
झुकता था जग जिनसे आज वो खुद ही झुक गए।


कभी देखें दूजे को कभी देखें अपने को
झर झर नैनों से देखो बस अश्रुधार बह रहे।
होठ चुपचाप हैं दोनों ही भाइयों के मगर
अँखियों ही अँखियों से अपने दुख सभी कह रहे।

मेरी त्रुटी थी क्या जो मुझे ऐसे छोड़ दिया
जरा भी ना सोचा कैसे जिंदगी बिताऊँगा
एक कदम मैं कभी अबतक चला न प्रभु के बिना
बिन आपके कैसे कोई कर्तव्य निभाऊँगा।

आपकी खड़ाऊँ यही मेरी प्राण वायु बनी
इसके सहारे  मैंने सुख दुख सभी काटे हैं
कैसे बताऊँ प्रभु आपके बिना यहाँ मैंने
दिन रात अपने आँखों हि आँखों में काटे हैं।

क्या हुई थी भूल मुझसे जो मुझे ये सजा दी
अपनी सेवा से मुझे आपने वंचित कर दिया
पिछले जनम की कोई ऐसी भूल थी मेरी
जिसकी सजा में प्रभु आपने मुझको त्याग दिया।

सुन कर भरत के शब्द प्रभु भाव विह्वल हो गए
उठा के चरणों से अपने फिर उर से लगा लिया
कैसे कहूँ तुम बिन कैसे बिता है ये पल पल
लगता था जैसे मैंने खुद को ही सजा दिया।

बिन भाई पूछो नहीं जीवन ये कैसे जिया
शरीर तो साथ रहा पर प्राण तेरे पास था
लखन जो आँखे मेरी शत्रुघ्न भुजाएँ मेरी
पर प्राण मेरे भाई तुम्हारे ही पास था।

मौन बात कर रहे सामने से दोनों भाई
देख देख देवता भी सारे विह्वल हो गए
देख कर प्रेम ऐसा दोनों भाइयों के बीच
अवनी, अंबर, चाँद-तारे पल भर को थम गए।

बरसों का खालीपन आज देखो भरने चला
यही सोच सोच के अवधवासी आज खिल रहे
वियोग से मिला कष्ट अब आज मिटने चला है
चारों ही दिशाएँ जैसे आज यहाँ मिल रहे।

सारे जन हर्षित है औ भाव भाव पुलकित है
बरसों के बाद देखो अवध के भाग खिल रहे
काले बादल जो भी छाए थे इस नगरी पे
धीरे धीरे आज वो बादल काले खुल रहे।

खड़े खड़े दोनों भाई देखते दूसरे को
लगता कि जैसे दोनों दो बदन एक प्राण हैं
चाहे साँस चल रही है दोनों की भले अलग 
लेकिन दोनों भाई इक दूसरे की जान हैं।

दोनों भाइयों के मन इक अंतर्द्वंद चल रहा
एक दूसरे से कैसे बात अपनी वो कहें
कहने को कितनी ही बातें सारी उनकी हैं
सोच यही मन में कि बात कैसे और कब कहें।

देख मनोदशा भरत की प्रभु बाँह फैला दिए
पैरों पे झुके भरत तो सीने से लगा लिए
बरसों का दुख सारा इक पल में ही खतम हुआ
सदियों का तप सारा जा के अब सफल हुआ।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अप्रैल, 2021

विकलाँगता- अभिशाप नहीं।

विकलाँगता- अभिशाप नहीं।  

दौड़ नहीं सकता सब जैसा
लेकिन दूर मुझे भी जाना है
जैसा सब जन ने पाया है
मुझको भी मंजिल पाना है।

कमजोरी अभिशाप नहीं है
इसको वरदान बना लूँगा
अपने हिम्मत औ ताकत से
अपने अरमान सजा लूँगा।
लिख सकता इतिहास नया मैं
ये दुनिया को दिखलाना है।
दौड़ नहीं सकता सब जैसा
लेकिन दूर मुझे भी जाना है।।

अहसानों का पात्र न समझो
मुझको किंचित मात्र न समझो
इस शारीरिक कमजोरी को
तुम कोई अभिशाप न समझो।
बिना सहारे बैसाखी के
अब मंजिल मुझको पाना है
दौड़ नहीं सकता सब जैसा
लेकिन दूर मुझे भी जाना है।।

