हाय करूँ क्या रुसवाई।

हाय करूँ क्या रुसवाई।  

शब्द शब्द बंजारे मेरे
भाव चीखती तन्हाई 
उम्मीदें भी बनी मुसाफिर
हाय करूँ क्या रुसवाई।

आशाओं का जीवन हमने
उम्मीदों में पाला था
अपनी कितनी इच्छाओं को
हमने हँस कर टाला था।

उन इच्छाओं की राहों में
मुश्किल थी आवाजाही।
उम्मीदें भी बनी मुसाफिर
हाय करूँ क्या रुसवाई।।

बहुरंगी सपने आंखों में
सजे मगर फिर बिखर गए
कितने ही अवसर राहों में
मिले मगर फिर गुजर गए।

गुजर गए उन अवसर की
नहीं रही अब सुनवाई।
उम्मीदें भी बनी मुसाफिर
हाय करूँ क्या रुसवाई।।

अब कोई अफसोस नहीं 
मुझे किसी भी बातों का
जाने कितने दिवस गुजर गए
हिसाब लगाते रातों का।

अपनी ही कोइ चूक थी शायद
जो मुझे मिली ये तन्हाई।
उम्मीदें भी बनी मुसाफिर
हाय करूँ क्या रुसवाई।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      31जनवरी, 2021

पथिक सँभल कर चलना तुम।

पथिक सँभल कर चलना तुम।  

गर चल रहे हो सत्य पथ पर
पथिक सँभल कर चलना तुम
पथ में अगणित झूठ मिलेंगे
जरा सँभल कर मिलना तुम।

इस पथ पर तुमसे पहले
कितनों ने चल कर देखा है
पग पग कितने शूल चुभे पर
पीछे मुड़ कर ना देखा है।

इस पथ पर चलने से पहले
थोड़ा सोच समझना तुम।
गर चल रहे हो सत्य पथ पर
पथिक सँभल कर चलना तुम।।

रिश्तों और मर्यादाओं के
अनगिन प्रश्न तुम्हें मिलेंगे
बदल रहे इन परिवेशों में
तेरे बन कर तुझे छलेंगे।

प्रश्नों में घिरने से पहले
फिर से जरा समझना तुम।
गर चल रहे हो सत्य पथ पर
पथिक सँभल कर चलना तुम।।

संवादों औ परिवादों में
अंतर आज समझना होगा
सत्य मार्ग चलने से पहले
तुमको जरा सँभलना होगा।

सत्य झूठ की परिभाषा को
फिर से आज परखना तुम।
गर चल रहे हो सत्य पथ पर
पथिक सँभल कर चलना तुम।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       29जनवरी, 2021

गीत सुनाने आ जाना।

गीत सुनाने आ जाना।   

मेरे इस सूने आँगन में
दीप जलाने आ जाना
आज उदासी गीत बनी है
गीत सुनाने आ जाना।।

सदियों का जीवन हमने
छोटे पल में सौंप दिया
जो भी गीत बुने मैंने
तेरे पग में सौंप दिया।

मेरे इन गीतों को अपने
अधरों से सहला जाना।
आज उदासी गीत बनी है
गीत सुनाने आ जाना।।

मैंने जो भी गीत लिखे 
गीत अधूरा ना रह जाये
और प्रीत के आँगन में
प्रीत अधूरी न रह जाये।

प्रीत भरे मेरे इस मन को
हौले से सहला जाना।
आज उदासी गीत बनी है
गीत सुनाने आ जाना।।

जीवन के एकाकी पथ पर
मैंने इक दीप जलाया है
तेरी उम्मीदों में मैंने
अपनी उम्मीद मिलाया है।

मेरी उम्मीदों को तुम भी
राह नई दिखला जाना।
आज उदासी गीत बनी है
गीत सुनाने आ जाना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       28जनवरी, 2021

हथेली पर गुलाबी अक्षर।


हथेली पर गुलाबी अक्षर।  

मन में कितने भाव सुहाने
प्रिय आज हमारे रच डाले
शोख गुलाबी अक्षर तुमने 
आज हथेली पर लिख डाले।।

भीनी भीनी खुशबू फैली
अंतस में तेरे आने से
जीवन मुझको आज मिला है
इक बस तेरे मुस्काने से।

तेरी मुस्काहट ने कितने
अरमान सुहाने रच डाले।
शोख गुलाबी अक्षर तुमने
आज हथेली पर लिख डाले।।

बादामी जीवन कर डाला
बस इक तेरी सुनवाई ने
सपनों ने भी डेरा डाला
आज मधुर अँगनाई में।

पलकों ने अनगिन सपने
फिर आज सुहाने रच डाले।
शोख गुलाबी अक्षर तुमने 
आज हथेली पर लिख डाले।।

नहीं रही अब चाहत कोई
इक बस तुझसे जीवन पाऊँ
भोर खिले या साँझ ढले
बस साथ तुम्हारे मुस्काऊँ।

