ज्ञान का दीपक।

ज्ञान का दीपक।  

चलो फिर आज गीतों में समर्पण गान हम भर लें
चुन कर शब्द जीवन से मधुर गुणगान हम कर लें
जला डालें सभी अवगुण रोकें राह खुशियों की
लिखें फिर गीत जीवन के नव आह्वान हम कर लें।।

सभी दुरवृत्तियों को त्याग कर मन शुद्ध कर डालें
मिटा डालें सभी दुर्गुण अरु मन को बुद्ध कर डालें
भटक जाये न ये जीवन कहीं अनगिन व्यथाओं में
जला कर ज्ञान का दीपक अँधेरे रुद्ध कर डालें।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28जनवरी, 2022

आलिंगन में हमने जीवन भर लिये।

आलिंगन में हमने जीवन भर लिए।  

भावों की फुलवारी से चुन प्रेम की कुछ पाँखुरी
हमने आलिंगन में अपने आज जीवन भर लिया।।

कह दिये जो शब्द तुमने भाव मन का खिल गया
क्या कहूँ तुमसे यहाँ पर क्या क्या मुझको मिल गया
चुन लिये हैं प्रीत के पल भर लिये हैं आँजुरी
मुझको जीवन के भँवर में जैसे किनारा मिल गया।।

पास आती हर लहर से भर के मन की गागरी
हमने आलिंगन में अपने आज जीवन भर लिया।।

कह दिया कुछ आज मन की और मन की सुन लिया
राहों में जो पुष्प बिखरे हमने उनको चुन लिया
रच लिये नव गीत हमने छू के तेरी आँगुरी
मन के विचलन को यहाँ जैसे सहारा मिल गया।।

मिल गया मन आज ऐसे खत्म मन की आतुरी
हमने आलिंगन में अपने आज जीवन भर लिया।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27जनवरी, 2022

यादों की बातें।

यादों की बातें।  

मन के सारे भाव मचल कर पन्नों में यूँ सिमट गये
गा ना पाये गीत यहाँ जो यादों में सब लिपट गये।।

बहुत सरल है इस जग में आरोपों की झड़ी लगाना
बहुत सरल है जग में औरों के ऊपर प्रश्न उठाना
सच है मन की बात कठिन जो औरों के मन को भाये
और सुनाना गीतों में मन के भावों को समझाना।।

समझा ना पाये भाव यहाँ जो गीतों में सिमट गये
गा ना पाये गीत यहाँ जो यादों में सब लिपट गये।।

कितनी आहें कितने आँसू कितनी रची कहानी है
कितनी बातें दबी रह गयीं कितनी और सुनानी है
लिखे कलम शब्द सँजोकर उतने भाव मुखर हो बैठे
शब्द नहीं जो लिखे कलम ने गीतों में कह जानी है।।

आँखों के आँसू पलकों में आये आकर सिमट गये
गा ना पाये गीत यहाँ जो यादों में सब लिपट गये।।

डूबा है आकाश कहीं तो किरणें भी तो मंद हुईं
तम के भ्रम में दूर क्षितिज पर किरणों की गति कुंद हुई
जलते दीपक आज निशा से आंखमिचौली खेल रहे
आशाओं के इंद्रधनुष क्यूँ रंगों में बेमेल रहे।।

इंद्रधनुष के रंग यहाँ सब आकाशों में सिमट गये
गा ना पाये गीत यहाँ जो यादों में सब लिपट गये।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27जनवरी, 2022

संभावनाएँ।

संभावनाएँ।  

भोर की पहली किरण 
जब चूमती हैं गात को
मुक्त होती हैं दिशायें
फैलती हैं ज्योत्सनायें।।

वेद मंत्रों की ऋचाएँ
कानों में मृदु गीत घोलें
पंछियों की आहटें मृदु
कान में संगीत घोलें
गूँजते हैं दश दिशायें
दे रही संभावनाएँ।।

प्राची से दिनकर निकलकर
पुण्य पंथों को सजाता
दे के नव एहसास फिर
शून्य से सबको जगाता
भर रहा जीवन में प्रतिपल
मृदु आस की संवेदनाएँ।।

जागो है भारत तुम्हें है
नव गीत का निर्माण करना
गूँजे जिससे विश्व सारा
संगीत का निर्माण करना
त्यागो आलस्य हैं खड़ी
सामने मृदु कामनायें।।

सत्य का संज्ञान कर के
लक्ष्य का संधान कर लो
आस का आकाश ले कर
पुण्य का अनुमान कर लो
संशयों से दूर देखो
रच रहीं संभावनाएँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       26जनवरी, 2022

सिहरन मन की।

सिहरन मन की।  

चंदन गात तुम्हारा रूपसी यादों में मुस्काता है
हौले से इक सिहरन मन के मृदु भावों को छू जाता है।।

प्राची से छनकर किरणें जब मन का चुंबन लेती हैं
भावों के उपवन में कितने सपने में वो बुन लेती हैं
सपनों के आलिंगन में जब-जब ऊषा ने अँगड़ाई ली 
हौले से मुस्काती प्राची भाव सुनहरे रच देती है।।

रूप सुनहरा जब जब तेरा मन उपवन में लहराता है
हौले से इक सिहरन मन के मृदु भावों को छू जाता है।।

पदचापों की मधुर रागिनी जब भरती गीतों का आँगन
तब-तब मन के उपवन में सजती है पुण्य सुरों की सरगम
कंगन की खन-खन सुन कर तब खिल जाती हैं मन की कलियाँ
नये सुरों में गीत सजा मन सुनना चाहे मृदु संबोधन।।

अधरों का मृदु कंपन जब-जब नवगीत मनहरा गाता है
हौले से इक सिहरन मन के मृदु भावों को छू जाता है।।

शब्दों का संयोजन ऐसा गीतों की हो मधुर पालकी
अधरों का संबोधन ऐसा बातें किरणें स्वतः मानती
रच जाते हैं नव गीत कई मृदु भावों के मुस्काने से
खिल जाता हैं मधुवन सारा गीतों में तेरे गाने से।।

तेरे पलकों के नरतन से दृश्य मनोरम हो जाता है
हौले से इक सिहरन मन के मृदु भावों को छू जाता है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25जनवरी, 2022

जमाना गुनगुनायेगा।

जमाना गुनगुनायेगा।  

हाल ए दिल जानने तिरा यहाँ अब कौन आयेगा
हवाओं ने नजर फेरी संदेशा कौन लायेगा।।

ये माना नींद तुझको तो कभी आई नहीं लेकिन
बता पलकों में तिरी नींदों को फिर कौन लायेगा।।

तिरे गीतों ने पलकों को दिखाये हैं कई सपने
संग में तू नहीं होगा उन्हें फिर कौन गायेगा।।

मिले जो जख्म दुनिया से नहीं मुश्किल भुलाना है
मगर दिल की लगी को फिर कोई कैसे भुलायेगा।।

है बाकी रोशनी अब भी कहीं मन के अँधेरों में
तुम्हारा साथ पाया जो दिया फिर टिमटिमायेगा।।

चलो कुछ गीत हम रच दें ज़माने की रवायत के
सदियों बाद भी जिनको ये जमाना गुनगुनायेगा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जनवरी, 2022

ऐसा कोई मिला नहीं।

ऐसा कोई मिला नहीं।   

यादों के तहखाने में धूल धूसरित छवि तुम्हारी
ऐसा कोई मिला नहीं हम जिसको अपना कह पाते।।

अंतस में वो गीत अभी तक ठहरे हैं कुछ यादें बनकर
जिनको तुमने कभी लिखा था शब्दों की कलियाँ चुन चुन कर
रच डाले थे गीत कई मृदु मौसम के परिधानों के
गीत मगर सब दबे रह गये ऋतुओं के व्यवधानों में
अधरों तक आकर सब ठहरे गाते भी तो कैसे गाते
ऐसा कोई मिला नहीं हम जिसको अपना कह पाते।।

साँझ ढले मन सिंधु तीर पर छिपता सूरज देख रहा
भूली बिसरी यादों में मन लुका छिपी है खेल रहा
नभ के गलियारे में अब तक ठहरे वो चंदा तारे
सपनों को आलिंगन भर चले कभी जो साथ हमारे
छूटा नभ का साथ कभी तो टूटे तारे गिर जाते
ऐसा कोई मिला नहीं हम जिसको अपना कह पाते।।

यादों के मानसरोवर में गीत अभी तक गूंज रहे
तेरे अधरों ने मुस्काकर कानों में जो कभी कहे
उन गीतों की सरगम से ही जीवन क्या हमने जाना
प्राण बाँसुरी की सरगम है अधरों तक जाकर जाना
लेकिन स्वर जब मिला नहीं हम गाते भी तो कैसे गाते
ऐसा कोई मिला नहीं हम जिसको अपना कह पाते।।

जीवन के इस महासिन्धु में कितने गीत सजाए थे
रुँधे भले थे कंठ मगर संग संग मिल कर गाये थे
जर्जर धूल धूसरित छवि देवालय में कहीं दबी है
माना जग से दूर हुए लेकिन मुझमें यहीं कहीं है
मन के सूने देवालय में तुम बिन क्या दीप जलाते
ऐसा कोई मिला नहीं हम जिसको अपना कह पाते।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22जनवरी, 2022

गीत कैसे मान लूँ।

गीत कैसे मान लूँ।   

कुछ शब्द भरकर गीत में इतरा न मन तू इस तरह
होंठ पर जब तक सजे ना गीत कैसे मान लूँ।।

मन एक प्यासा समंदर राह नदिया की तके है
दूर उद्गम हो भले पर राह बोलो कब थके है
जब चल दिये आवेग में ये रास्ते खुल जायेंगे
और जो मन में उठे वो प्रश्न सभी मिट जायेंगे
प्रश्न के उत्तर सभी क्या स्वीकार होंगे इस तरह
जो बात मन की ना कहे तो गीत कैसे मान लूँ।।

