गीत मेरे अधरों पर सबके सजेंगे।
इक दिन ये गीत मेरे अधरों पर सबके सजेंगे।।
साँझ ने माना सभी को रात की सूरत दिखाई
बादलों की ओट से भी चाँद ने दी है दुहाई
कुछ चुने हैं पुष्प हमने रात की तनहाइयों में
पुष्प का परिधान लेकर आस की बगिया सजायी
है सब समय का फेर अब अफसोस ना इसका करो
दीप जो हमने जलाया सुबह लाकर ही बुझेंगे।।
बेबसी मेरे हृदय की जब नहीं समझे यहाँ पर
तुम ही कहो क्यूँ बेबसी को गीत मैं गाता फिरूँ
अब इस कदर अफसोस न करना मेरे हालात पर
है नहीं संभव यहाँ कि सबको मैं बतलाता फिरूँ
बेबसी जो थी अधर की उपहास ना उसका करो
दीप जो हमने जलाया सुबह लाकर ही बुझेंगे।।
आँधियों में आज फिर से दीप सपनों का जलाया
आँसुओं का तेल भरकर आस को बाती बनाया
है यही बस कामना के गीत मेरे भी सजेंगे
आज गाता हूँ अकेले कल इसे सारे कहेंगे
आँधियों में तेज माना अफसोस ना इसका करो
दीप जो हमने जलाया सुबह लाकर ही बुझेंगे।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19जनवरी, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें