निज मन तू शीतल रहना।

निज मन तू शीतल रहना।  

ताप गहन हो रहा गगन में
निज मन पर तू शीतल रहना।

विश्व वेदना प्रतिपल क्षण क्षण
बन ज्वाला जलती है कण कण
अवसादों में घिर रहा व्योम ये
जग जीवन यूँ घिसता क्षण क्षण।

प्रबुद्ध शुद्ध बन उज्ज्वल रहना
निज मन पर तू शीतल रहना।।

सजल भाव स्वर्णादिक पावन
पग पग रच जीवन पूर्णतम
विस्मृत कर विस्तृत विचार अब
विस्तारित कर तू अपनापन।

ऋतु परिवर्तन संग तू बहना
निज मन पर तू शीतल रहना।।

पग पग ढलते कितने बंधन
कुछ सीमित कुछ मन अनुरंजन
विद्द्यमान कुछ मूर्तिमान सम
औ रचते कुछ नव स्वरूप मन।

नव चेतन बन रग रग बहना
निज मन पर तू शीतल रहना।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01अप्रैल, 2021

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