दर्द का ना बोध हो ऐसा कोई प्राणी नहीं है
सुख ही सुख का ढेर हो ऐसी अमरवाणी नहीं है
न हो सजग इस पंथ में तो पाँव ये छिल जायेंगे
हौसलों पर यदि हो पकड़ तो रास्ते मिल जायेंगे
चोट खाकर टूट जायें इस राह में जो इस तरह
उसके क्रंदन को कहो यहाँ गीत कैसे मान लूँ।।

व्यर्थ होंगे शब्द सारे गीतों का न बोल होगा
अधरों पर जो न सजे तो गीत का क्या मोल होगा
जग को जो कुछ दे सके ना व्यर्थ जीवन जायेंगे
ये शब्द कोरे ही रहेंगे गीत न बन पायेंगे
जब तक सजे ना होंठ पर तो प्रीत कैसे मान लूँ
और मन को जो छुये न उसे गीत कैसे मान लूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20जनवरी, 2022

लोकतंत्र फिर खिल खिल जाये।

लोकतंत्र फिर खिल खिल जाये।  

अनगिन मौन कहानी मन की
बाट जोहती संकेतों की
लेकिन बारी जब आयी तो
कोलाहल में दबी रह गयी।।

मंचों से कितनी ही बातें
उम्मीदों के दीप जलाती
मन के संकेतों को पढ़ती
संकोचों में पर खो जाती
मिलने को तो मिल जाती पर
बाट जोहती संकेतों की
लेकिन बारी जब आयी तो
कोलाहल में दबी रह गयी।।

निकला आज मचल कर सूरज
अँधियारे को दूर भगाने
लिखने को इक नया सवेरा
उम्मीदों के गीत सुनाने
गीत मधुर अधरों पर ठहरे
बाट जोहते संकेतों की
लेकिन बारी जब आयी तो
कोलाहल में दबी रह गयी।।

बीच सदन में खड़ी द्रौपदी
याचक बनकर किसे बुलाये
किसे अंतर्मन की पीर कहे
किसको अपना घाव दिखाये
मन में कितना घाव लिये वो
करे प्रतीक्षा आदेशों की
लेकिन बारी जब आयी तो
कोलाहल में दबी रह गयी।।

सत्ता के गलियारों में ना
लोकतंत्र दब कर रह जाये
खुलकर मन की बात कहो अब
लोकतंत्र फिर से खिल जाये
मिट जाये अँधियारे सारे
खिले रश्मियाँ अनुदेशों की
मिल जाये सम्मान सभी को
लोकतंत्र फिर खिल खिल जाये।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20जनवरी, 2022

गीत मेरे अधरों पर सबके सजेंगे।

गीत मेरे अधरों पर सबके सजेंगे।   

आज माना गीत मेरे हैं ढूँढते अपने निशाँ
इक दिन ये गीत मेरे अधरों पर सबके सजेंगे।।

साँझ ने माना सभी को रात की सूरत दिखाई
बादलों की ओट से भी चाँद ने दी है दुहाई
कुछ चुने हैं पुष्प हमने रात की तनहाइयों में
पुष्प का परिधान लेकर आस की बगिया सजायी
है सब समय का फेर अब अफसोस ना इसका करो
दीप जो हमने जलाया सुबह लाकर ही बुझेंगे।।

बेबसी मेरे हृदय की जब नहीं समझे यहाँ पर
तुम ही कहो क्यूँ बेबसी को गीत मैं गाता फिरूँ
अब इस कदर अफसोस न करना मेरे हालात पर 
है नहीं संभव यहाँ कि सबको मैं बतलाता फिरूँ
बेबसी जो थी अधर की उपहास ना उसका करो
दीप जो हमने जलाया सुबह लाकर ही बुझेंगे।।

आँधियों में आज फिर से दीप सपनों का जलाया
आँसुओं का तेल भरकर आस को बाती बनाया
है यही बस कामना के गीत मेरे भी सजेंगे
आज गाता हूँ अकेले कल इसे सारे कहेंगे
आँधियों में तेज माना अफसोस ना इसका करो
दीप जो हमने जलाया सुबह लाकर ही बुझेंगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       19जनवरी, 2022

पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।

पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।   

जो उदासी पास आये दूर तुम उसको करो
पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।।

अश्रु जो बहते पलक से होता आत्मा का क्षरण
बह गये आँसुओं को बोलो कहाँ मिलता शरण
जो गिरे ये पलक से तो हाथ ही हैं पोंछते
फिर कहो किसलिये यहाँ उदासियों को पोसते।।

ये अश्रु व्यर्थ हो न जायें कुछ तो तुम जतन करो
पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।।

पंथ की नाकामियों का है जरूरी आकलन
जिंदगी ये हार जीत का है सुखद संकलन
है कौन जो जगत में दुख से सदा वंचित रहा
या कहो किस भाग्य में सुख ही सदा संचित रहा।।

सभी पलों को जिंदगी के स्वयं आँचल में भरो
पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।।