माना मैं कुछ कमजोरी है
मजबूत हौसला है मेरा
गढ़ने को आकाश यहाँ है
अब यही फैसला है मेरा।
कमजोर नहीं मैं दुनिया मे
ये दुनिया को बतलाना है।
दौड़ नहीं सकता सब जैसा
लेकिन दूर मुझे भी जाना है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अप्रैल, 2021


प्रेम गीत।

प्रेम गीत।  

हँसते फूल चुने हैं मैंने
तुम उनको लेने आ जाना
अपनी मोहक मुस्कानों से
अंतरतम तक तुम छा जाना।

कोमलता का चरम बिंदु तुम
सहज प्रेम का परम सिंधु तुम
तुम हो जीवन की उज्ज्वलता
मधु भावों का केंद्र बिंदु तुम।
मेरे अंतस के भावों में
तुम अपने भाव मिला जाना
हँसते फूल चुने हैं मैंने
तुम उनको लेने आ जाना।।

मृदु पंकज पलकों पर तेरे
उज्ज्वल सूरज का प्रकाश है
और मधुर अवयव में तेरे
मृदुल भावों का आकाश है।
मेरे मृदु भावों में अपना
तुम मृदु मधुमास मिला जाना।
हँसते फूल चुने हैं मैंने
तुम उनको लेने आ जाना।।

अंग अंग तेरे दिव्य निखिल
नवजीवन की तुझमें क्षमता
सकल प्रभावित पुण्य पुंज तुम
तृण तृण तुझमें है प्रियता।
मेरे अंतस के प्रियतम से
प्रिय अपना प्रेम मिला जाना
हँसते फूल चुने हैं मैंने
तुम उनको लेने आ जाना।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अप्रैल, 2021




दोष।

दोष।  

नजदीकियाँ यूँ तो बहुत थी
फिर दूरियाँ कैसे बनीं
थी चाहतें दोनों तरफ जब
फिर बात इतनी क्यूँ ठनी।।

यूँ तो सफर सीधा हमारा
औ मंजिलें भी एक थी
औ रास्तों पर रोक बहुत थे
पर भावनाएँ नेक थीं।।

जाने कब छूटा तुम्हारा
ये हाथ मेरे हाथ से
और टूटा मोह का धागा
छोटी सी किसी बात से।।

पर साथ तेरा छूटने का
सब दोष मुझ पर मढ़ गया
औ जाने कितने शब्दों से
आरोप मुझपे गढ़ गया।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22 अप्रैल, 2021









अवधी गीत-वन जिन जाइहा।

 अवधी गीत-  वन जिन जाइहा।  

हे भइया तू वन जिन जाईहा
हे भइया तू वन जिन जाइहा।

बिन तोहरे निक नाहि लागे 
सूरज, चंदा, तारे हो 
बिन तोहरे निक नाहि लागे 
सूरज, चंदा, तारे
तोहसे ही सब जुड़ल इहाँ है
औ सब हउए तोहरे सहारे
तोहरे बिना नदिया सुनी
बहे कइसे ई पुरवइया
हे भइया तू वन जिन जाइहा।।

तोहसे ही है दिनवा हमार 
सुबह, दोपहर, रतिया, हो
तोहसे ही है दिनवा हमार 
सुबह, दोपहर, रतिया
बिन तोहरे हम केसे बोलब
अपने जिउ के बतिया
तोहके देखे बिना मुश्किल हौ
मुश्किल हौ रहवइया।
हे भइया तू वन जिन जाइहा।।

हम सबके बस तू ही देवता
तू हउआ भगवान, हो
हम सबके बस तू ही देवता
तू हउआ भगवान।
बिन तोहरे कुछ कइसे समझब
तोहपे हौ अभिमान
तोहसे ही सब ज्ञान ध्यान हौ
तू ही हउआ हमार खेवइया
हे भइया तू वन जिन जाइहा।।

जो तू जाइबा जंगल मां 
तो हमहू सङ्गे जाइब, हो
जो तू जाइबा जंगल मां
तो हमहू सङ्गे जाइब।
रतिया दिनवा सेवा करब
जिनगी सङ्गे बिताइब।
बिन तोहरे मुश्किल हौ जीवन
तू ही संगी, साथी, भइया
है भइया तू वन जिन जाइहा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21अप्रैल, 2021