बस इक तेरे मिलन मात्र ने
कितने सपने हैं रच डाले।
शोख गुलाबी अक्षर तुमने
आज हथेली पर लिख डाले।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       27जनवरी, 2021

आघात।

आघात।   

जितने वादे होठों पर थे
इक एक कर के गुजर गए
आशा की जो किरण दिखी
कुछ अवसादों में बिखर गए।

शांति पूर्ण बैठे हैं कहकर
कैसा ये आघात किया
संविधान की आत्मा पर ही
आज कुठाराघात किया।

मुँह में राम बगल में छूरी
भावों को चरितार्थ किया
शांति म्यान में रख तलवारें
धोखे से आघात किया।

शांति पूर्ण आंदोलन में
हिंसा का स्थान नहीं होता
दंगा करने वालों का
कभी संविधान नहीं होता।

विघटनकारी ताकत है जो
विनयशीलता कब समझी है
जिनके मन में भेद बड़े हों
पुण्यशीलता कब समझी है।

राष्ट्रधर्म बस यही सिखाता
राष्ट्रप्रमुख औ राष्टप्रथम है
जो जैसी भाषा समझे
उससे वैसा ही उत्तम है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       27जनवरी, 2021

माँ गंगे।

माँ गंगे।  

कल कल निर्मल अविरल अनहद
प्राणदायिनी मुक्तिवाहिनी माँ गंगे।
सुरसरि पावन मधुर मन भावन
मोक्षदायिनी पुण्यवाहिनी माँ गंगे।
जीवन रक्षिणी विकास वाहिनी
पतितपावनी स्नेहदायिनी माँ गंगे।
झर झर हर हर भर भर स्नेहिल
सुवासित व्यवहारदायिनी माँ गंगे।
मन निर्मल तन कोमल करती
भाव भाव अभिवादन भरती 
भारत भूमि को पावन करती
रोगहारिणी जीवदायिनी माँ गंगे।
जन उद्धारिणी जीवन तारिणी
जन कष्टनिवारिणी है माँ गंगे
हिमाच्छादित गोमुख से निकली
विष्णुपदी स्वर्ग का है वरदान
अमृतवाहिनी पंचामृत जल
माँ जन जन भरती प्राण।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      26जनवरी, 2021


माँ गंगे।

माँ गंगे।  

कल कल निर्मल अविरल अनहद
प्राणदायिनी मुक्तिवाहिनी माँ गंगे।
सुरसरि पावन मधुर मन भावन
मोक्षदायिनी पुण्यवाहिनी माँ गंगे।
जीवन रक्षिणी विकास वाहिनी
पतितपावनी स्नेहदायिनी माँ गंगे।
झर झर हर हर भर भर स्नेहिल
सुवासित व्यवहारदायिनी माँ गंगे।
मन निर्मल तन कोमल करती
भाव भाव अभिवादन भरती 
भारत भूमि को पावन करती
रोगहारिणी जीवदायिनी माँ गंगे।
जन उद्धारिणी जीवन तारिणी
जन कष्टनिवारिणी है माँ गंगे
हिमाच्छादित गोमुख से निकली
विष्णुपदी स्वर्ग का है वरदान
अमृतवाहिनी पंचामृत जल
माँ जन जन भरती प्राण।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      26जनवरी, 2021


कलम से प्रार्थना।

कलम से प्रार्थना।  

शब्द शब्द में भाव मधुरतम
सब मिल गायें प्रेम तराना।
चलो कलम कुछ ऐसा लिख दो
जग जिसको पढ़ हो दीवाना।

जन जन में नव आशा भर दो
उम्मीदें अभिलाषा भर दो
प्रेम मुखर हो हर अधरों पर
अपनेपन की भाषा भर दो।

ऐसा जादू छाए हिय पर
झूमे नाचे गाये तराना।
चलो कलम कुछ ऐसा लिख दो
जग जिसको पढ़ हो दीवाना।।

अनासक्ति में आसक्ति भर दे
अनुनय विनय औ भक्ति भर दे
ऐसा कुछ तो मंत्र बता दो
एहसासों में  शक्ति भर दे।

शुद्ध भाव हो क्लेश मिटे सब
सबका सबसे हो याराना।
चलो कलम कुछ ऐसा लिख दो
जग जिसको पढ़ हो दीवाना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      25जनवरी, 2021





शौर्य गाथा।

शौर्य गाथा।   

नवनिर्माण का संकल्प ले जिस पंथ पर हो तुम चले
उसपे कितनी भावना इच्छाओं के हैं पुष्प खिले।

राष्ट्रवीरों ने पिरोया है  राष्ट्र को इक सूत्र में
और बाँधा है इसे सद्भावना के सूत्र में
एकता का सूत्र बाँधा प्रीत भरे हिय संबंध में
और बाँधा है इसे प्रिय विश्वास के अनुबंध में।

स्वर्णाक्षरों से लिखी इतिहास की कितनी कथाएँ
और जन जन में भरी अहसास की कितनी विधाएँ।
इतिहास के पन्नों में अमिट छाप बन बादल चले
उसमें कितनी भावना इच्छाओं के हैं पुष्प खिले।।