है विकलता पास आये मौन तुम पुचकार लो
भर आलिंगन में अपने प्रेम उस पर वार दो
दो घड़ी का है जगत ये व्यर्थ ना इसको करो
जिंदगी है कीमती बस प्रेम से स्वागत करो।।

अब जिंदगी को पाश में लो व्यर्थ न क्रंदन करो
पुतलियाँ ये नीर को कब तक यूँ ही ढोएंगी।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18जनवरी, 2022

शब्दों में छलकेगा ही।

शब्दों में छलकेगा ही।  

जीवन के इस महासिन्धु की
है छोटी सी धारा माना
उद्गम पर यदि रोक लगेगी
शब्दों में फिर छलकेगा ही।।

प्यालों में सिमटा ना पाया
जीवन भर जल की बूँदों को
पलकों में सिमटा ना पाया
भावों की बहती बूँदों को
भावों पर यदि रोक लगेगी
पलकों से फिर छलकेगा ही
उद्गम पर यदि रोक लगेगी
शब्दों में फिर छलकेगा ही।।

बीच भँवर में साथ छोड़ना
उत्तम कैसे कहो कहूँ मैं
भय के आगे पीठ मोड़ना
संयम कैसे कहो कहूँ मैं
संयम पर आघात लगेगा
आवाजों में तड़पेगा ही
उद्गम पर यदि रोक लगेगी
शब्दों में फिर छलकेगा ही।।

जिसने कर्मयोग को समझा
गुण- दोष उसी ने पहचाना
आरोपों के चक्रव्यूह में
उसका ही है आना जाना
कर्मयोग का पुष्प खिला कर
सँवरेगा अरु महकेगा ही
उद्गम पर यदि रोक लगेगी
शब्दों में फिर छलकेगा ही।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17जनवरी, 2022



रात पर ठहर गयी।

 रात पर ठहर गयी।  

कुछ लिखा नहीं लिखा, कुछ पढ़ा नहीं पढ़ा
कुछ कहा नहीं कहा, कुछ सुना नहीं सुना
पँक्तियाँ मौन थीं, भाव सब बिखर बिखर
शब्द के अभाव में मौन के स्वभाव में
क्या वो बोलते गये मुझको तोलते गये
सुने सभी खड़े खड़े नीर नैन में भरे
जो लिखे थे गीत सारे अधरों पर लहर गयी
साँझ तो गुजर गया रात पर ठहर गयी।।

इक हथेली आस लेकर मिल रहे थे दूर से
कितने स्वप्न पास लेकर पल रहे थे दूर से
कुछ मिला नहीं मिला क्या क्या पर बिछड़ गया
यादों के झरोखों से वो बीता पल गुजर गया
क्या क्या देखते रहे मौन सोचते रहे
सोचा सब खड़े खड़े नीर नैन में भरे
जो लिखे थे गीत सारे अधरों पर लहर गयी
साँझ तो गुजर गया रात पर ठहर गयी।।

प्रेम का मधुर वो ग्रंथ पढ़ नहीं सके जिसे
पास पास चल रही पर कह नहीं सके जिसे
कंठ में ही दब गये वो गीत सारे प्यार के
मौन भाव राह गये थे वक्त के प्रहार से
खुद को खोजते रहे मौन सोचते रहे
खोजा फिर खड़े खड़े नीर नैन में भरे
जो लिखे थे गीत सारे अधरों पर लहर गयी
साँझ तो गुजर गया रात पर ठहर गयी।।

मुक्त हूँ प्रभाव से अरु वक्त के बहाव से
दर्द के लगाव से अरु आस के जुड़ाव से
थी घुटी जो चीख सारी बीते कल के वार से
घाव सब गुजर गये अब उम्र के प्रभाव से
उम्र के उतार पर वो शब्द बीनते रहे
वो शब्द ले खड़े खड़े नीर नैन में भरे
जो लिखे थे गीत सारे अधरों पर लहर गयी
साँझ तो गुजर गया रात पर ठहर गयी।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15जनवरी, 2022


वरना गीत अधूरे रह जायेंगे।

वरना गीत अधूरे रह जायेंगे।  

मेरे गीतों के शब्दों में कुछ तो शब्द भरो हे प्रियवर
वरना जो भी गीत लिखे हैं सभी अधूरे रह जायेंगे।।

जीवन भर महकूँ मैं यूँ ही
मन में मेरे नहीं लालसा
गीतों की गलियों में बहकूँ
ऐसी भी है नहीं लालसा
पर मेरे गीतों में तुम भी अपना गीत भरो हे प्रियवर
वरना जो भी गीत लिखे हैं सभी अधूरे रह जायेंगे।।

ये गीत नहीं वो पुष्प यहाँ 
जो आसानी से मिलते हैं
भावों में जब प्यास जगी हो 
तब ही जाकर ये खिलते हैं
मेरे मन की इन प्यासों में तुम थोड़ी तो बरसात भरो
वरना जो भी गीत लिखे हैं सभी अधूरे रह जायेंगे।।