मूल मंत्र।

मूल मंत्र।  

काल के भाल पर अमर ग्रन्थ एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

राष्ट्र के प्रतीक वो धर्म की नीति वो
भाव की प्रधानता नेत्र की ज्योति वो
सबको सूत्र में गुहे जो तंत्र वो एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

पंथ पंथ मुक्ति है मुश्किलों में युक्ति है
मार्ग के अवरोध में बस वही शक्ति है
सर्वोच्च का प्रमाण जो पंथ वो एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

मंत्र मंत्र ज्ञान है हर शब्द में विज्ञान है
प्रवाह के प्रतीक वो राष्ट्र की शान हैं
काल के प्रभाव का मुक्ति मंत्र एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

सत्य के लिए चले सत्य के लिए जले
सत के विस्तार को मोम बन जो गले
खुद जले ताप में जग के चन्द्र एक हैं
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

जग के लिए लड़े कदम कदम रहे खड़े
जीते हर युद्ध  हारे जब खुद से लड़े
रिश्तों में प्रीत का दिव्य मंत्र एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

फूलों से पाँव थे शूल पर चले मगर
छोड़ करके सुख सभी दर्द को चुने मगर
ताप में भी शीत का मुख्य मंत्र एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

सृष्टि के प्रसार ब्रह्मांड का विस्तार वो
कण कण तारे जो मोक्ष का व्यवहार वो
मोक्ष के मार्ग का मुख्य पंथ एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

प्रेम के प्रतीक वो सद्भाव की रीत वो
सत का प्रतीक औ विश्वास की जीत वो
हृद को शांति दे वो राम मंत्र एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

©️✍🏻अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20अप्रैल, 2021

किससे बोलूं ?

किससे बोलूँ ?

क्या मुझको अधिकार नहीं 
अपने मन की मैं बोलूँ
घाव लगे जिन शब्दों से
उनकी पीड़ा को खोलूँ।।

मेरे नभ के आँगन में
भोर रश्मि सा तुम चमके
इस अँधियारे जीवन में
बिजली बनकर तुम दमके।
पर तुमसे जो रात मिली 
उसको मैं किससे बोलूँ
क्या मुझको अधिकार नहीं
अपने मन की मैं बोलूँ।।

तुमको सुनने की खातिर
मौन रहा मैं कितने पल
लेकिन तेरी बातों से
छला गया हूँ मैं प्रतिपल।
मौन सभी उन बातों को
बोलो मैं किससे बोलूँ।।
क्या मुझको अधिकार नहीं
अपने मन की मैं बोलूँ।।

स्वप्न दिखा उजियारे के
अँधियारे में छोड़ दिया
तुमने झूठे वादों से
मेरे मन को तोड़ दिया।
टूटे मन की पीड़ा को
तुम बोलो किससे बोलूँ
क्या मुझको अधिकार नहीं
अपने मन की मैं बोलूँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       19अप्रैल, 2021

गीत मैं कैसे गाऊँ।

गीत मैं कैसे गाऊँ।  

आज हृदय की पीड़ा को कैसे तुम्हें सुनाऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।

मैंने पलकों के आँचल में
कितने अश्रु छुपा रखे हैं
अपने अंतस के कोने में
कितने भाव दबा रखे हैं।

अंतस के उन भावों को कैसे तुम्हें बताऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।

जाने कैसी हवा चली है
संबंधों से प्रीत ढही है
भ्रम के इतने जालों में
कौन बताए कौन सही है।

सही झूठ के ताने बाने कैसे मैं सुलझाऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।

जिधर भी देखो दर्द दिख रहा
उम्मीदों में फर्क दिख रहा
जाने कैसी पीड़ा पसरी
पग पग जीवन सर्द दिख रहा।

सर्द हो रहे इस जीवन में जोश मैं कैसे लाऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।

दूर तलक अँधियारा घेरा
बस दिखता पत्थर का फेरा
गीली लकड़ी सूखे चूल्हे
अंतस का कब मिटे अँधेरा।

बिखरे अँधियारे में खुद को कैसे मैं बहलाऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18अप्रैल, 2021




रात भर।

रात भर।  

अँधियारे दुख के बादल में
सुख का दीपक जला रात भर
पसरी पीर हृदय में लेकिन
मलहम बनकर घुला रात भर।

व्याकुल मन का ये पंछी
इत उत डाली घूम रहा
मन में लाखों प्रश्न लिए
खुद अपने से पूछ रहा।
कितने ही प्रश्नों में उलझा
फिर भी हँसता रहा रात भर
अँधियारे दुख के बादल में
सुख का दीपक जला रात भर।।

सूनी डगर मन बना मुसाफिर
पग पग मंजिल ढूंढ रहा
टिम टिम तारों के प्रकाश में
अँधियारों से जूझ रहा।
जूझ रहा अपने भीतर भी
डग डग लेकिन चला रात भर
अँधियारे दुख के बादल में
सुख का दीपक जला रात भर।।

चाँद मुसाफिर बना रात भर
तारों ने भी साथ दिया
रात घनेरी कितनी भी थी
सपनो का मधुमास दिया।
सपनों का सूरज पाने को
चंदा पग पग चला रात भर।
अँधियारे दुख के बादल में
सुख का दीपक जला रात भर।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16अप्रैल, 2021

एक बहाना।

एक बहाना।  

तुमसे मिलने का जबसे बहाना मिला
मेरे दर्द को भी एक ठिकाना मिला।।

यूँ भी ताउम्र किस्मत से लड़ना ही था
मुकद्दर को भी इक बहाना मिला।।

मुहब्बत, अदावत, शराफत,  बेकसी
कहने को सही एक फसाना मिला।।

तेरे मेरे दरम्यान कुछ तो था जुरूर
ज़माने को यूँ ही नहीं ये बहाना मिला।।

भूल चुका अब जमाने के वो रंजो गम
एक तुम मिले मुझको जमाना मिला।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
 हैदराबाद
 14अप्रैल, 2021

जीवन बीता जाता है।

जीवन बीता जाता है।  

छिन पल छिन जीवन के
धीरे धीरे बीत रहे हैं
मृद मधु मेरे मधुवन के
रह रह कर रीत रहे हैं।

तेरे पदचिन्हों ने प्रतिपल
मुझको पंथ दिखाया था
कोटि कोटि अवरोध भले थे
प्रतिपल राह सुझाया था।
बिन तेरे वो पंथ सभी अब
रह रह कर बीत रहे हैं।
मृद मधु मेरे मधुवन के
रह रह कर रीत रहे हैं।।

बहुत चला औरों की खातिर
अब साथ तुम्हारे चलना था
बहुत सुनी औरों की बातें
अब बात तुम्हारी सुनना था।
कहने सुनने की ये बेला 
तुम बिन अब बीत रहे हैं।
मृदु मधु मेरे मधुवन के
रह रह कर रीत रहे हैं।।

हार जीत का खेल है जीवन
कभी हारे कभी जीत गए
संग तुम्हारे कितने ही पल
हारे फिर भी जीत गए।
बिन तेरे वो सारी खुशियाँ
अब मेरे मनमीत रहे हैं।
मृद मधु मेरे उपवन के
रह रह कर रीत रहे हैं।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13अप्रैल, 2021



नव संवत्सर।

नव संवत्सर।  

सौम्य मनोहर नव संवत्सर
नूतन भाव पुण्य संवत्सर
हृदय हृदय नव पुष्प खिले
शुभम करोति भाव संवत्सर।

सर्व जगत नव मंगल कारिणी
कर कमल हृद पुण्य विचारिणी
सद्विचार पोषक जन तारक
जन गण मन सर्व दुख हारिणी।

पग पग गुंजित वीणा के स्वर
ज्ञान ध्यान भाव हो उच्चतर
तम हारिणी प्रकाश संवाहक
जन जन तारक नवसंवत्सर।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13अप्रैल, 2021

राह दिखाने आ जाना।

राह दिखाने आ जाना।  

कितना सूना सफर यहाँ है
साथ निभाने आ जाओ
भूल नहीं जाऊँ मैं पथ को
राह दिखाने आ जाओ।

चला अकेला बहुत अभी तक
और नहीं चल पाऊँगा
जीवन की मुश्किल राहों पर
कैसे खुद को पाऊँगा।
मुझसे मेरा नाता कैसा
ये बतलाने आ जाओ।
भूल नहीं जाऊँ मैं पथ को
राह दिखाने आ जाओ।।

अंतस के भावों को समझो
कब तक मौन रहूँ बोलो
कब तक बंद रखूँगा दिल को
तुम ही अब इसको खोलो
व्यथा हमारे मन की समझो
इसको सुलझाने आ जाओ
भूल नहीं जाऊँ मैं पथ को
राह दिखाने आ जाओ।।

मेरे मन का पनघट सूना
भाव अधूरे सरगम सूना
सूनी है सरिता की धारा
तुम बिन ये मधुवन है सूना
सूने अंतस के आँगन में
दीप जलाने आ जाओ।
भूल नहीं जाऊँ मैं पथ को
राह दिखाने आ जाओ।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12अप्रैल,2021


मैं से मैं का सफर।

मैं से मैं का सफर।  

आज चला मैं मुझे ढूँढने
कितना दूर मुझे जाना है
अंतहीन राहों पर कब तक
मुझको यूँ चलते जाना है

मैं से मैं का शुरू सफर ये
मैं से मैं को अब पाना है
आज चला मैं मुझे ढूँढने
कितना दूर मुझे जाना है

प्रतिपल मैं के साथ रहा मैं
पर मैं कब पहचान सका
जग की कितनी बातें समझा
पर मैं को कब जान सका

त्याग दिया सब किंतु परन्तु 
बस मैं से मैं तक जाना है
आज चला मैं मुझे ढूँढने
कितना दूर मुझे जाना है।

मैं से मैं का छिड़ा द्वंद्व यह
आखिर कब तक यहाँ चलेगा
जान नहीं पाया जिस मैं को
मैं वो जाने कहाँ मिलेगा
उस मैं को पाने की खातिर
मुझको मैं तक जाना है
आज चला मैं मुझे ढूँढने
कितना दूर मुझे जाना है

 ©️✍️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद 
        12अप्रैल, 2021


थोड़ी दूर भोर है बाकी।

थोड़ी दूर भोर है बाकी।  

पग पग डग डग चलता जा तू
कदम कदम यूँ बढ़ता जा तू
कितना कुछ है पाया तुमने
कितना कुछ पाना है बाकी।
थोड़ी दूर भोर है बाकी।।

अँधियारा अब दूर हो रहा
दूर क्षितिज पर सूर्य दिख रहा
हटा रहा बादल का घूँघट
थोड़ा और हटाना बाकी।
थोड़ी दूर भोर है बाकी।।

चलते पथ में रुकना कैसा
बाधाओं में झुकना कैसा
उम्मीदों ने राह पकड़ ली
चली बहुत, कुछ और है बाकी।
थोड़ी दूर भोर है बाकी।।

पाने को सम्मान बहुत है
गढ़ने को प्रतिमान बहुत है
पथ के कंटक फूल बन रहे
धुंध छँटे कुछ और है बाकी।
थोड़ी दूर भोर है बाकी।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        11अप्रैल, 2021


किरण प्रभाती।

किरण प्रभाती।  

किरण प्रभाती रवि के रथ से
प्रतिदिन उल्लासित करती है
मन में नूतन भाव जगाकर
नव भाव प्रभासित करती है।

अलसाई सुबह में इसको
चेतन, हुलास भरते देखा
जग के झंझावत में इसको
नूतन विलास भरते देखा।

आकांक्षा, उत्साह प्रेम का
नव भाव दिलों में भरती है।
किरण प्रभाती रवि के रथ से
प्रतिदिन उल्लासित करती है।।

भिन्न भिन्न व्यवहार यहाँ हैं
भिन्न भिन्न आधार यहाँ
भिन्न भिन्न हैं मूल सभी के
भिन्न भिन्न सत्कार यहाँ।

एक सूत्र सब भाव पिरोकर
जग अनुशासित करती है।
किरण प्रभाती रवि के रथ से
प्रतिदिन उल्लासित करती है।।

नहीं निराशा का भाव कभी
ये मन में जगने देती 
कुण्ठा या अवसाद कभी भी
मन में ना पलने देती।

