किससे बोलूँ ?
अपने मन की मैं बोलूँ
घाव लगे जिन शब्दों से
उनकी पीड़ा को खोलूँ।।
मेरे नभ के आँगन में
भोर रश्मि सा तुम चमके
इस अँधियारे जीवन में
बिजली बनकर तुम दमके।
पर तुमसे जो रात मिली
उसको मैं किससे बोलूँ
क्या मुझको अधिकार नहीं
अपने मन की मैं बोलूँ।।
तुमको सुनने की खातिर
मौन रहा मैं कितने पल
लेकिन तेरी बातों से
छला गया हूँ मैं प्रतिपल।
मौन सभी उन बातों को
बोलो मैं किससे बोलूँ।।
क्या मुझको अधिकार नहीं
अपने मन की मैं बोलूँ।।
स्वप्न दिखा उजियारे के
अँधियारे में छोड़ दिया
तुमने झूठे वादों से
मेरे मन को तोड़ दिया।
टूटे मन की पीड़ा को
तुम बोलो किससे बोलूँ
क्या मुझको अधिकार नहीं
अपने मन की मैं बोलूँ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19अप्रैल, 2021
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