जीवन के इस महा सिन्धु में
पल कितना कुछ सिखलाता है
जो भी डूबा आकर इसमें
जीवन का मोती पाता है
मेरे इस मोती की माला का तुम प्रियवर आधार बनो
वरना जो भी गीत लिखे हैं सभी अधूरे रह जायेंगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        14जनवरी, 2022


चेहरे जब याद आते हैं।

चेहरे जब याद आते हैं।  

मेरे नयनों के ऑंसू भी बहते बहते रुक जाते हैं
मूल भूत सुविधा से वंचित चेहरे जब याद आते हैं।।

जीवन भर वरदानों खातिर
पग पग कितना दूर चला मैं
थोड़े से अहसानों खातिर
जाने कितनी पीर सहा मैं
लेकिन जिन चरणों ने बेबस
भटक भटक कर जीवन काटा
उन चरणों के छाले मेरे
दिल को बरबस तड़पाते हैं।।
मेरे नयनों के ऑंसू भी बहते बहते रुक जाते हैं
मूल भूत सुविधा से वंचित चेहरे जब याद आते हैं।।

राष्ट्र भावना की मशाल ले
सीमाओं पर लोग डटे जो
प्राण हथेली पर रख कर के
रक्षा खातिर वहाँ डटे जो
उनके त्याग भावना के प्रण
ने इतिहास बदल डाला है
उनके बलिदानों की बातें
दिल को पल पल छू जाते हैं।।
मेरे नयनों के ऑंसू भी बहते बहते रुक जाते हैं
मूल भूत सुविधा से वंचित चेहरे जब याद आते हैं।।

आजादी की बलिबेदी पर
कितना ही अपमान सहा है
भूख प्यास में जीवन काटा
पग पग कितना घाव सहा है
जिनके घावों की पीड़ा ने
सारा भूगोल बदल डाला 
उनके पीड़ा की आवाजें
अंतरतम तक दहलाते हैं।।
मेरे नयनों के ऑंसू भी बहते बहते रुक जाते हैं
मूल भूत सुविधा से वंचित चेहरे जब याद आते हैं।।

खुद काल कोठरी में रहकर
आजादी को मान दिलाया
भारत माता को दुनिया में
न्यायोचित सम्मान दिलाया
अपने जीवन की आहुति दे
जिसने साम्राज्य बदल डाला
बलिदानों की इस माटी के
सौगंध हृदय को छू जाते हैं।।
मेरे नयनों के ऑंसू भी बहते बहते रुक जाते हैं
मूल भूत सुविधा से वंचित चेहरे जब याद आते हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13जनवरी, 2022

गीतों का मत उपहास करो।

गीतों का मत उपहास करो।  

मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।

सुख की उम्मीदों में हमने अगणित दुख भी पाले हैं
फिर भी कदम कदम पर मेरे सुख पर कैसे ताले हैं
मेरे सुख के तालों पर अब तुम भी मत अनुताप करो
मुझको पश्चाताप नहीं मत तुम भी पश्चाताप करो।।


मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।

सुख की सेजों पर ही सोऊँ माँगा कब वरदान यहाँ
पीड़ा की गलियों में विचरूँ ऐसी भी ना चाह यहाँ
पीड़ा की गलियों में अब तुम मत कोई अभिताप करो
मुझको पश्चाताप नहीं मत तुम भी पश्चाताप करो।।


मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।

इस सारे संसार मध्य में ऑंसू आज सहारा है
किससे कहूँ हृदय की बातें किसको कहूँ हमारा है
मेरे आँसू पर अब तुम मत कोई भी परिताप करो
मुझको पश्चाताप नहीं मत तुम भी पश्चाताप करो।।


मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।

मोम नहीं अब पत्थर हूँ मै दर्द का यहाँ समंदर हूँ
जितना जग ने बाहर समझा उतना ही मैं अंदर हूँ
अब होने ना होने का तुम मत कोई अभिताप करो 
मुझको पश्चाताप नहीं मत तुम भी पश्चाताप करो।।


मेरे गीत व्यथा हैं मेरी मत इनका परिहास करो
आँसू बन कर शब्द झरे हैं मत इनका उपहास करो।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12जनवरी, 2022

शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।

शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।

आस की ज्योति ले पंथ के तम चुने
रश्मि की गोद में स्वप्न कितने बुने
हो विदित के यहाँ मोक्ष की राह पर
शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।

छंद की पंक्ति में जो समाहित हुआ
भाव के रूप में जो आवाहित हुआ
अरु वाणी में जिसके मधुर तान थी
वही गीत अधरों से प्रवाहित हुआ।।

जो कहे गीत पल पल मधुरतम बने
प्रीत के भाव में वो निकटतम बने
हो विदित के यहाँ मोक्ष की राह पर
शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।

रात ने ओट से भोर से कुछ कहा
वो जो बीती निशा में क्या कुछ सहा
मौन को गीत से था मिला आसरा
प्रीत के पाश में गुनगुनाता रहा।।

अंक में प्रीत के स्वप्न जितने बुने
पंथ में प्रीत के पुष्प उतने चुने
हो विदित के यहाँ मोक्ष की राह पर
शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।