देती सबको ज्ञान मनोहर
दिवस प्रकाशित करती है
किरण प्रभाती रवि के रथ से
प्रतिदिन उल्लासित करती है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       09अप्रैल, 2021





जो आते इक बार यहाँ।

जो आते इक बार यहाँ।  

कितने बादल छँट जाते
कितने सपने खिल जाते
अपने कितने मिल जाते
जो आते इक बार यहाँ।

बिखरी माला सिल जाती
बिछड़ी राहें मिल जातीं
उपवन फिर से खिल जाता
जो आते इक बार यहाँ।

कितने उत्तर मिल जाते
घाव पुराने सिल जाते
अवगुंठन सब खुल जाते
जो आते इक बार यहाँ।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07अप्रैल, 2021

मन-उपवन।

मन-उपवन।  

पुष्पित अधरों के कंपन में
मुखरित है प्रिय स्वप्न सुनहरे
अंतस के उपवन में गुंजित
मोहित मधुमय गान मनहरे।।

लुक छिप करती पलकें तेरी
नयनों की गुपचुप मुस्कान
नवल भाव उद्दवेलित करतीं
भरतीं हिय में नूतन प्राण।।

मेरे मुस्कानों के पथ में
तुम ही संगी तुम आधार
तुमसे मधुवन सुरभित है ये
तुम ही जीवन का आकार।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       06अप्रैल, 2021




शब्द की भूमिका।

शब्द की भूमिका।  

भावनाओं के समर में शब्द की है भूमिका
शब्द का आशय भले लघु भाव विस्तृत प्रीत का।

कौन हृदय ऐसा है यहाँ प्रीत न जिसके पले
ढाई आखर प्रीत का ये पंथ जिसके न मिले
जो हिय है श्वेत वसन तो प्रीत ही है तूलिका
भावनाओं के समर में शब्द की है भूमिका।।

सृष्टि का आधार है ये प्रीत ही आकार है
प्रेम पावन हृद पले जो बस वही व्यवहार है
शब्द सिंधु जो उत्तम गढ़े बस वही शुचि गीतिका
भावनाओं के समर में शब्द की है भूमिका।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अप्रैल, 2021

नव प्रभात आशाभिलाष

नव प्रभात आशाभिलाष।  

नव प्रभात आशाभिलाष
सुरभित पुलकित महाकाश
उर उर स्पंदित नव चेतन
सुभग मनोहर मोहपाश।।

प्रबुद्ध शुद्ध वातायन करती
मानव मूल्य चेतना भरती
करती आशा का विकास
नव प्रभात आशाभिलाष।।

शीतल सौम्य दृश्य मनभावन
कानन कानन समुचित पावन
भावों में विस्तृत प्रकाश
नव प्रभात आशाभिलाष।।

मधु सुरम्मित नव नभ सुष्मित
हर्षित, पुलकित हिय आह्लादित
आच्छादित नव मधु प्रकाश
नव प्रभात आशाभिलाष।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05अप्रैल, 2021


प्रणय मिलन।

प्रणय मिलन।

मधुर मधुर कुछ गा मेरे मन
प्रणय मिलन की बेला में
लाजारुण पलकों से निखरे
सौम्य समर्पित बेला में।।

रात्रि की एकांत बेला 
औऱ ये रिमझिम घटायें
बन के बरसे प्रीत ऐसे
रात्रि भी पथ भूल जाये।

भूल जाये मुग्ध हो मन
प्रणय पुंज की बेला में।
मधुर मधुर कुछ गा मेरे मन
प्रणय मिलन की बेला में।।

लाज का गहना तुम्हीं हो
प्रीत का श्रृंगार हो तुम 
तुम हृदय की पूर्णता हो
मधुमास का मनुहार तुम।

पुण्यता की पूर्णता हो
प्रेम मिलन की बेला में।
मधुर मधुर कुछ गा मेरे मन
प्रणय मिलन की बेला में।।

चाँदनी का मौन पथ तुम
पल रहा जिस पर सवेरा
भोर की शीतल किरण तुम
आस का जिस पर बसेरा।

आस का निर्माण हो फिर 
प्रणय मिलन की बेला में।
मधुर मधुर कुछ गा मेरे मन
प्रणय मिलन की बेला में।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        04अप्रैल, 2021


