मूल मंत्र।

मूल मंत्र।  

काल के भाल पर अमर ग्रन्थ एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

राष्ट्र के प्रतीक वो धर्म की नीति वो
भाव की प्रधानता नेत्र की ज्योति वो
सबको सूत्र में गुहे जो तंत्र वो एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

पंथ पंथ मुक्ति है मुश्किलों में युक्ति है
मार्ग के अवरोध में बस वही शक्ति है
सर्वोच्च का प्रमाण जो पंथ वो एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

मंत्र मंत्र ज्ञान है हर शब्द में विज्ञान है
प्रवाह के प्रतीक वो राष्ट्र की शान हैं
काल के प्रभाव का मुक्ति मंत्र एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

सत्य के लिए चले सत्य के लिए जले
सत के विस्तार को मोम बन जो गले
खुद जले ताप में जग के चन्द्र एक हैं
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

जग के लिए लड़े कदम कदम रहे खड़े
जीते हर युद्ध  हारे जब खुद से लड़े
रिश्तों में प्रीत का दिव्य मंत्र एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

फूलों से पाँव थे शूल पर चले मगर
छोड़ करके सुख सभी दर्द को चुने मगर
ताप में भी शीत का मुख्य मंत्र एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

सृष्टि के प्रसार ब्रह्मांड का विस्तार वो
कण कण तारे जो मोक्ष का व्यवहार वो
मोक्ष के मार्ग का मुख्य पंथ एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

प्रेम के प्रतीक वो सद्भाव की रीत वो
सत का प्रतीक औ विश्वास की जीत वो
हृद को शांति दे वो राम मंत्र एक है
रूप हैं अनेक पर मूल मंत्र एक है।।

©️✍🏻अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20अप्रैल, 2021

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