क्रांति का दीपक जला कर राष्ट्र को आलोकित किया
आँधियों तूफानों में भी खुद को ना विचलित किया
लिख गए अपने लहू से इतिहास नूतन राष्ट्र का
राजपथ पर आहूति देकर राष्ट् को पुलकित किया।

त्याग  बलिदान से आलोकित हुईं चारों दिशाएं
दे कर के खुशियाँ भोर की हर लीं सारी व्यथाएँ।
प्रण राष्ट्र के निर्माण का ले शूल पर प्रतिपल चले
उसमें कितनी भावना इच्छाओं के हैं पुष्प खिले।।

भूल नहीं सकता कभी राष्ट्र, त्याग जो तुमने किया
और अपने पुरुषत्व से कभी राष्ट्र न झुकने दिया
चढ़ शत्रु की छाती पे तुमने राष्ट्र का गौरव लिखा
हँसकर इस पुण्य पंथ में जीवन समिध अपना किया।

मृत्यू से संघर्ष कर के राष्ट्र की बदली दशाएं
और अपने त्याग से लिख दिये कितनी ही कथाएँ।
संघर्षों के पथ पर सदा निर्भीक होकर तुम चले
उसमें कितनी भावना इच्छाओं के हैं पुष्प खिले।।

राष्ट्र फिर से घिर रहा है अतिवाद के जंजाल में
औ शत्रु ताक में है खड़ा फिर आक्रमण की चाल में
झूठ का करके दिखावा वो सत्य को ढँकने चले 
औ सोचते वो हैं सफल अपनी बुनी इस चाल में।

है नहीं मालूम निगहबान हैं भारत की हवाएँ
और उनके शौर्य से महक रही हैं सारी फ़िजाएँ।
शौर्य की अगणित कहानियाँ भर के भावों में चले
उसमें कितनी भावना इच्छाओं के हैं पुष्प खिले।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24जनवरी, 2021




जीवन की गाथा।

जीवन की गाथा।   

ऐसे कैसे मैं लिख डालूँ
इस जीवन की गाथाएँ
तुम चाहो तो चिन्हित कर लो
जीवन की दारुण गाथाएँ।

शब्दों का आलिंगन करके
वाक्यों का निर्माण हुआ
पंक्ति पंक्ति उम्मीदें डालीं
तब जाकर परिमाण हुआ।

उम्मीदों के अनुच्छेदों में
छुपी हैं कितने आशाएँ।
तुम चाहो तो चिन्हित कर लो
जीवन की दारुण गाथाएँ।।

सपनों के आँगन में कितनी
इच्छाओं पर दाँव लगाए
सफल हुए कभि हुए विफल
हर मौसम में पर मुस्काये।

हार जीत के उन भावों में
छुपी हैं कितनी कविताएँ।
तुम चाहो तो चिन्हित कर लो
जीवन की दारुण गाथाएँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       22जनवरी, 2021



प्रभु मिलन की आस।

प्रभु मिलन की आस।   

श्री राम मिलन की आस लिए
मैं ना सोती ना जगती हूँ
कब आओगे प्रभुवर मेरे
मैं सूनी राहें तकती हूँ।।

हृदय भक्ति का भाव लिए
बस तुमको ही ध्यान किया
छोड़ चुकी सब नेह प्रलोभन
बस तेरा अनुमान किया।

उन अनुमानों को अपनी
उँगली पर मैं गिनती हूँ।
कब आओगे प्रभुवर मेरे
मैं सूनी राहें तकती हूँ।।

भटक नहीं जाये मन मेरा
खुद से नाता तोड़ लिया
तुम में खो जाने की खातिर
तुमसे नाता जोड़ लिया।

सांझ ढले जीवन बेला में
भोर सुहानी तकती हूँ।
कब आओगे प्रभुवर मेरे
मैं सूनी राहें तकती हूँ।।

जन जन के मन में प्रभु मेरे
मधुर मनोहर भाव जगाना
लोभ मोह प्रतिघात रोष के
दूषित भाव दूर हटाना।

कर जोड़े प्रभु चरणों में
मैं स्वयं समर्पित करती हूँ।
कब आओगे प्रभुवर मेरे
मैं सूनी राहें तकती हूँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       22जनवरी, 2021

अहसास।

अहसास। 

इक बार कभी जो वक्त मिले
बीती पर नजर फिरा लेना
भूले बिसरे अहसासों को
हौले से सहला लेना।।

कहीं सुलगते भाव कभी
हैं कहीं धड़कती आशाएँ 
कहीं सुनहरे ख्वाब सुहाने
कहीं प्रेम की परिभाषाएं ।

भावों के सागर में खुद को
बरबस ही नहला लेना।
भूले बिसरे अहसासों को
हौले से सहला लेना।।

सुख भरे सुनहरे हैं बादल
विश्वास प्रेम जीवन साथी
आशाएँ अवलोकन करती
इच्छाएं सब मधुमाती।

