दो घड़ी वक्त जो ठहर जाता।
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।
अजनबी हम तो थे जमाने से
तुमसे मिलकर हुए दिवाने से
दो कदम तुम जो साथ चल देते
तो ये जीवन यहाँ सँवर जाता।
दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।
कब से दिल में छुपाये बैठे हैं
कितने सपने सजाये बैठे हैं
एक बस तेरी जुस्तजू मुझको
जो तु हँस दे तो सब सँवर जाता।
दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।
जो तू है तो ये ज़माना है
सिवा तेरे न अब ठिकाना है
एक तुझमें जिंदगी है दिखी
वक्त कैसा भी हो गुजर जाता।
दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।।
इक बस तुझसे जिंदगानी है
बिन तेरे खत्म ये कहानी है
तू ही मंजिल तू ही है रस्ता
तुझमें मिलकर के मैं निखर जाता।
दो घड़ी जो ये पल ठहर जाता
जाने क्या क्या यहाँ सँवर जाता।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01जनवरी, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें