जीवन बीता जाता है।
छिन पल छिन जीवन के
धीरे धीरे बीत रहे हैं
मृद मधु मेरे मधुवन के
रह रह कर रीत रहे हैं।
तेरे पदचिन्हों ने प्रतिपल
मुझको पंथ दिखाया था
कोटि कोटि अवरोध भले थे
प्रतिपल राह सुझाया था।
बिन तेरे वो पंथ सभी अब
रह रह कर बीत रहे हैं।
मृद मधु मेरे मधुवन के
रह रह कर रीत रहे हैं।।
बहुत चला औरों की खातिर
अब साथ तुम्हारे चलना था
बहुत सुनी औरों की बातें
अब बात तुम्हारी सुनना था।
कहने सुनने की ये बेला
तुम बिन अब बीत रहे हैं।
मृदु मधु मेरे मधुवन के
रह रह कर रीत रहे हैं।।
हार जीत का खेल है जीवन
कभी हारे कभी जीत गए
संग तुम्हारे कितने ही पल
हारे फिर भी जीत गए।
बिन तेरे वो सारी खुशियाँ
अब मेरे मनमीत रहे हैं।
मृद मधु मेरे उपवन के
रह रह कर रीत रहे हैं।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13अप्रैल, 2021
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