इच्छाओं के आँचल में
खुद को फिर बहला लेना।
भूले बिसरे अहसासों को
हौले से सहला लेना।।

सृजन युक्त जीवन की राहें
मंजिल को तकती हैं बाहें
दूर गगन में ढलता सूरज
मलय महकती आशाएँ।

आशाओं की बाती लेकर
फिर नवदीप जला लेना।
भूले बिसरे अहसासों को
हौले से सहला लेना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21जनवरी, 2021


जीवन जीना एक कला है।

जीवन जीना एक कला है।  

जीवन जीना एक कला है
भाव जताना एक कहानी।
कहीं कभी दीवाना कहता
और कहीं कोई दीवानी।।

तिनका तिनका जोड़ जाड़ कर
सपनों का महल बनाया है
आशाओं, इच्छा के मोती
से इसको आज सजाया है।

उम्मीदों के दामन में फिर
नित सपनों की नई कहानी।
जीवन जीना एक कला है
भाव जताना एक कहानी।।

कदम कदम पर कितनी बातें
भीतर कितने ही जज्बातें
मौन कहीं आवाज कहीं है
और कहीं हँसती बारातें।

नित नूतन संबंधो की
कहती सुनती एक कहानी।
जीवन जीना एक कला है
भाव जताना एक कहानी।।

विपरीत परिस्थिति से लड़ना
पुण्य पंथ पर आगे बढ़ना
अजय भाव अंतस में भरकर
उच्च शिखर तक कोशिश करना।

हार जीत के भाव से परे
प्रस्तुति की दुनिया दीवानी।
जीवन जीना एक कला है
भाव जताना एक कहानी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      21जनवरी, 2021






खुद को समझाने बैठा हूँ।

खुद को समझाने बैठा हूँ।   

भूली बिसरी याद सुहानी
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
उन यादों के झुरमुट में मैं
फिर सुस्ताने बैठा हूँ।
उन भूली बिसरी यादों को
फिर आज बुलाने बैठा हूँ।।

शब्द शब्द भावों में बहकर
अनुच्छेदों में गुम हो गए
अल्प कहीं पर पूर्ण विराम
संकेतों में गुम हो गए।
अनुच्छेदों के संकेतों को
फिर अजमाने बैठा हूँ
उन भूली बिसरी यादों को
फिर आज बुलाने बैठा हूँ।।

कितने पन्ने व्यर्थ हो गए
लिखे कहीं कहिं भूल गए
लिखे कहीं जो कुछ पन्नों पर
जाने कब वो शूल हो गए।
शूल चुभे पन्नों से दिल पर
उन को बहलाने बैठा हूँ
उन भूली बिसरी यादों को
फिर आज बुलाने बैठा हूँ।।

कितनी बातें कही अनकही
सुने कहीं, पर कहे नहीं
कितने मन मे दबे रह गए
कुछ भाव बुने पर गुहे नहीं।
कही अनकही उन बातों को
खुद को समझाने बैठा हूँ
उन भूली बिसरी यादों को
फिर आज बुलाने बैठा हूँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       20जनवरी, 2021

थोड़ा रूमानी हो जाएं।

थोड़ा रूमानी हो जाएं।  

दफन कर के बेचैनियों को किसी शाम के धुँधलके में
चलो चंद बिखरी रागनियों से दिल को बहलाया जाए।
चलो थोड़ा रूमानी हो जाया जाए।।

कब तक खामोशियों के दामन में सिर रखकर के रहोगे
चलो फिर से किसी की सुनें, किसी को अपनी सुनाया जाए।
चलो थोड़ा रूमानी हो जाया जाए।।

कब तक मन के दरवाजों में भावों को बंधक रखोगे
अंतर्मन के एहसासों से कुछ भाव जगाया जाए।
चलो थोड़ा रूमानी हो जाया जाए।।

बदल जाती है सारी कायनात इक बस मुस्कुराने से
चलो किसी के दिल मे बसकर फिर गुदगुदाया जाए।
चलो थोड़ा रूमानी हो जाया जाए।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      20जनवरी, 2021

उम्मीद।

     उम्मीद

जीवन है अनमोल धरोहर
व्यर्थ इसे ना तुम करना
उपवन है ये मधुर मनोहर
एहसासों से सिंचित करना।

इक राह अकेली चली दूर तक
अगणित मोड़ों तक है जाना 
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
मीलों तक है चलते जाना ।

जाने कितने मोड़ मिलेंगे
इन राहों पर आते जाते
मोड़ मोड़ से जुड़ते जुड़ते
मीलों तक हैं राह दिखाते।

इक मोड़ कहीं छूटेगी जब
दूजे तक तब है जाना ।
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
मीलों तक है चलते जाना।।

सूनी सूनी राहें माना
सूने सब रिश्ते नाते
सूनी इच्छाओं की माला
मन में कितने भाव जगाते।

सूनी यादों का संचय ले
खुद को फिर से है पाना।
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
मीलों तक है चलते जाना।।

