रात भर।

रात भर।  

अँधियारे दुख के बादल में
सुख का दीपक जला रात भर
पसरी पीर हृदय में लेकिन
मलहम बनकर घुला रात भर।

व्याकुल मन का ये पंछी
इत उत डाली घूम रहा
मन में लाखों प्रश्न लिए
खुद अपने से पूछ रहा।
कितने ही प्रश्नों में उलझा
फिर भी हँसता रहा रात भर
अँधियारे दुख के बादल में
सुख का दीपक जला रात भर।।

सूनी डगर मन बना मुसाफिर
पग पग मंजिल ढूंढ रहा
टिम टिम तारों के प्रकाश में
अँधियारों से जूझ रहा।
जूझ रहा अपने भीतर भी
डग डग लेकिन चला रात भर
अँधियारे दुख के बादल में
सुख का दीपक जला रात भर।।

चाँद मुसाफिर बना रात भर
तारों ने भी साथ दिया
रात घनेरी कितनी भी थी
सपनो का मधुमास दिया।
सपनों का सूरज पाने को
चंदा पग पग चला रात भर।
अँधियारे दुख के बादल में
सुख का दीपक जला रात भर।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16अप्रैल, 2021

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