जीत या हार।

जीत या हार।  

तुम्हें हराया जब भी मैंने
खुद को भी तो हार गया
जो भी दाँव चला था मैंने
खुद मेरे मन के पार गया।।

कौन पराया अपना क्या है
बीच भँवर जब नौका ठहरी
भूल नहीं पाया उस पल को
क्षण भर जब उम्मीदें ठहरी।

ठिठक गया मैं भी उस पल को
जब दाँव सभी बेकार गया।
तुम्हें हराया जब भी मैंने
खुद को भी तो हार गया।।

भुला नहीं सकता हूँ वो क्षण
जब जीता फिर भी हारा था
अपनेपन से लड़ा बहुत मैं
तब जाकर स्वीकारा था।

जीत गया तुमसे मैं लेकिन
अपना सब कुछ हार गया।
तुम्हें हराया जब भी मैंने
खुद को भी तो हार गया।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03अप्रैल, 2021




बिछोह।

बिछोह।   

मुझे पता था तुमको खोकर
एक कदम ना चल पाऊँगा
बिछड़ा तुमसे कभी कहीं तो
खुद से भी ना मिल पाऊँगा।।

मंजर मंजर गाया तुमको
औ महफ़िल महफ़िल पाया है
मैंने जीवन के हर पथ में
बस तुमको ही अपनाया है।

तुम मेरे गीतों की सरगम
तुम बिन ना मैं गा पाऊँगा
बिछड़ा तुमसे कभी कहीं तो
खुद से भी ना मिल पाऊँगा।।

तुम बिन साँस अधूरी मेरी
तुम बिन है एकाकी जीवन
तुम बिन मैं अनजाना खुद से
तुमसे जग के सारे बंधन।

खोया तुमको कभी कहीं तो
मैं खुद को भी ना पाऊँगा।
बिछड़ा तुमसे कभी कहीं तो
खुद से भी ना मिल पाऊँगा।।

जो ये जीवन बहता दरिया
तो तुम हि इसकी रवानी हो
इन साँसों ने जिसे सुनाया
तुम ही वो अमिट कहानी हो।

तुम लफ्जों की पुण्य प्रेरणा
तुम बिन ना कुछ कह पाऊँगा।
बिछड़ा तुमसे कभी कहीं तो
खुद से भी ना मिल पाऊँगा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03अप्रैल, 2021








अन्वेषण।

अन्वेषण।   

अपना मन दर्पण चिर परिचित
इसमें कितने शब्द तरंगित
नित नूतन हैं भाव पनपते
जो करते अंतस प्रतिबिंबित।

पग पग स्वर्गिक स्वप्न शिखर
मदिर मधुर औ कभी मुखर
पलकों पर इंद्रधनुषी छाया
शनैः शनैः हो रहे निखर।

मन कितने भावों का पोषण
उर उर करते रहते घोषण
शुद्ध भाव अंतर्मन चित्रित
सिद्ध जगत करता अन्वेषण।

अंतस में जो उठे तरंगें
मधुर भाव ज्योतिर्मय पावन
ज्योति पुंज फिर करे प्रकाशित
पुलकित मन आह्लादित कानन।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03अप्रैल, 2021


निज मन तू शीतल रहना।

निज मन तू शीतल रहना।  

ताप गहन हो रहा गगन में
निज मन पर तू शीतल रहना।

विश्व वेदना प्रतिपल क्षण क्षण
बन ज्वाला जलती है कण कण
अवसादों में घिर रहा व्योम ये
जग जीवन यूँ घिसता क्षण क्षण।

प्रबुद्ध शुद्ध बन उज्ज्वल रहना
निज मन पर तू शीतल रहना।।

सजल भाव स्वर्णादिक पावन
पग पग रच जीवन पूर्णतम
विस्मृत कर विस्तृत विचार अब
विस्तारित कर तू अपनापन।

ऋतु परिवर्तन संग तू बहना
निज मन पर तू शीतल रहना।।

पग पग ढलते कितने बंधन
कुछ सीमित कुछ मन अनुरंजन
विद्द्यमान कुछ मूर्तिमान सम
औ रचते कुछ नव स्वरूप मन।

नव चेतन बन रग रग बहना
निज मन पर तू शीतल रहना।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01अप्रैल, 2021

प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...