हैं समर्पित दिशायें तुम्हारे लिये
गीतों की अदायें तुम्हारे लिये
शब्द श्रृंगार से अब सजे जो यहाँ
वो सारी विधायें तुम्हारे लिये।।

पंथ में पुण्य के ग्रंथ जितने सुने
पंक्ति ने जीत के पंथ उतने बुने
हो विदित के यहाँ मोक्ष की राह पर
शब्द कितने गढ़े शब्द कितने सुने।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09जनवरी, 2022


चोट में हम तो मुस्कुराने लगे हैं।

चोट में हम तो मुस्कुराने लगे हैं।  

याद से जिनको अपनी हम भुलाने लगे हैं
सुना है वही फिर हमें आजमाने लगे हैं।।

उम्र भर सच अपना छिपाते रहे जो सभी से
सुना वही झूठ अपना अब छुपाने लगे हैं।।

वो कल तक जिन्हें किसी की जरूरत नहीं थी
वही अब मिलने के मौके बनाने लगे हैं।।

कल तलक जिन्हें शौक था आईने का बहुत
सुना आईने से नजरें चुराने लगे हैं।।

जब भी चाहा मिलूँ खामोशियों के शहर में
सारे मंजर पुराने छटपटाने लगे हैं।।

के तुम्हें याद हो न हो वो बातें पुरानी 
पर मुझे यादें वो सारी बुलाने लगे हैं।।

तेरी बेरुखी ने यूँ तड़पाया है अकसर
बेरुखी में भी खुद को आजमाने लगे हैं।।

कि असर करता नहीं चोट कोई अजय अब तो
अब हर चोट में हम तो मुस्कुराने लगे हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08जनवरी, 2022

जो न लिखता क्या मैं करता।

जो न लिखता क्या मैं करता।   

चल रहा था जिस सफर में बैठ कर के क्या मैं करता
इम्तिहानों की डगर थी जो न लड़ता क्या मैं करता।।

दिल किया मेरा कहूँ मैं बात तुमसे जो थी सारी
तुम नहीं जब सुन सके फिर बोल कर के क्या मैं करता।।

चाह थी इतनी मेरी के संग में तेरे चलूँ मैं
साथ मेरा जब न भाया फिर ठहर कर क्या मैं करता।।

जाने था कैसा वहम दिलों में जो घर कर गयी थी
बात जो समझा न पाया खुद समझ कर क्या मैं करता।।

कितनी ही सदियाँ घुल गयीं थी इक घरौंदे के लिये
दोराहे पर जब जिंदगी खुद बसर कैसे मैं करता।।

वो इश्क की जो एक कहानी थी हमारे दरमियाँ
रास जब तुमको न आयी भूलता ना क्या मैं करता।।

वो दीप थे जो भी जलाये हमने तेरे नाम के
आग जब दामन पे पहुँची फूँकता न क्या मैं करता।।

अब कट रही है जिंदगी बिन तेरे कैसे मैं कहता
गीत का ही आसरा था जो न लिखता क्या मैं करता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       07जनवरी, 2022

रात बन मोम पल पल पिघलती रही।।

रात बन मोम पल पल पिघलती रही।।

पलक के कोर पर नींद की पाँखुड़ी
द्वार पर स्वप्न ले कर मचलती रही
मन तरसता रहा रोशनी के लिये
रात बन मोम पल पल पिघलती रही।।

भोर की आस में रात जगती रही
ओस के साथ ही साथ बहती रही
भाव मन में थे कितने उमड़ते रहे
गीत में भावनाओं को कहती रही।।

रात भर चाहतों का समुंदर लिये
बूँद भर प्यास को वो तरसती रही
मन तरसता रहा रोशनी के लिये
रात बन मोम पल पल पिघलती रही।।

चाहतों का बसा कर हृदय में शहर
पूजती वो रही मौन आठों पहर
वक्त से जाने कैसी अनबन रही
कह सकी ना हृदय में उठी जो लहर।।

भाव मन में दबाये पहर दर पहर
रात भर सिलवटों में सिमटती रही
मन तरसता रहा रोशनी के लिये
रात बन मोम पल पल पिघलती रही।।

उमर ने पंथ में छाँव कितने बुने
पुष्प देकर सभी स्वयं काँटे चुने
जो हृदय में दबी भावना रह गयी
स्वयं से ही कहे स्वयं से ही सुने।।

जो बची रह गयीं भाव की तितलियाँ
स्वयं के दायरे में सिमटती रही
मन तरसता रहा रोशनी के लिये
रात बन मोम पल पल पिघलती रही।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07जनवरी, 2022

छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।

छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।  

रात की सेज पर गीत की चाँदनी
ओस ओढ़े हुए मुस्कुराने लगी
कुछ कहा मौन ने साज सजने लगे
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।।

सपने पलकों पे आ थिरकने लगे
बिन पिये ही कदम ये बहकने लगे
हाथ आया जब से तेरा हाथ में
रात और दिन मेरे महकने लगे।।

अंक में प्रीत की रीत पलने लगी
रात रानी बनी खिलखिलाने लगी
कुछ कहा मौन ने साज सजने लगे
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।।

शब्द कितने मधुर पंक्ति में लिख गये
भाव कितने मृदुल अंक में छिप गये
झरे पुष्प अधरों से बने गीत वो
बात अपने हृदय की सभी कह गये।।

भाव कितने हृदय में मचलने लगे
कामनायें मधुर गीत गाने लगीं
गीत नूतन अधर पर सँवरने लगे
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।।

प्रेम संकेत पा रश्मियाँ खिल गयीं
साज ऐसे सजे रागिनी सज गयीं
कुछ कहें ना कहें मौन कहने लगे
हम मिले जो यहाँ धड़कनें मिल गयीं।।।

शब्द का साथ पा गीतिका यूँ सजी
धड़कनें भी मधुर गीत गाने लगीं
प्रेम का पंथ ऐसे सुसज्जित हुआ
छंद की पालकी गुनगुनाने लगी।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06जनवरी, 2022


लेखनी जब चले मन बहकने लगे।

लेखनी जब चले मन बहकने लगे।  

शब्द का ज्ञान ले भाव संज्ञान ले
सपनों की वादियों में मुस्कान ले
कुछ रचे शब्द मन में थिरकने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

चाँदनी ने कही जो अधूरी कथा
तारों के मन की वो अधूरी व्यथा
रात भर ओस में तन फिसलने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

अभिव्यक्तियों के भाव मन में लिये
पंक्ति में अक्षरों ने है अंतस छुये
शब्द ऐसे रचे मन समझने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

अश्रु पलकों में आकर रुके रह गये
अधरों ने भाव मन के ऐसे कहे
हर्ष के अश्रु बनकर वो चमकने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

नीर का भाव से मौन संबंध है
पीर का पलकों से ज्यूँ अनुबंध है
पीर के पलों में अश्रु तड़पने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

शब्द ऐसे चुनें गीत ऐसे लिखें
भावों के मर्म को जो बिखेरा करें
रश्मियाँ गीत की यूँ दमकने लगे
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

है यहाँ क्या कहो इक सिफर के सिवा
जिंदगी क्या कहो इक सफर के सिवा
राह में सब चलें सब समझने लगें
लेखनी जब चले मन बहकने लगे।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        04जनवरी, 2022



गीत गाती रही है चाँदनी।

गीत गाती रही है चाँदनी।  

अश्रु बूंदों में भिंगो कर तूलिका ने गीत लिखा
रात भर उस गीत को गाती रही है चाँदनी।।

क्यूँ बूँद पलकों से गिरे दोष क्या किसको पता
छोड़ क्यूँ दहलीज आये कौन सी थी वो खता
आये छलके अश्रु कितने गीत बन जज्बात के
पीर था या स्वप्न कोई जो चुभा किसको पता।।

पीर भावों के समझकर तूलिका ने गीत लिखा
रात भर उस गीत को गाती रही है चाँदनी।।

ओस बूंदों से फिसल जब भाव मन के गिर पड़े
शब्द कुछ गूँजे हृदय में मौन पर ना कह सके
थी जगी सिहरन वहाँ पर भाव ने जिसको छुआ
छलछलाये पीर मन के गीत में सब कह पड़े।।

भावों का संस्कार पा तूलिका ने गीत लिखा
रात भर उस गीत को गाती रही है चाँदनी।।

रात भर इक कहानी मन में कहीं पलती रही
गीत लिख कर वेदना के रात भर कहती रही
प्राण के संचार से कुछ शब्द अधरों से झरे
आस के आकाश पर वो गीत बन झरती रही।।

प्राणों का संचार पा तूलिका ने गीत लिखा
रात भर उस गीत को गाती रही है चाँदनी।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03जनवरी, 2022

भारत- एक परिचय।

भारत- एक परिचय।   

सकल विश्व की पुण्य धरा का
सूक्ष्म, मगर हूँ शब्द प्रखर
हो मौन विश्व चाहे जितना
पर शब्द मिरे हैं सौम्य मुखर
मैं पुष्प सुशोभित मृदुल भाव
मैं अवसादों में मृदुल छाँव
मैं गीत मनोहर मीरा का
चैतन्य प्रभू की मधुर तान
मैं हूँ राधा का प्रेम सहज
अरु हूँ मुरली की मधुर तान
क्या परिचय बतलाऊँ अपना
इस दिव्य धरा का सूक्ष्म प्राण।।

रग रग कण कण मेरा शंकर
सौम्य, सुलभ मैं हूँ अभ्यंकर
मैं हूँ कान्हा का चक्र सुदर्शन
मैं ही सागर का हूँ मंथन
मैं मर्यादा का पुण्य प्रवाह
ऋषि मुनियों का प्रेम अथाह
ज्ञान ध्यान शोभित हैं भूषण
वेद पुराण ग्रंथ आभूषण
गुरुकुल शिक्षा भाव सुलभ
मैं हूँ गीता का प्रखर ज्ञान
क्या परिचय बतलाऊँ अपना
इस दिव्य धरा का सूक्ष्म प्राण।।

