बिछोह।
मुझे पता था तुमको खोकर
एक कदम ना चल पाऊँगा
बिछड़ा तुमसे कभी कहीं तो
खुद से भी ना मिल पाऊँगा।।
मंजर मंजर गाया तुमको
औ महफ़िल महफ़िल पाया है
मैंने जीवन के हर पथ में
बस तुमको ही अपनाया है।
तुम मेरे गीतों की सरगम
तुम बिन ना मैं गा पाऊँगा
बिछड़ा तुमसे कभी कहीं तो
खुद से भी ना मिल पाऊँगा।।
तुम बिन साँस अधूरी मेरी
तुम बिन है एकाकी जीवन
तुम बिन मैं अनजाना खुद से
तुमसे जग के सारे बंधन।
खोया तुमको कभी कहीं तो
मैं खुद को भी ना पाऊँगा।
बिछड़ा तुमसे कभी कहीं तो
खुद से भी ना मिल पाऊँगा।।
जो ये जीवन बहता दरिया
तो तुम हि इसकी रवानी हो
इन साँसों ने जिसे सुनाया
तुम ही वो अमिट कहानी हो।
तुम लफ्जों की पुण्य प्रेरणा
तुम बिन ना कुछ कह पाऊँगा।
बिछड़ा तुमसे कभी कहीं तो
खुद से भी ना मिल पाऊँगा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03अप्रैल, 2021
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