इक छोटी सी कहीं रोशनी
जब राहों से मिल जाती है
बीती इच्छाओं के कितने
स्वप्न पुनः वो दे जाती है।

उन सपनों की देहरी तक
हमको तो है आना जाना।
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
मीलों तक है चलते जाना।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       19जनवरी, 2021




आगे बढ़ कर के रहूँगा।

आगे बढ़ कर के रहूँगा।  

ली प्रतिज्ञा जो यहाँ उसे, मैं पूर्ण वो कर के रहूँगा
गिरूंगा भले फिर उठूँगा आगे बढ़ कर के रहूँगा।।

कर्तव्य पथ पर चल पड़ा हूँ कंटकों का मुझे भय नहीं
मार्ग हो दुष्कर भले चंहुओर खंदक मुझे भय नहीं।

हूँ पथिक जिस पंथ का उस पंथ पर चल कर के रहूँगा
गिरूंगा भले फिर उठूँगा आगे बढ़ कर के रहूँगा।।

जनम मरण का मोक्ष द्वार जीवन इच्छाओं की धरती
संयोग प्रयोग की भूमि, व्यंजनाओं का अवलोकन करती।

भावों का ये प्रस्फुटन, भावों में ढल कर के रहूँगा
गिरूंगा भले फिर उठूँगा आगे बढ़ कर के रहूँगा।।

नीति, नैतिकता, नियम सब मेरे पथ के हैं सहचर
दृढ़-प्रतिज्ञा सत्य समागम पूण्य पन्थ के हैं अनुचर।

भावप्रवण विश्वास प्रबल मोक्ष तक चल कर के रहूँगा
गिरूंगा भले फिर उठूँगा आगे बढ़ कर के रहूँगा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       19जनवरी, 2021

इकरार करता हूँ।

इकरार करता हूँ।   

दिया है घाव जो तुमने
उसे स्वीकार करता हूँ
कहूँ क्या मैं तुझे अब भी
कि कितना प्यार करता हूँ।

नजर आते हो मुझे हरपल
इन नजारों में फ़िज़ाओं में
मैं कहूँ कैसे यहाँ तुमसे
कि कितना प्यार करता हूँ।

है तुमसे दर्द का रिश्ता
और तुमसे प्यार का रिश्ता
तुम्ही मेरी जरूरत हो
मैं ये इकरार करता हूँ।

है मेरा दर्द ये कैसा
कभी कोई बताएगा 
कि पकड़े नब्ज वो मेरी
सुकून इस दिल को आएगा।

न जाने ठोकरें कितनी
मिली मुझको जमाने में
मगर मैं अब भि कहता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       17जनवरी,2021


कभी यूँ ही।

कभी यूँ ही।   

जिंदगी रास्तों का सुहाना सफर
कभी यूँ ही निकल जाया तू कर।

बारिशों की इस दलदली जमीन पर
कभी यूँ ही कहीं मचल जाया तू कर।

खुद को इतना बचाने का क्या फायदा
कभी धूप में यूँ ही निकल जाया तू कर।

चाँद माना कि तुझसे बहुत दूर है
कभी तो कहीं मचल जाया तू कर।

वो चाँद मुझसे माना बहुत दूर है
कभी मेरा चाँद बन आया तू कर।

दर्द तो दर्द है, ये बहुत अनमोल है
यूँ ही आँखों से न बहाया तू कर।

ज़िंदगी तेरी यूँ ही खिल जाएगी
बस यूँ ही कभी मुस्कुराया तू कर।

लौटना है तुझे सभी जानते हैं ये
लौटने को सही कभी आया तू कर।

दिल मिले ना मिले अब ये जरूरी नहीं
नफरतों से सही नजर मिलाया तू कर।

जिंदगी रास्तों का सुहाना सफर
कभी यूँ ही निकल जाया तू कर।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      16जनवरी, 2021

भाव तड़पते देखा है।

भाव तड़पते देखा है।    

जब जब मैंने बस्ती में
रात सिसकते देखा है
सच कहता हूँ इस दिल में
इक भाव तड़पते देखा है।

ऊँचे ऊँचे पैमानों की
बातों की कोई चाह नहीं
घाव मिले हैं जिन लोगों से
मलहम की उनसे चाह नहीं।

मैंने भारत में भारत की
जब आह निकलते देखा है।
सच कहता हूँ इस दिल मे
इक भाव तड़पते देखा है।।

निज स्वार्थ की बेदी पर जब
न्यायों का अपमान बड़ा हो
जनतन की इच्छा के बदले
सत्ता का अभियान बड़ा हो।

ऐसे अभियानों को हमने
जब राह भटकते देखा है।
सच कहता हूँ इस दिल में
इक भाव तड़पते देखा है।।

कभी सुना था हमने भी
धन, दौलत औ रिश्ते-नाते 
नैतिकता के प्रतिमानों पर
इक दूजे को राह दिखाते।