मैं राणा का अचूक प्रहार
लक्ष्मीबाई की खड्ग धार
अब अरि के मर्दन में क्या दोष
मैं वीर शिवाजी का उद्घोष
मैं मंगल पांडे की हुंकार
अरि के लिये मैं हूँ ललकार
मैं गंगा की पावन धारा
यमुना का मैं निश्छल प्रवाह
सत्य अहिंसा का मैं द्योतक
सत्यम शिवम सुंदर है ज्ञान
क्या परिचय बतलाऊँ अपना
इस दिव्य धरा का सूक्ष्म प्राण।।

मैंने कब चाहा है जग को
केवल अपने आधीन करूँ
मैंने कब चाहा है जग में
बस निजता खातिर जियूँ मरूं
कोई तो बतलाये कब मैंने 
दुर्बल पर अत्याचार किये
सत्ता की खातिर कब मैंने
अपने जन का संहार किये
कब्जाया न भूभाग कोई
न कभी किया हमने अभिमान
क्या परिचय बतलाऊँ अपना
इस दिव्य धरा का सूक्ष्म प्राण।।

मैं रामायण की चौपाई
भगवदगीता का गूढ़ ज्ञान
मैं गुरु द्वारे का आदि ग्रंथ
अरु गौतम का मैं प्रथम ज्ञान
राम कृष्ण की सकल भावना
सत्य सनातन यही कामना
हर्षित मन सब हर्षित तन सब
सतयुग की फिर करूँ स्थापना
नेक बनें सब एक बनें सब
वसुधैव कुटुंबकम का ज्ञान
क्या परिचय बतलाऊँ अपना
इस दिव्य धरा का सूक्ष्म प्राण।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01जनवरी, 2022

भटक न जाना कहीं बिखर कर।

भटक न जाना कहीं बिखर कर।  

भीड़ बड़ी हैं इन राहों पर
सबके अपने अपने मेले
अगणित आशायें हैं पथ में
अगणित इच्छाओँ के रेले
दूर बड़ी मंजिल है माना
चलना हमको सँभल सँभल कर
पग पग अवसादों के मेले
भटक न जाना कहीं बिखर कर।।

मोड़ मोड़ पर कितनी आँखें
रह रह तुझको घूर रही हैं
तेरे पथ के अँधियारों से
अनजानी अरु दूर रही हैं
उनसे आगे जाना है तो
इच्छाओं को आज प्रबल कर
पग पग अवसादों के मेले
भटक न जाना कहीं बिखर कर।।

धारा के विपरीत चले जब
तूफानों से फिर क्या डरना
बीच राह में भँवर मिलेंगे
तुझको सबसे पार उतरना
मन में रख तू एक किनारा
होड़ मची है लहर लहर पर
पग पग अवसादों के मेले
भटक न जाना कहीं बिखर कर।।

सबका अपना अपना जीवन
इच्छाओं से सब जीते हैं
कोई पल पल रोता रहता
कोई हँस कर दुःख पीते हैं
घने कुहासे लाख भले हो 
सूरज नहीं छुपा अंबर पर
पग पग अवसादों के मेले
भटक न जाना कहीं बिखर कर।।

जब तेरा उद्देश्य अडिग हो
अरु हो तेरा विश्वास अटल 
अवसाद भरे ताने कितने 
क्या तुझे करेंगे कहीं विकल
दृढ़ता को हथियार बना कर
विजय पताका लगा शिखर पर
अवसादों से दूर निकल कर
चलो मुक्त हो आज शिखर पर।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01जनवरी, 2022

तूफां में भी कश्ती सँभल जायेगी यहाँ।

तूफां में भी कश्ती सँभल जायेगी यहाँ।  

ये जिंदगी की राहें बदल जायेगी यहाँ
नदियों के भी प्रवाह बदल जायेंगी यहाँ
अब क्या करोगे सोच के कि किसको क्या मिला 
चले जो साथ मंजिलें मिल जायेंगी यहाँ।।

कैसे कहूँ के याद अब आती नहीं मुझे
कैसे कहूँ के राहें बुलाती नहीं मुझे
कैसी है मजबूरी क्या बताऊँ मैं यहाँ
तू भी तो बात अपनी बताती नहीं मुझे।।

थी कोई खता यहाँ जो मौसम बदल गया
न जाने क्या हुआ था जो मन ये मचल गया
तुमसे खता हुई या कि मुझसे हुई यहाँ
जाने हुई क्या बात जो रिश्ता बदल गया।।

वो रात की जो बात गुजर जायेगी यहाँ
सुधरी हुई थी और सुधर जायेगी यहाँ
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लें सभी
तूफां में भी कश्ती सँभल जायेगी यहाँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01जनवरी, 2022


प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें

 प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें एक दूजे को हम इतना अधिकार दें, के प्यार में पीर लें पीर को प्यार दें। एक कसक सी न रह जाये दिल में कहीं, ...