चोट में हम तो मुस्कुराने लगे हैं।

चोट में हम तो मुस्कुराने लगे हैं।  

याद से जिनको अपनी हम भुलाने लगे हैं
सुना है वही फिर हमें आजमाने लगे हैं।।

उम्र भर सच अपना छिपाते रहे जो सभी से
सुना वही झूठ अपना अब छुपाने लगे हैं।।

वो कल तक जिन्हें किसी की जरूरत नहीं थी
वही अब मिलने के मौके बनाने लगे हैं।।

कल तलक जिन्हें शौक था आईने का बहुत
सुना आईने से नजरें चुराने लगे हैं।।

जब भी चाहा मिलूँ खामोशियों के शहर में
सारे मंजर पुराने छटपटाने लगे हैं।।

के तुम्हें याद हो न हो वो बातें पुरानी 
पर मुझे यादें वो सारी बुलाने लगे हैं।।

तेरी बेरुखी ने यूँ तड़पाया है अकसर
बेरुखी में भी खुद को आजमाने लगे हैं।।

कि असर करता नहीं चोट कोई अजय अब तो
अब हर चोट में हम तो मुस्कुराने लगे हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08जनवरी, 2022

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