अपने ही घर में जब हमने
ये भाव बिखरते देखा है।
सच कहता हूँ इस दिल में
इक भाव तड़पते देखा है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      16जनवरी, 2021



राष्ट्र वंदन।

  राष्ट्र वंदन।   

हिमशिखरों से छनकर दिनकर
प्रतिदिन जिसे जगाती है
पहनाकर हीरक हार जिसे
नवजीवन राग सुनाती है।

रश्मि किरण हैं जिसका चंदन
उषा काल करती खुद वंदन
अपना भारत पुण्य धरा वो
पग पग जीवन, कण कण नंदन।

नदियाँ इसकी जीवन धारा
मन निर्मल कोमल तन सारा
निर्झर मीठा राग सुनाते
प्रकृति ने है रूप निखारा।

खेतों खलिहानों में भारत
नित नूतन गीत सुनाती है
धरती पर मुस्कान बिखेरे
जन गण मन हरषाती है।

ऋषि मुनि वीरों की धरती
विद्वानों देवों की धरती
ज्ञान, ध्यान योगों की जननी
गीता, वेद, पुराणों की धरती।

ऊँचे पर्वत जहाँ शीश नवाये
सागर जिसका चरण पखारे
नीति, नियम नैतिकता खातिर
दुनिया जिसकी ओर निहारे।

ऐसा है अपना भारत
जिसपर हमको अभिमान सदा 
जियें मरें बस इसकी खातिर
प्रभु हमको दो वरदान सदा।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      15जनवरी, 2021








मौलिक उन्मेष।

मौलिक उन्मेष।   

दीप जले बस महलों में
तो रोशन देश नहीं होता
मुट्ठी भर की खुशियों से
मौलिक उन्मेष नहीं होता।

इक फूल खिला है गमलों में
इक फूल बिठा है सड़कों पर
इक फूल गुँथा है गजरे में
इक फूल दिखा है कचरे में।

हर फूलों की किस्मत में 
अच्छा परिवेश नहीं होता।
मुट्ठी भर की खुशियों से
मौलिक उन्मेष नहीं होता।।

शहर बसे हैं दूर गाँव से
आवाज वहाँ कब जाती है
मीलों राह चली तब जाकर
अहसासों को पाती है।

अहसासों की मंजिल का
कोई अवशेष नहीं होता।
मुट्ठी भर की खुशियों से
मौलिक उन्मेष नहीं होता।।

है दस्तूर अजब दुनिया का
उगता सूरज सब तकते हैं
समय समय का चक्कर है
इच्छाओं से कब थकते हैं।

इच्छाओं की राहों में पर
कोई अतिशेष नहीं होता।
मुट्ठी भर की खुशियों से
मौलिक उन्मेष नहीं होता।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       13जनवरी, 2021



मौन अभिव्यक्ति।

मौन अभिव्यक्ति।  

कल्पनाओं के व्योम पर
कितनी इच्छाएं हैं ठहरी
शब्द अधरों पर ठहर कर
मौन बन बैठे हैं प्रहरी।

व्याकरण को दोष देकर
वाक्य को हरपल सजा दी
और इसकी पृष्ठभूमि में
कितनी भाषाएं मिला दी।

अभिव्यक्ति की सीमाओं पर
नजरें वो जा कर के ठहरीं।
शब्द अधरों पर ठहर कर
मौन बन बैठे हैं प्रहरी।।

और तुमसे क्या कहूँ मैं
जाने स्वप्न थे क्या क्या यहाँ
बन के साधक जब चला मैं
आये कितने अवरोधन यहाँ।

सेज सपनों की सजी जब
यामिनी की नींद गहरी।
शब्द अधरों पर हैं ठहरे
मौन बन बैठे हैं प्रहरी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       12जनवरी, 2021




कैसी फैली है लाचारी।

कैसी फैली है लाचारी।   

भूतकाल से नहीं शिकायत
वर्तमान से भेद है भारी
पर दोनों के केंद्रबिंदु में
कैसी फैली है लाचारी।।

कहते हैं सब सेवक खुद को
पर सेवा का मोल लगाते हैं
कहीं उठी जब बात कभी
बस मुद्दों से भटकाते हैं।

लोकतंत्र तब मंद हुआ जब 
 सुविधाएं मुद्दों पर भारी।
पर दोनों के केंद्रबिंदु में
कैसी फैली है लाचारी।।

सुविधाओं की जन्नत में औ
अट्टहासों के बीच खड़े हैं
कैसा रुदन कैसा क्रंदन
चिंताओं में कौन पड़े हैं।

चिकनी चुपड़ी सड़कें अब
पगडंडी पर पड़ती भारी।
पर दोनों के केंद्रबिंदु में
कैसी फैली है लाचारी।।

आगे बढ़ना ही जीवन है
पर कदमों पर ध्यान करो
स्वप्निल जीवन की खातिर
कल का ना अपमान करो।

कल आज और कल का चक्कर
सारे रिश्तों पर है भारी।
पर दोनों के केंद्रबिंदु में
कैसी फैली है लाचारी।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      12जनवरी, 2021

