अन्वेषण।
अपना मन दर्पण चिर परिचित
इसमें कितने शब्द तरंगित
नित नूतन हैं भाव पनपते
जो करते अंतस प्रतिबिंबित।
पग पग स्वर्गिक स्वप्न शिखर
मदिर मधुर औ कभी मुखर
पलकों पर इंद्रधनुषी छाया
शनैः शनैः हो रहे निखर।
मन कितने भावों का पोषण
उर उर करते रहते घोषण
शुद्ध भाव अंतर्मन चित्रित
सिद्ध जगत करता अन्वेषण।
अंतस में जो उठे तरंगें
मधुर भाव ज्योतिर्मय पावन
ज्योति पुंज फिर करे प्रकाशित
पुलकित मन आह्लादित कानन।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03अप्रैल, 2021
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