आस का दीपक।
रात भर आस का दीप जलता रहा
रात गहरी मगर चाँद चलता रहा।।
द्वार पर नैन मेरे तुम्हें खोजते
रात पलकों में बीती तुम्हें सोचते
चाँदनी भी बदन ये जलाती रही
रात करवट में बीती तुम्हें सोचते
तुम न आये मगर वक्त चलता रहा
रात भर आस का दीप जलता रहा।।
रात भर मौन तुम गुनगुनाते रहे
हम भी यादों में तुमको बुलाते रहे
साँझ सा धुँधलका याद तेरी बनी
हम शाम से एक दीपक जलाते रहे।
साथ में लौ के मन ये मचलता रहा
रात भर आस का दीप जलता रहा।।
तुम कहीं रुक गए हम कहीं थम गए
रिश्तों की गर्मियाँ बर्फ से जम गए
साँस अपनी मगर मौन चलती रही
ना तुम कह सके कुछ न हम कह सके
काँपते होठों पर गीत चलता रहा
रात भर आस का दीप जलता रहा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25अप्रैल, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें