गीत मैं कैसे गाऊँ।
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।
मैंने पलकों के आँचल में
कितने अश्रु छुपा रखे हैं
अपने अंतस के कोने में
कितने भाव दबा रखे हैं।
अंतस के उन भावों को कैसे तुम्हें बताऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।
जाने कैसी हवा चली है
संबंधों से प्रीत ढही है
भ्रम के इतने जालों में
कौन बताए कौन सही है।
सही झूठ के ताने बाने कैसे मैं सुलझाऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।
जिधर भी देखो दर्द दिख रहा
उम्मीदों में फर्क दिख रहा
जाने कैसी पीड़ा पसरी
पग पग जीवन सर्द दिख रहा।
सर्द हो रहे इस जीवन में जोश मैं कैसे लाऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।
दूर तलक अँधियारा घेरा
बस दिखता पत्थर का फेरा
गीली लकड़ी सूखे चूल्हे
अंतस का कब मिटे अँधेरा।
बिखरे अँधियारे में खुद को कैसे मैं बहलाऊँ बोलो
बिखरे बिखरे सुर हैं मेरे गीत मैं कैसे गाऊँ बोलो।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18अप्रैल, 2021
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