नूतन अभियान लिए।

नूतन अभियान लिए।  

आज राह भी चली सफर में
नूतन इक अभियान लिए
और हवाएँ साथ चली हैं
मधुरिम सी मुस्कान लिए।

पुण्य पंथ है पथिक तिहारा
नित नूतन संकल्प यहाँ
मार्ग प्रशस्त हो अभियानों के
कहते सभी प्रकल्प यहाँ।

तेरे सारे अनुमानों औ
उम्मीदों का आकाश लिए।
आज राह भी चली सफर में
नूतन इक अभियान लिए।।

थक कर बैठ नहीं तुम जाना
बाधाओं विपदाओं से
हार नहीं जाना प्रिय मेरे
प्रकृति की आपदाओं से।

दिनकर तेरे साथ चल रहा
खुशियों का अनुमान लिए।
आज राह भी चली सफर में
नूतन इक अभियान लिए।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
      हैदराबाद
      06जनवरी, 2021

ठौर चाहिए लोकतंत्र को।

ठौर चाहिए लोकतंत्र को।   

लोकतंत्र सड़कों पर बैठा
तकता लालकिले की ओर है
आंखों में अश्रु, कुछ सपने
बस चाह रहा एक ठौर है।

कभी शीत से देह ठिठुरती
कभी ताप झुलसा जाती है
कभी कोई तीखी सी वाणी
चुभकर के तड़पा जाती है।

कभी नहीं सोचा था ऐसा
ये आया कैसा दौर है।
आंखों में अश्रु, कुछ सपने
बस चाह रहा एक ठौर है।।

आजादी से हमने अब तक
कितनी ही उम्मीदें पाली
कुछ उम्मीदें पूर्ण हुई हैं
कुछ उम्मीदें अब भी खाली।

इन उम्मीदों को दामन में
क्या मिला नहीं कभी ठौर है।
आँखों मे अश्रु, कुछ सपने
बस चाह रहा एक ठौर है।।

राजनीति के प्रांगण में क्यूँ
बैठी जनता सिसक रही है
पक्ष-विपक्ष के साये में चर्चा
इत-उत पल-पल खिसक रही।

जाने किस नूरा कुश्ती में
पिसा लोकतंत्र का दौर है।
आँखों मे अश्रु, कुछ सपने
बस चाह रहा एक ठौर है।।

मशाल जलाये उम्मीदों की
बस लालकिले को तकता है
लोकतंत्र क्या सत्ता खातिर
जनता के आगे झुकता है।

और नहीं कोई शब्द यहाँ
जिसे कलम लिखे कुछ और है।
आँखों मे अश्रु, कुछ सपने
बस चाह रहा एक ठौर है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       06जनवरी, 2021




प्रीत के आँगन में।

    प्रीत के आँगन में।   

शीतल चंचल मधुर चाँदनी
भावों को महकाती है
जब जब देखूँ रूप सुनहरा
हिय में हूक जगाती है। 

चंदन सी काया है तेरी
प्रीत भरा है अंग अंग में
मेरा मन बन भ्रमर डोलता
तेरी प्रीत के आँगन में।

तेरे नैनों की थिरकन
कितना कुछ कह जाती है।
जब जब देखूँ रूप सुनहरा
हिय में हूक जगाती है।।

तेरे कदमों की आहट से
जाने कितने गीत सजे
तेरी मुस्कानों से मन में
अगणित सुर संगीत सजे।

तेरे अधरों का कंपन 
बिन कहे बहुत कह जाती है।
जब जब देखूँ रूप सुनहरा
हिय में हूक जगाती है।।

जाग रही है रात साथ में
तारों की बारात सजी है
मेरे घर के आँगन में
खुशियों वाली रात सजी है।

तुझसे मिलने की चाहत
अंग अंग श्रृंगार सजाती है।
जब जब देखूँ रूप सुनहरा
हिय में हूक जगाती है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       06जनवरी, 2021


हम आहों में भी गाते हैं।

हम आहों में भी गाते हैं।  

कदम-कदम पर उलझन कितनी
हम जिसको सुलझाते हैं
कुछ रुसवाई कुछ तन्हाई
हम आहों में भी गाते हैं।

जीवन जीते हैं हम लेकिन
जीवन को समझा कितना
जैसी उलझन राह खड़ी थी
शायद हमने समझा उतना।

जीवन की पगडंडी पर हम
आखिर तक आते जाते हैं।
कुछ रुसवाई कुछ तन्हाई
हम आहों में भी गाते हैं।।

थोड़ी खुशियाँ हैं दामन में 
थोड़े  दुःख भी साथ चले
जीवन जीने की खातिर
हम मौसम के साथ ढले।

मौसम की कठिनाई से भी
हम छोड़ नहीं कुछ जाते हैं।
कुछ रुसवाई कुछ तन्हाई
हम आहों में भी गाते हैं।।

उलझन-सुलझन की बेदी पर
कभि संबंधों की बली चढ़ी
कभी कहीं कुछ पाया हमने
और कभी कुछ छोड़ चली।

इस छोटे से जीवन में हम
क्या कुछ खोते पाते हैं।
कुछ रुसवाई कुछ तन्हाई
हम आहों में भी गाते हैं।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       04जनवरी, 2021


आ अब लौट चलें।

आ अब लौट चलें।  

लौट चलें आओ सब मिलकर
फिर से उस पनघट पर जाएं
जिसपर बचपन अपना बीता
उस बरगद की छाँवों में आएं।

फिर से वो मंदिर की घंटी
फिर से वो तालाब किनारे
फिर से वो गलबहियां अपनी
छूटे उन सपनों को बुहारें।

फिर प्रार्थना गीत वो गायें
फिर से अपना हाल सुनाएं
फिर से बैठें छाँव तले हम
फिर से वो बचपन जी आएं।

फिर से खेलें खेल खिलौने
नभ की चादर, घास बिछौने
फिर से गायें वही तराने
कभी मनव्वल कभी बहाने।

कभी दोस्ती कभी लड़ाई
मिलना फिर से और जुदाई
वही खुली पगडंडी अपनी
जिस पर कितनी शाम बिताई।

कितना कुछ है पीछे छूटा
निज सपनों ने बचपन लुटा
पाने को कितना कुछ पाया
अनुमान नहीं क्या कुछ छूटा।

नींद गयी है चैन गयी है
सपनों वाली रैन गयी है
छूटी अहसासों की डोरी
कभी कही जो बैन गयी है।

ऐसे कब तक जीना होगा
इक बार चलो फिर मिल जाएं
छोड़ छाड़ कर सभी बहाने
क्यों ना हम फिर से मिल जायें।

लौट चलें आओ सब मिलकर
फिर से उस पनघट पर जाएं
जिसपर बचपन अपना बीता
उस बरगद की छाँवों में आएं।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       02दिसंबर, 2020

पुरुषार्थ अनुसरण करो।

पुरुषार्थ अनुसरण करो।     

बादलों की ओट में 
धूप भी अलसा रही 
ओस की बूंदें धरा पर
मंद यूँ मुस्का रही।

रात का अंतिम पहर 
औ भोर द्वारे पर खड़ी
रात की गुमनामियाँ भी
मुक्त होने को पड़ीं।

खग, विहग पंछी सभी
गीत गाने को चले 
रात दिन की डोर देखो
दूर क्षितिज पर मिले।

दिल चाहता खुलकर मिलूँ
पर शीत ऋतु झुलसा रही
बादलों की ओट में
धूप भी अलसा रही।

त्याग कर आलस्य सारे
स्फूर्ति का वरण करो
तोड़ कर बंधन सभी
पुरुषार्थ अनुसरण करो।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02दिसंबर, 2021

मिरे गीत गाये जाएंगे।

मिरे गीत गाये जाएंगे।   

आज लिखे जो गीत यहाँ
कल वो दुहराये जायेंगे
प्यार की जब बात होगी
मिरे गीत गाये जाएंगे।।

प्रेम का ये पंथ ना फिर
सूना कभी होगा यहाँ
प्रीत का नव पुष्प हरपल
कलियाँ खिलाएंगी यहाँ।

राह कलियों से सुगंधित
गीतों से सजाये जायेंगे।
प्यार की जब बात होगी
मिरे गीत गाये जायेंगे।।

मौन कितनी ख्वाहिशों की
वो राहतें दब कर रहीं
हम कहें या ना कहें पर
वो चाहतें सुनती रहीं।

चाहतों के गीत सारे
सब गुनगुनाये जायेंगे।
प्यार की जब बात होगी
मिरे गीत गाये जायेंगे।।

आज मेरी राहतों का
अभि मीत है कोई नहीं
और मेरी चाहतों का
अभि गीत है कोई नहीं।

कल मिरी गुमनामियाँ भी
आवाजों में सज जायेंगे।
प्यार की जब बात होगी
मिरे गीत गाये जाएंगे।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       01जनवरी, 2021


दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता।

दो घड़ी वक्त जो ठहर जाता।   

दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।

अजनबी हम तो थे जमाने से
तुमसे मिलकर हुए दिवाने से
दो कदम तुम जो साथ चल देते
तो ये जीवन यहाँ सँवर जाता।

दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।

कब से दिल में छुपाये बैठे हैं
कितने सपने सजाये बैठे हैं
एक बस तेरी जुस्तजू मुझको
जो तु हँस दे तो सब सँवर जाता।

दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।

जो तू है तो ये ज़माना है
सिवा तेरे न अब ठिकाना है
एक तुझमें जिंदगी है दिखी
वक्त कैसा भी हो गुजर जाता।

दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।।

इक बस तुझसे जिंदगानी है 
बिन तेरे खत्म ये कहानी है
तू ही मंजिल तू ही है रस्ता
तुझमें मिलकर के मैं निखर जाता।

दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       01जनवरी, 2021


श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...