जो आते इक बार यहाँ।

जो आते इक बार यहाँ।  

कितने बादल छँट जाते
कितने सपने खिल जाते
अपने कितने मिल जाते
जो आते इक बार यहाँ।

बिखरी माला सिल जाती
बिछड़ी राहें मिल जातीं
उपवन फिर से खिल जाता
जो आते इक बार यहाँ।

कितने उत्तर मिल जाते
घाव पुराने सिल जाते
अवगुंठन सब खुल जाते
जो आते इक बार यहाँ।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07अप्रैल, 2021

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