रात पर ठहर गयी।
कुछ लिखा नहीं लिखा, कुछ पढ़ा नहीं पढ़ा
कुछ कहा नहीं कहा, कुछ सुना नहीं सुना
पँक्तियाँ मौन थीं, भाव सब बिखर बिखर
शब्द के अभाव में मौन के स्वभाव में
क्या वो बोलते गये मुझको तोलते गये
सुने सभी खड़े खड़े नीर नैन में भरे
जो लिखे थे गीत सारे अधरों पर लहर गयी
साँझ तो गुजर गया रात पर ठहर गयी।।
इक हथेली आस लेकर मिल रहे थे दूर से
कितने स्वप्न पास लेकर पल रहे थे दूर से
कुछ मिला नहीं मिला क्या क्या पर बिछड़ गया
यादों के झरोखों से वो बीता पल गुजर गया
क्या क्या देखते रहे मौन सोचते रहे
सोचा सब खड़े खड़े नीर नैन में भरे
जो लिखे थे गीत सारे अधरों पर लहर गयी
साँझ तो गुजर गया रात पर ठहर गयी।।
प्रेम का मधुर वो ग्रंथ पढ़ नहीं सके जिसे
पास पास चल रही पर कह नहीं सके जिसे
कंठ में ही दब गये वो गीत सारे प्यार के
मौन भाव राह गये थे वक्त के प्रहार से
खुद को खोजते रहे मौन सोचते रहे
खोजा फिर खड़े खड़े नीर नैन में भरे
जो लिखे थे गीत सारे अधरों पर लहर गयी
साँझ तो गुजर गया रात पर ठहर गयी।।
मुक्त हूँ प्रभाव से अरु वक्त के बहाव से
दर्द के लगाव से अरु आस के जुड़ाव से
थी घुटी जो चीख सारी बीते कल के वार से
घाव सब गुजर गये अब उम्र के प्रभाव से
उम्र के उतार पर वो शब्द बीनते रहे
वो शब्द ले खड़े खड़े नीर नैन में भरे
जो लिखे थे गीत सारे अधरों पर लहर गयी
साँझ तो गुजर गया रात पर ठहर गयी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15जनवरी, 2022